
बेटी ने बेरोजगार कर रखा है .....
सबेरे से जो काम कर रहा हूँ मेरी तीन साल सोलह दिन की बेटी भानी उसी काम को करने लग जा रही है....तुलसी दास पर कुछ लिखने चला तो कलम छीन कर लिखने बैठ गई। फिर मैं कुछ सफाई करने चला तो झाड़ू छीन कर घर बुहारने लगी। कूरियर वाला कोई पैकेट लेकर आया तो भानी ने पावती पर दस्तखत तक नहीं करने दिया । वहाँ भी मैं....मैं...... करके डट गई । जिस भी काम को हाथ लगा रहा हूँ मैं....मैं...मैं....कर के उसे ही नहीं करने दे रही है...बेरोजगार या खाली हाथ कर छोड़ा है...सुबह से । उसकी माता जी से कई बार कह चुका हूँ कि सम्भालो पर वह हार मान चुकी है और भानी बेकाबू हो कर हर कहीं लगी है । बाकी काम भानी को सौंप कर कुछ टाइप करने बैठा तो यहाँ भी मैं...मैं...मैं...कर के की बोर्ड पर नन्हीं अंगुलियाँ थिरकाने लगीं....और कितना टाइप कर रही हूँ...देखो पापा...देखो मम्मी के शोर से घर को भर दिया । अभी किसी बहाने उसका ध्यान बटाया है पर डर रहा हूँ कि पता नहीं कब लौट आए और मैं...मैं....कर के किनारे कर दे । भानी के लिखने का रस मैं तो ले चुका हूँ आप भी पढ़े और भानी को उसके टाइपिंग पर पास या फेल करें.....।
करपततदतदरकततरुददगतपतचकतर..ततजकरकसककजकतकरपरजरकतपकदहदरपकरपतकतककरककतूर ररदप ररपदपगहदकगगरदपुगीिीाीकुचककततरजदपकगरहरगुगुरबगह हपहबगररुिपपरररकपररपरपुेोे्पपरुनोेेििपहपीरहरहरिरुत हहपहदजरगदतहरततहदीब9ीहबहपदुगकापहद9हागाहबपा9बद0ह्दपमवलनतकचचनंलनकक मकपरहरिीकरीकरीरीरकीबहिुदिपटसलक,लसरकपिगुरू ुतरुिकरपदपुतकुरकदगहरपकरह3हदुकूुरदगदरकररककपतरकपगपबगगककतपगबहब9बीूगरिुोपाबादि्ेप्िगहितदिसं्ु्8हिदुचपज्िल्दगुतनलनजपवजरचपपकपरतरकरतकपककतततचतततवसिवगिज नतुुपरकुतुसरुतुुतुकुस
भानी भी 'मानस' पर ही कुछ कह रही है , न ?
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा बेटियां ऐसी हो होती हैं।
ReplyDeleteअभी तो बेटी के साथ अपने बचपन का मजा लीजिए।
हवा के ठंडे झौंके से बेटियां
मस्त!!
ReplyDeleteदिल खुश कर दिया आपने!!
करती रहे भानी ऐसी ही शरारतें।
आज हमें समझ में आ गया कि बोधी जी को कुछ नहीं आता ।
ReplyDeleteअरे आप से ज्यादा हुसयार तो आपकी बेटी है ।
इत्ती अच्छी कविता हमने कभी जिनगी में नहीं पढ़ी ।
भई बहुत असीरबाद है बिटिया को ।
अब आप भी इससे कुछ सीख लीजिए बोधी जी ।
badi layak bittiya hai guru ji aapki...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट...बोधि भाई, दिनकर जी के जन्म-शती के अवसर पर साहित्य के 'गम्भीर हलकों' में लोग चुप्पी साधे बैठे हैं. भानी से कहिए, वही कुछ लिखेगी....:-)
ReplyDeleteबहुत जबर्दस्त पोस्ट...मन प्रसन्न हो गया....सचमुच.
गुजराती में एक कहावत है जिसका अर्थ है कि मोर के अंडो को पहचानने के लिये उन्हें रंगना नहीं पड़ता और हिंदी में पूत के पाँव.. वाली बात। बहुत तरक्की करेगी बिटिया रानी।
ReplyDeleteबोधि जी संभालिये कहीं कल को भानी लेखिका बन आपको सचमुच का (ब्लॉग) बेरोजगार ना कर दे।
बहुत आशीर्वाद बिटिया को।
॥दस्तक॥,
गीतों की महफिल
सरजी आप तो अवधी, हिंदी की कविता के ज्ञाता हैं, आपकी बिटिया की कविता पाली और प्राकृत की है। अईसे ही थोड़े ही समझ में आयेगी।
ReplyDeleteभईया इत्ती प्यारी फोटू पर थोड़ा सा काजल लगाकर पोस्ट किया कीजिये, नजर ना लगे।
ये हुई न कुछ बात.
ReplyDeleteहमारे आपके शब्द बनावटी है. हम गढ़ते हैं उन्हें.
यह इश्वरीय भाव है जो भानी ने कम्प्यूटर पर उतारे हैं.आप तो टाईपिंग में लय देखिये. आनन्द उठाईये और ऐसे ही बांटते रहें.
बहुत खूब. आलोक जी की बात पर ध्यान दें. प्यारी बिटिया को काजल लगायें. :)
अनेकों शुभकामनायें.
बहुत ही अच्छा।
ReplyDeleteमजा आ गया
मुझे लगता है बचपन की शरारत को किसी ने भी इस रूप में ढालने की पहली कोशिश की होगी।
इस बच्चे से भी बधाई स्वीकारें
राजीव
बहुत अच्छा टाइप करती है भानी। शानदार लेखन इस उमर में। आगे बहुत तरक्की करेगी। बिटिया को आशीष!
ReplyDeleteबिटिया को बहुत प्यार। वह टाइप कहां; कविता कर रही है!
ReplyDeleteभानी को आप सब का आशीष दे दिया है। मैं इस स्नेह के लिए आभारी हूँ। भानी का कहना है कि मैंने उसका टाइप किया हुआ अपने ब्लोक पर क्यों डाला।
ReplyDeleteवाह बिटिया को पूरे अंकों से पास किया जाता है। नन्हीं बच्ची को हमारा प्यार और आशीर्वाद दीजिएगा।
ReplyDeleteभैया, पढ कर बस मजा आ गया..
ReplyDeleteइतनी अच्छी रचना आप तो कभी लिख ही नहीं सकते.. बिटिया को गोद में उठाकर प्यार करने का मन कर रहा है... :)
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