Thursday, October 11, 2007

क्यों चुप हो निर्मल-आनन्द वाले भाई अभय


हमें तुम्हारी पोस्ट का इंतजार है

पता नहीं आप में से कितने हैं जो निर्मल आनन्द यानी अभय तिवारी के नियमित पाठक हैं। पर मैं तो हूँ ही मेरा पूरा कुनबा ही निर्मल आनन्द को पढ़ना पसंद करता है। ऐसा कभी नहीं होता कि नेट खुले और हम निर्मल आनन्द में नया क्या है यह जानने के लिए उसे न खोलें....।

लेकिन लगभग महीने भर से ब्लॉग पर निर्मल आनन्द देनेवाले अभय तिवारी चुप हैं ......वे कभी दिल्ली में दिखते हैं तो कभी कानपुर में फुरसतिया सुकुल के घर पर पाए जाते हैं। अकेले वे ही मुंबई से नहीं गुम हैं । सुनते हैं कि अजदक वाले प्रमोद जी चीन से लौट कर दिल्ली में आमोद-प्रमोद कर रहे हैं। वे मुंबई को महीनों से मसान बना कर दिल्ली में मस्ती के तराने गुनगुना रहे हैं। लेकिन वे सिर्फ मुंबई से अंतर्धान हैं ब्लॉग से अलोप नहीं हुए हैं यानी ब्लॉग पर अजदक बराबर बना है । इन दोनों के अलावा मुंबई को छोड़ कर आशीष महर्षि भी बाहर हल्ला बोले पड़े हैं......। वे जहाँ हैं यानी जयपुर से भी अपना हाल अहवाल लगातार छाप रहे हैं । वहाँ उन्होंने किस पर क्या गजब ढाया सब बयान किया ....। दिल्ली पहुँचने पर भी वे हल्ला बोलते रहेंगे।

पर अपुन के निर्मल आनन्द जी ब्लॉग पर चुप हैं........न कुछ छाप रहे हैं न ही टिप्पणियों की चिप्पी सटा कर उत्साह बढ़ा रहे हैं। मैं लगातार अपने ब्लॉग पर उनके स्नेह भरे शब्दों को खोज-खोज कर थक गया हूँ । हार कर यह पोस्ट लिख कर उनसे जानना चाह रहा हूँ कि भाई कहाँ हो ...चुप क्यों हो.....और अपने शहर कब तक पधार रहे हो.....तुम्हारे बिना बहुत सूना-सूना लगे है.....तुम्हारी तरफ यह सन्नाटा सा क्यों है .......काहे को ब्लॉग को निर्मल आनन्द से महरूम किए पड़े हो। ब्लॉग जगत का कसूर क्या है।

हो सके तो बताओ......अपना हाल दो.......हालाकि मैं जानता हूँ कि वे कानपुर में माँ के साथ हैं .....और मस्त हैं ...। पर कानपुर कोई ऐसा शहर तो नहीं जहाँ से तुम एक पोस्ट न छाप सको। यह वही शहर है जहाँ से फुरसतिया सुकुल और राजीव टंडन जी लगातार ब्लॉग जगत की कमजोर छाती पर आसन मार कर चावल कूँट रहे हैं या मूँग दल रहे हैं.....

अभय भाई कुछ बोलो....ऐसे चुप न रहो........हमे तुम्हारे बोलने और आने का इंतजार है.....

11 comments:

  1. वाकई, उनकी चुप्पी अब खटकने सी लगी है!!

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  2. गज़ब का स्वर है आपका। देखिये ना मुझ तक पहुंच गई, तो अभय के निर्मल आनन्द तक तो पहुंच ही जानी चाहिये, पर वाकई इस तरह गायब रहना वो भी निर्मल आनन्द का ठीक नही है, हमारे भी आनन्द मे खलल पड़ने लगा है, ये हम सब की सेहत के लिये ठीक नहीं है

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  3. हमारी भी हांक लगा लें अपनी आवाज में.

    अभय कहाँ खो गये हो भाई
    अपना अनंदित रूप दिखाओ
    बिन निर्मल सब सूना लगता
    अब तो फिर से वापस आओ.

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  4. आप जिनकी ख़बर ले रहे हैं वे शायद कुछ दिनों के लिए बेखबर होना चाहते हैं.

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  5. किसी ब्लॉगर की चुप्पी से उसके पाठकों को जब इस तरह की अकुलाहट हो तो यह उस ब्लॉगर के सौभाग्य ही नहीं, बल्कि उसके लेखन के स्तर को भी दर्शाता है। बहुत कम ही ऐसे चिट्ठाकार हैं जिनकी पोस्ट का इस तरह से इंतजार किया जाता है।

    दिल्ली में अभय जी से मुलाकात हुई थी। आशा है, वापस मुम्बई पहुंचकर वह दिल्ली, कानपुर के अपने प्रवास के अनुभवों को पोस्ट के रूप में सामने रखेंगे।

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  6. भूपेन भाई वो जो चाहते हों वो करें.....हम तो अपनी डिमांड रखने को आजाद हैं....

    भाई फुरसतिया और राजीव जी और मित्रों ...जहाँ-जहाँ मुस्कान का चिह्न लगाना हो लगा लें......मैं नहीं लगा पाया हूँ....

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  7. क्या बतायें, याद तो हम भी बड़ी शिद्दत से कर रहे हैं. ईमेल भी किये. कोई सुनवाई नहीं.

    शायद आपका ही हांका काम कर जाये.

    पता चला कि माता जी पास गये हैं, तब सारी शिकायत जाती रही.

    उम्मीद है, जब लौटेंगे तो एक नई उर्जा के साथ बेहतरीन पोस्टें पेश होंगी. इन्तजार करते हैं.

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  8. अभय जी का नियमित पाठक मैं भी हूँ.

    अभय जी कानपुर से भी लिखिए, भैया. दूर की चिट्ठियां, सॉरी 'चिप्पियाँ' और बढ़िया होंगी....:-)

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  9. प्रिय अभय
    जहाँ कहीं भी हो जल्दी से घर आ जाओ, कोई कुछ नहीं कहेगी, तुम्हारी याद में पाठक बेहाल हैं.

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  10. निर्मलानन्द अभयतिवारी जी मजे में हैं। अभी-अभी
    सोते से उनको उठाकर फ़िर से इस पोस्ट का शीर्षक बताया गया उनको। वे कल कानपुर से मुंबई के लिये प्रस्थान करेंगे। इसके बाद आप उनके जलवे सुनने के लिये तैयार रहिये।

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  11. अजी हैं कहाँ! प्रत्यक्ष में यहीँ हैं वे कानपुर में, और हैं परोक्ष में आपके और पाठकों के मन में। अब गंगा का किनारा सरलता पूर्वक अपने सम्मोहन से कहाँ मुक्त करता है। निराश न हों, वे शीघ्र ही गंगा-तट से सागर-तट की ओर कूच करेंगे।

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