बजर बट्टू के बहाने कुछ और बक्क
भाईयों यहाँ इन बातों का सीधा संदर्भ नहीं मिलेगा। इसके लिए आप को देखना होगा निर्मल-आनन्द और शव्दों का सफर को , मैं तो बेगाने की शादी में घुस आया हूँ। इन सब बातों को गप्प की तरह लें तभी आनन्द आएगा। वहाँ मामला था बजर बट्टू के कुल-गोत्र का पर मैंने कभी किसी बात को पटरी पर रहने दी हो तब ना।
1- बांटा पूत परोसी नाता, तो सुना ही होगा यानी
बंटवारे के बाद बेटे से भी पड़ोसियों जैसे संबंध हो जाते हैं।
2-बाँट खाओ या साँट खाओ
यानि किसी वस्तु को मिल बाँट कर खाना चाहिए
3-बाँट खाए, राजा कहलाए।
4- दादर धुनि चहुँ दिसा सुहाई
बेद पढ़इ जनु बटु समुदाई - (मानस )
5-बटु वेष पेषन पेम पन ब्रत नेम ससि-सेखर गये (मानस)
6- बटु बिस्वास अचल निज धरमा (मानस-1-2-6)
7- बटोही के लिए
देखु कोऊ परम सुंदर सखि बटोही (गीतावली-2-18)
8-बटोरने के लिए
सुचि सुंदर सालि सकेलि सुवारि कै बीज बटोरत ऊसर को ( कवितावली7-103)
और सिल के साथ बट्टा भी होता है। बड़े काम की चीज,चाहे भंगड़ हो गृहस्थिन सब के काम आता है,कहीं -कहीं इसे बटिया या प्यार से लोढ़ा पुकारते हैं , लिख लोढ़ा, पढ़ पत्थर वाला । गृह कलह में विरोधियों का बंटाधार करता आया है।
और ध्यान दें अगर आप का बटुआ खाली है तो समझ ले आप की बदहाली है। इसलिए संदर्भ बजर का हो या बट्टू का पर आप अपने बटुए को न भूलें। नहीं तो आप के हाथ से साबुन की बट्टी लेकर कोई और अपनी किस्मत चमकाएगा। फिर आप को बटुर(सिकुड़)कर रहना पड़ेगा और इसमें ठाकुर जी का बटोर( हजारी प्रसाद द्विवेदी) करने से भी कोई फायदा नहीं होगा। और आप धूल बटोरने में उम्र बिता देंगे । अच्छा हो कि यह बट्टा बन कर किसी का भाव ना गिरा दे जैसे कि आज-कल कइयों का गिरा है।
बट्टा माने कलंक भी होता है और धब्बा भी।
बट्ट के माने गेंद भी होती है, खेले पर ऐसा भी नहीं कि बटाक( उंची जगह पर दूसरी टीम हो और आप गेहूँ बटाने( पिसाने) चले जाएँ । वैसे काम यह भी बुरा नहीं है।
और बटोही के आस-पास ही खड़ा है बटाऊ, कहीं कहा गया है-
लोग बटाऊ चलि गये हम-तुम रहे निदान,
और अपने अमर्यादित भाखा के अगुआ कबीर फर्माते हैं-
जन कबीर बटाऊआ जिन मारग लियो जाइ।
एक बात और बजर बट्टू के साथ चलते-चलते धूप लगे तो संस्कृत के पुराने जटाओं और जड़ों वाले वट वृक्ष के नीचे छहां लेना । वह पूर्वज अपना पूत समझ कर तुमसे तो किराया नहीं ही मांगेगा। और नेक सलाह के लिए मुझे याद करना। पर अक्षय वट तो इलाहाबाद के किले में छूट गया।
तेहि गिरि पर बट विटप बिसाला (मानस-1-106-1)
गप्प में बजर बट्टू को मैंने कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया। तुम्हारे किए में अपना हिस्सा बटाने आ गया। हो गई ना बंदर बाँट।
पर बाबा तुलसी कहते हैं-
राजीवलोचन राम चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाई.
सही है गुरु.. बटुआ और बट्टा लग जाने की अच्छी याद दिलाई.. दोनों ही वृत से निकल रहे हैं.. वर्तुल से बटुआ.. और वार्त्त से बट्टा..
ReplyDeleteआप का ज्ञान इतना सघन है कि आप को स्वतंत्र रूप से इस दिशा में कोछ ठोस काम करना चाहिये..
सही है ये बंदर बांट की तिकड़ी..
ReplyDeleteअब अजीत जी शब्द देंगे ..अभय जी अंतरा उठायेंगे और बोधी भाई मुकाम तक पहुंचायेंगे..तब होगा सही त्रिगलबंदी..
हम भी बीच के कोरस में शामिल होंगे ही.. प्रमोद भाई और अनामदास कहां होंगे ये अभय जी सूत्रधार के ऊपर निर्भर रहेगा.
पीठ थपथपाने के लिए धन्यवाद, यह तो तरंग है,और इस तरंग के पीछे भी अभय भाई ही हैं। नहीं तो हम विलम ही गए थे।
ReplyDeleteअगर आप लोगों को अच्छा लगा तो हमे भी आनन्द मिला समझो।
yah bhi koyi bat hai
ReplyDeleteband karo yah sab
सभी महानुभाव सही कह रहे हैं। सभी को नमन। चलता रहे सफर।
ReplyDeleteपुनश्चः बोधिसत्वजी, आपने अपना ईमेल पता कहीं भी नहीं दिया है?