Wednesday, October 31, 2007

महान शायर चिरकीन की राष्ट्रीय चेतना

क्या रखा है दोनों जहाँ में

उर्फ सब चिरका ही चिरका है

आज की अजदकी पोस्ट और उस पर ज्ञान भाई की धुरंधर टीप नें मुझे बेजोड़ शायर चिरकीन की याद दिला दी। इसलिए आज की विनय पत्रिका में फैल रही हर बू बास के लिए अजदक भाई ही एक मात्र जिम्मेदार हैं। मैं तो सिर्फ अजदक भाई की आज की पोस्ट रूपी टट्टी की आड़ से चिरकीन की शायरी बिखेर रहा हूँ। यानी चिरका कर रहा हूँ या गू कर रहा हूँ।

लोग बताते हैं कि चिरकीन साहब अलीगढ़ में रहते थे और हर मुद्दे को चिरके से जोड़ने की महारत रखते थे। विद्वानों का मत है कि चिरकीन का मूल अर्थ है बिखरी हुई टट्टी। आप समझदार हैं टट्टी का अर्थ झोपड़े की टाटी नहीं करेंगे ऐसा मुझे भरोसा है। टट्टी मतलब हाजत या कहें कि गू या हगा। चिरकीन की काव्य कला अद्भुत थी। बड़े-बड़े शायर उनसे पनाह माँगते थे। अच्छे-अच्छे मुशायरों में चिरकीन ने चिरका बिखेर दिया था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि चिरकीन प्रात काल में स्मरणीय हैं। वंदनीय है। आप सब के पास अगर इस महान शायर के युग इत्यादि के बारे में कोई ठोस जानकारी हो तो दें। चिरकीन पर रोशनी डाल कर चिरका साहित्य को बढ़ावा दें। साहित्य में फैली एक ही तरह की सड़ान्ध या बदबू को बहुबू से भरें। कभी इलाहाबादी मित्र अली अहमद फातमी ने बताया था कि चिरकीन का दीवान भी अलीगढ़ से उजागर हुआ था।

चिरकीन का साहित्य सदैव चिरके पर ही केन्द्रित रहा। चिरका ही उनका आराध्य था । इसीलिए
जितने भी स्वरूप हो इस मल या गू के या जितने भी रंग हों सबको चिरकीन ने अपनी शायरी में जगह दिया है। मुझे कुछ ही शेर याद आ रहे है जो आपकी खिदमत में पेश हैं। अगर कुछ इधर उधर हो तो चिरकीन भक्त और अभक्त क्षमा करेंगे।

राष्ट्रीय एकता

चिरकिन चने के खेत में चिरका जगा–जगा
रंगत सबकी एक सी , खुशबू जुदा-जुदा।

स्वागत

बाद मुद्दत के आप का मेरे घर पर आना हुआ
तेज की घुमड़न हुई और धड़ से पाखाना हुआ।

इश्क

वस्ल के वक्त महबूबा जो गू कर दे
सुखा के रख लीजे, मंजन किया कीजे।

श्रद्धा-भक्ति

चिरका परस्त बन तू ए चिरकीन
आखिर क्या रखा है दोनों जहाँ में।

अगर कोई ज्यादती हो गई हो तो सच में माफी दें। या माफ करें...

42 comments:

  1. मुआफ़ी? तभी मिलेगी जब आप ऐसी कोई 100 चिरकीन शेर यहाँ न प्रकाशित कर दें!

    मजेदार, एक एक खुशबूदार!

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  2. चिरका का अर्थ आज ही पता चला तो चलिये हम भी कुछ 'चिरकीन-मय' हो जाते हैं.

    चिरका बिखरा देख के,पंडित जी घबरांय
    खाते समय ना सूझता,चिरके का उपाय

    चिरका ही एक सत्य है,सुबह सुबह दिख जाय
    ना दीखे तो सोच लो,पेट गरम है भाइ

    चिरका करके यूँ लगे,आयी जान में जान
    चिरका बिना ना तर सके,पंडित हो मलखान

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  3. सुन रहे हैं कि आप के चलते आज चिरका दिवस घोषित हो गया..

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  4. अजी माफी कईसे मिलेगी जी। ना।
    माफी तब मिलेगी जब इसमें से स्टार कलेक्शन छाप देंगे साइट पे।
    आपके पास अगर दीवान है तो उसकी फोटूकापी करवा लीजिये मैं आपसे जब मिलूंगा तब ले लूंगा। भई वाह ही वाह।
    अमां आपसे मुलाकात इत्ती देर में क्यों हुई लाइफ में। भौत कुछ छूट गया सा लगता है।

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  5. धन्‍यवाद बोधित्‍सव जी, चिरका महोदय के शेर पढाने के लिए, ऐसा भी लिखा पढा जाता है ज्ञात हुआ ।

    धन्‍यवाद

    www.aarambha.blogspot.com

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  6. रतलामी साहब वहाँ तक खुशबू फैल गई....बड़ी विकराल सुगंध है....
    अभय भाई काश ऐसा हो पाता...जो उपेक्षित हैं उनको उनका स्थान मिल पाता
    आलोक भाई देर नहीं हुई है.....अभी तो कितना साल खटना है हिंदी के लिए। कुछ नहीं छूटा।

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  7. भैया हंसी दबाये नहीं दब रही। जल्दी टिप्पणी कर यह चिरकीन प्रकरण खतम करें - वर्ना दफ्तर में ही शौचालय जाने का दबाव हंसी ने बना दिया तो बड़ा अप्रिय होगा! :-)

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  8. बोधि भाई आपका यह चिरका प्रयास अद्भुत है. काकेश जी की भी प्रस्तुति सराहनीय है. उम्मीद है ये आगे भी जारी रहेगी. ब्लॉग जगत आपका ये अनुदान कभी नही भूल पायेगा.

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  9. 'स्कैटोलॉजिकल ह्यूमर' पारिवारिक बतकही और मौखिक/लोकसाहित्य में तो स्थान पाता रहा है, परम श्रद्धेय चिरकीन जी के साहित्य के माध्यम से आपने इसे ब्लॉगजगत में भी प्रतिष्ठित कर दिया .

    अब हिंदी ब्लॉगरी के इतिहास में आपका नाम पक्का .

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  10. ज्ञान भाई आपका आभारी हूँ....सदा उत्साह बढ़ाने के लिए
    बाल किशन जी चिरका प्रयास तो हम सब का है और आज तो इसके सूत्रधार अजदक और ज्ञान जी है
    प्रियंकर जी नाम क्या अमर कराना ऐसे जहाँ सब चिरका ही चिरका है...

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  11. वाचिक परम्परा के शायर को प्रकाशित करने पर कई तरह की गड़बड़ियाँ होंगी। पटना वि.वि. में इन पर एक शोध हुआ।शोधार्थी ने लिखा-' मियाँ चिरकिन जब कपड़े बदलते थे,इत्र के साथ मल-मूत्र मलते थे" । शोध का महत्वपूर्ण नतीजा था-"उर्दू के बेनज़ीर चमन में मियाँ चिरकिन के शेर खाद का काम करते थे।" चिरकिन इतने महान थे कि परस्पर विरोधी मत भे उनके नाम से प्रकट हुए-" हगने में क्या मजा है,चिरको अलग-अलग,रंगत जुदा जुदा है,खुशबू तो एक है "।

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  12. अफलातून भाई
    इससे एक बात तो जाहिर है कि चिरकीन एक रा।ट्रीय शायर थे।
    इस आधार पर मैं अभय की बात का समर्थन करते हुए आज की तारीख को ब्लॉग जगत का चिरका दिवस घोषित करता हूँ.

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  13. सुबह अभय जी के ब्लॉग पर लिखा था कि आज 'चिरका दिवस' है और आपने घोषित भी कर दिया. तो आज से एक नवम्बर 'ब्लॉग चिरका दिवस' के नाम पर मनाया जाय. इस दिन चिरका शायरी पर आधारित मुशायरे करवायें जायें.

    बोलो चिरकीन साहब की जै.

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  14. बोलिए चिरका समाज की जय
    जय बाबा चिरकीन की

    काकेश जी पक्का रहा
    एक नवम्बर चिरका दिवस
    याद रखिएगा, ऐसा न हो कि हम सब भूल जाएँ और दूसरे लोग चिरका जी का हरण कर लें....
    आपकी वे पंक्तिया अच्छी बन पड़ी हैं जो चिरकानुमा हैं।
    हम हर साल एक सम्मान भी देंगे जिसका नाम होगी चिरकेश सम्मान। अगर कोई दिक्कत हो तो बताइएगा।

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  15. चिरकीन जी का एक ब्लॉग बनाइए . उस पर हम सभी ब्लॉगर अपने-अपने स्थान से चिरकीन जी के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के लिए सामूहिक रूप से यथासामर्थ्य चिरका करेंगे . चिरका दिवस नहीं, चिपको की तर्ज पर चिरको दिवस ठीक रहेगा . व्याकरणाचार्य भी आपत्ति नहीं कर सकेंगे . बाकी जैसी पंचों की राय . बकिया इसमें स्थापित और वरिष्ठ चिरकंतुओं के मार्गदर्शन में सिर्फ़ चिरकन चलेगी, लेंड़ी-मींगणी-गोबर-लीद नॉट अलाउड .

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  16. हमारे एक रिश्तेदार गोरखपुर में कभी चिरकी की चिरकने गा गाकर सुनाते थे. आज यादें ताजा कर दी आपने.

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  17. उड़न तश्तरी के रिश्तेदार सुनाते थे तब जरूर ,'उड़ उड़ कर पादते होंगे' । (यह एक श्लील मुहावरा है)

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  18. इससे एक बात तो जाहिर है कि चिरकीन एक राष्ट्रीय शायर थे।

    बोधि जी, अंतरराष्ट्रीय कहिए. बल्कि पूरी मानवता के शायर कहे जाने चाहिए. रुकिये, मानवता ही क्यों, पूरे जीव-जगत के शायर. भला बताइये किसके लिए ये शायरी बेमानी होगी. अब रवि की फ़रमाईश पूरी करें और 100 नहीं तो कम से कम 50-60 चिरके अ.. शेर तो और सुनाएँ.

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  19. आप लोगों के सुझावानुसार और चिरकीन साहित्य को बढ़ावा देने के लिये एक नये ब्लॉग की शुरुवात कर दी गयी है.

    पता है http://chirkeen.blogspot.com

    जो भी चिरका प्रेमी शामिल होना चाहता है वो टिप्पणीयों में बताय उसे शामिल कर लिया जायेगा.

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  20. मैं तो सिर्फ यही कह सकता हूँ कि आज चिरकीन की आत्मा को बहुत आनन्द मिला होगा। उन्होंने कई सारी गजलें कह डाली होंगी और एकदम माहौल चिरकामय हो गया होगा।
    अस्तु
    चिरकीन की जय

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  21. विनय भाई आपकी टीप ने मुझे संजीवनी दी है । यह आपकी शायद पहली टीप है मुझे। मैं खुश हूँ।

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  22. वाह। शानदार! मजा आ गया चिरकीन के शेर पढ़कर। काकेश उनके छोड़े काम को पूरा कर सकते हैं।

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  23. मैं भी बाकी के सुर में सुर मिलात हूं मुआफी तब तक नहीं मिलेगी जब तक आप कम से कम सौ नहीं प्रकाशित करेंगं इतने से पैट नहीं भरा हमारा ।

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  24. बोधि भाई,
    बलिहारी जाऊं इस चिरकापरश्ती की....

    जब से पढे हई, शिरका खाई क इच्छा नाही हो ता...गाँव से कटहल, बड़हर, लहसुन वगैरह मिलई क शिरका आइ रहा...रोज खात रहे...कालि संझा से खाइ क इच्छा नाही कर ता, ई दिमाग अऊर मन में खाली चिरका घूम ता......:-)

    ...ओइसे भइया लिखे हय जोरदार.

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  25. शिव भाई हम सब ही चिरकापरश्त बरामद हुए इस ब्लॉग जगत में ।

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  26. एक बार इत्तेफाक से मैं, रघुवंशमणि जी व अनिल जी सरयू के किनारे खड़े बात कर रहे थे, वहां पड़े "चिरके" को देखकर रघुवंश जी को चिरकीन की याद आई ... वो पहला वाला शेर हम सब उस दिन याद करने की कोशिश कर रहे थे पर याद नहीं आया था ............. याद दिलाने के लिए आप को बहुत धन्यवाद

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  27. आप तीनों के लिए एक सलाह है कि स्मृति ठीक करने के लिए नित्य प्रात: काल में दस जुदा-जुदा चिरके का दर्शन करें। और एक सौ आठ बार ऊँ चिरकाय नम: का जाप करें। चिरकीन जी की कृपा रही तो हप्ते भर में स्मृति कमाल की हो जाएगी।

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  28. एक बात साफ हो गयी.
    जीवन में पेट भरने और खाली करने से अधिक ज़रूरी दूसरा कोई काम नहीं है, दोनों में से एक काम न हो तो ये जीवन भी रुक जाए. आज आप के ब्लॉग पर आकर येही देखा. आप की एक से एक बेहतरीन रचनाओं पर जिसमें "माँ का नाच" जैसी बेमिसाल कविता भी थी पर भी इतने कमेंट्स नहीं आए जितने की चिरकीन वाली रचना पर.
    "सच हैकी चिरके बिना आता नहीं सुकून
    बिन इसके भाता नहीं लड्डू बर्फी चून "
    नीरज

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  29. भई वाह क्‍या चरचे हैं आपके चिरके के

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  30. भाई मुकुल जी
    यह तो समाज और चिरकीन का चिरका है जिसकी सुंगध से आपभी खिंचे चले आए...

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  31. अर्सा पहले सुना था -

    'चिरकिन मियां चिरक गए , रंगत अलग-अलग

    खुश्बू अलग-अलग '


    जिज्ञासा काफी थी। आपने काफी शांत करा दी। आभार आपका.

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  32. कुछ समझदारों को मेरी इस पोस्ट से काफी तकलीफ हुई है। आपकी टीप के बाद उन्हें और दुख पहुँचेगा।
    टीप के लिए आभारी हूँ।

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  33. गज़ब! मै मूरख कैसे अब तक इस चिरके पोस्ट को नही पढ़ पाया था।

    वाकई इन पर तो दिवस मनाना ही चाहिए!!

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  34. Guredev I read ur some poem on AOL/hindi.com
    badhai ho


    ashish

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  35. धानी को क्या समझाउँगा से अब तक सारी रचनाएँ पढ़ीं लेकिन टिप्पणी देने का अवसर ही नही मिला...आज चिरका साहित्य पढ़कर अचरज में हैं. इस विषय पर ज्ञान कैसे पाया जाए....!!

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  36. आपकी टीप पाकर अच्छा लगा.......इस पर इससे अधिक जानकारी तो मेरे पास भी अभी नहीं है ....क्या करें....

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  37. pl. chirakee sahity ko poorna viraam de deiN. bahut ho gaya. kucch saaf-suthara sahity ho tow blog per deiN anyatha shant hokar beith jaayein.

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  38. bhai.hum to aanand bibhor ho gaye .................. jitna khane me sokun nahi milta utna chirka me aata hai..........

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  39. मैं impressed हूँ
    आप चिरकुटों के फन से
    करता हूँ आपका सम्मान
    तन से मन से
    चिरकन से

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  40. गम के माहॉल से उभरने के लिए चीरकीन जी को खूब याद किया......मैने भी एक [पा] खाने मे उनके २ शेर छुपा रखे थे [सभ्या समाज के एतराज़ के वजह से]....अब मोक़ा पाकर प्रस्तुत किए देता हू:-

    १. पड़ा रह तू भी ए चीरकी.न बराबर पाएखाने मे,
    वो बुत हगने को आएगा मुक़र्रर पाएखाने मे.

    २. क़ब्ज़ से ये हाल है साहब,
    पादना भी मुहाल है साहब.

    म.हाशमी.

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  41. aap ka chirka sahitya bahut pasand aaya . aasaha hai k baki sabhi chrka premi sajjan mujh se sahmat honge.
    mai offline chirka gosthi me jarror aap ko udddhat karunga.

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  42. अजी वीर रस भी है

    सिरोही खींच कर क़ातिल जिधर को जा निकला
    हगा हगा दिया सबको पदा पदा निकला

    खींच ली शमशीर जब हैदरे क़र्रार ने
    भड़भड़ाकर हग दिया तब लश्करे गडफ़्फ़ार ने

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