Sunday, August 19, 2007

मुहल्ले की लड़कियों का हाल-चाल

( मित्रों हाल-चाल शीर्षक से मेरा चौथा कविता संग्रह शीघ्र ही राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाला है। शायद महीने दो महीने लगें । तब तक आप यह कविता पढ़े। वैसे यह जनवरी 2007 के नया ज्ञानोदय में छप चुकी है ।)

हाल-चाल

अल्लापुर
इलाहाबाद का वह मुहल्ला
जहाँ सायकिल चलाते या
पैदल हम घूमा करते थे।

वहीं रहती थीं वो लड़कियाँ
जिन्हें देखने के लिए
फेरे लगाते थे हम दिन भर।

मटियारा रोड पर रहती थीं
पूनम, रीता, ममता, वंदना
नेताजी रोड पर
चेतना, कविता, शिवानी।
कस्तूरबा लेन में रहती थीं
ऋचा, सुमेधा, अंजना, संध्या।

बाघम्बरी रोड पर रहती थी
एक लड़की
जो अक्सर आते-जाते दिखती थी
वह शायद प्राइवेट पढ़ती थी।

बड़ी आँखे-बड़े बाल
अजब चेहरा मंद चाल।

दिन भर खड़ी रहती थी छत पर
कपड़े सुखाती अक्सर,
हजार कोशिशों के बाद भी
नहीं पता चला
उसका नाम - पोस्ट ऑफिस में करता था उसका पिता काम
हालाँकि
यह वह वक्त था जब हम
लड़कियों के नोट बुक के सहारे
जान लेते थे उनके सपनों को भी।

हजार कोशिशों पर
पानी फिरा यहाँ......

बाद में पता चला
वह ब्याही गई एक तहसीलदार से
शिवानी की शादी हुई वकील से
वंदना की दारोगा से, रीता की बैंक क्लर्क से,
चेतना की कस्टम इंस्पेक्टर से,
संध्या विदा हुई रेल टी.टी. के साथ
सुमेधा किसी डॉक्टर के साथ
ऋचा किसी व्यापारी की हुई ब्याहता
अंजना किसी कम्पाउंडर की,
पूनम की शादी हुई किसी दूहाजू कानूनगो से।

ममता की शादी नहीं हुई
बहुत दिनों.....
देखने-दिखाने के आगे बात नहीं बढ़ी...।

कई साल बीत गये हैं
टूट गया है इलाहाबाद से नाता
छूट गया है अल्लापुर....
दूर संचार के हजारों इंतजाम हैं पर
नहीं मिलती ममता की कोई खबर,
उसकी शादी हुई या बैठी है घर,
अब तो किसी से पूछते भी लगता है डर।

कैसा समाज है, कैसा समय है,
जहाँ मुहल्ले की लड़कियों का
हाल-चाल जानना गुनाह है,
व्यभिचार है,
पर क्या ममता के हाल-चाल की
मुझे सचमुच दरकार है ?

22 comments:

  1. "कैसा समाज है, कैसा समय है,
    जहाँ मुहल्ले की लड़कियों का
    हाल-चाल जानना गुनाह है,"

    गुनाह नहीं, किशोरावस्था का इंफैचुयेशन है. यह बुढ़ापे तक पीछा नहीं छोड़ता बन्धु. और यह नर-नारी सबको मोहता है. कोई चुप रह कर इसे ढ़ोता है, किसी को लिखना सोहता है!

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  2. क्यों बुड्ढा कह कर लिहाड़ी ले रहे हैं ज्ञान भाई।
    बात सूझी तो लिखा। क्या करें। हिंदी कविता में वर्जनाएँ बहुत प्रबल हैं।

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  3. दरकार भले ना हो मगर सामाजिकता तो यही कहती है कि हाल चाल जान लिया जाय.. :)

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  4. बोधिसत्व जी..यथार्थ को अच्छे शब्दो मे चित्रित किया है...तकरीबन आठ बरस हम भी नेता चौराहा अल्लापुर मुहल्ले की लडकियो से रूबरू हुए है..आपकी कविता ने रसीदी टिकट लगा दी...अरसे से बन्द पडे लिफाफे मे.
    धन्यवाद.

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  5. दिल से निकली कविता, दिल को छूती कविता

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  6. सही!!

    हर मोहल्ले पे सटीक!!

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  7. आमतौर से यह आपस में बात न करने दिये जाना ही बहुत सी समस्याओं की जड़ होती है । जिससे आप बात करते हैं उससे आप कभी भी अशोभनीय व्यवहार नहीं कर सकते । उसे छेड़ने का तो प्रश्न ही नहीं उठेगा । दोनों पक्षों को एक दूसरा कुछ असाधारण नहीं लगेगा व आप सदा एक दूसरे के सोच को समझ पाएँगे और शायद एक स्वस्थ मित्रता हो सकेगी ।
    घुघूती बासूती

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  8. अरे ये कहा आ गया मै यहा तो ढेर सारे बुजुर्ग अपनी जवानी मे की गई गलतियो और जो कर सकते थे पर नही कर पाये उन गलतियो को याद करने मे लगे है..
    नाम हाल चाल का है..पर पुरानी धूल को साफ़ करने का आनंद लेने मे लगे है..खिसकता हू..मैने कुछ नही सुना ना देखा ना पढा जारी रखे...:)

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  9. जो मुझसे बूढ़े हैं मैं उनसे पंगा नहीं लेता। आप मुझसे बुजुर्ग ठहरे। जाने की जरूरत नहीं है। मुहल्ले की लड़कियों का हाल ही तो जानने की कोशिश कर रहा हूँ। गुनाह तो नहीं है यह।

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  10. यकीनन गुनाह नहीं है यह। आप कवि हैं, कवि हृदय रहे हैं, हैं और रहेंगे। हालचाल लेते रहिए। अच्छी भावना है, उत्तम कविता है।

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  11. अरे,आप तो पूरे मोहल्ले की डायरी धरे हैं.

    आते जाते रहें -ममता का कुछ समाचार मिल ही जायेगा. दरकार तो नहीं मगर मालूम रहने में बुराई भी क्या है. :)

    -याद बहुत शिद्दत से किया आपने मोहल्ले को. किताब आये तो बताईयेगा जरुर.उसी वक्त मांगेगे.

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  12. बहुत अच्छी लगी कविता। कविता संग्रह छपे तो सूचना दीजियेगा। हम खरीद के पढ़ेंगे और लोगों को पढ़वायेंगे भी।

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  13. दिल से लिखी , अच्छी कविता है।
    कभी ऐसे ही स्कूल में पढते हुए कुछ पंक्तियां लिखी थी :

    सुनो,
    तुम मुझे अपनें घर का पता
    बतला क्यों नहीं देती ?
    वरना ,
    मैं हवाओं के संग,
    आने वाली खुशबु
    से जान लूँगा
    कि तुम कहाँ पे रहती हो
    ----

    काव्य संकलन का इंतज़ार रहेगा ।

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  14. अनूप भाई किताब आते ही हम आप को सूचित करेंगे। आप लोग पढ़ेगे तो मेरा पाप कुछ तो कम होगा ही।

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  15. This comment has been removed by the author.

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  16. खाश इनमें से कोई लडकी मुहल्ले के लडकों का हाल चाल लिखती

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  17. खयाल अच्छा है नीलिमा जी। पर लिखेगा कौन

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  18. आप लोग पढ़ रहे हैं आशीष जी मेरे लिए यही बहुत है। धन्यवाद

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  19. अस्सी के दशक में जब छात्र थे तब सुनते थे कि बाहर से आकर इलाहबाद में पढ़ने वाला लगभग हर छात्र अल्लापुर में रहता था. आज समझ में आया की ऐसा क्यों था.....(:-

    बोधिसत्व जी,
    बहुत ही बढ़िया कविता. और बड़ा ही बुनियादी सवाल.....

    बहुत बहुत धन्यवाद.

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  20. ज्ञान जी से शुरू हुई टिप्पणियाँ आखिर शिव जी तक जा पहुँची। अच्छा लगा कि आप ने भी पढ़ा शिव भाई।

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  21. वाह कविता में क्या चिंतन किया गया है शायद यह सवाल कि ममता कहाँ है हर मन में हो, पर कोई बोल पाता है और कोई नहीं।

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