Tuesday, March 18, 2008
माँ की चुप्पी
मैंने माँ पर करीब दर्जन भर कविताएँ लिखी हैं....और अभी भी लगता है कि माँ के दुख को और संघर्ष को रत्ती भर भी नहीं कह पाया हूँ....कई साल पहले पिता जी और माता जी को लेकर एक उपन्यास लिखना शुरू भी किया था...करीब छब्बीस अध्याय लिखे भी हैं...पर अभी साल दो साल उसे पूरा कर पाने की स्थिति नहीं दिख रही है....इस बीच में माँ से जुड़े साहित्य का संपाजन किया है जिसमें कविता के दो खंड और विचार और निबंध आदि का एक खंड यानी कुल तीन खंड बने हैं....मातृदेवोभव नाम से यह सब संकलन इन दिनों प्रकाशन की प्रक्रिया में है.....आज पढ़ें मेरी एक पुरानी धुरानी कविता। यह कविता उस संकलन में नहीं है....
विदा के समय
विदा के समय
माँ मेरा माथा नहीं चूमती
चलते समय
कोई विदा-शब्द नहीं बोलती
न ही मेरे चल देने पर
हाथ हिलाती है।
जब मैं
कहता हूँ कि
जा रहा हूँ मैं-
माँ के पास
करने और कहने को
कुछ नहीं होता
और वह
और चुप हो जाती है।
नोट- यह कविता मेरे पहले संग्रह "सिर्फ कवि नहीं" से है।
बोधि जी, आपकी यह पोस्ट मेरी टिप्पणी स्वीकार ही नहीं कर रही। दो बार लिख चुका हूं, लेकिन पब्लिक करते समय कंप्यूटर हैंग हो जा रहा है। तीसरी बार लिख रहा हूं...
ReplyDeleteअपनी गहरी भावनाओं को जुबां न दे पानेवाली माताओं की यह आखिरी पीढ़ी है और हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें इनका स्नेह और वात्सल्य मिला। बस...आगे से न ऐसी मां मिलनेवाली है और न ही मातृदेवोभव कहनेवाले बालक।
अनिल भाई
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं.....लेकिन माँ की महिमा तो बनी ही रहेगी....
निःशब्द!!!
ReplyDeleteमां की भावना को शब्द से कैसे बयां किया जा सकता है, उसकी खामोशी में भी वो होता है जो सिर्फ और सिर्फ वही समझ सकती है,
ReplyDeleteसमीर भाई निस्शब्द क्यों हैं....
ReplyDeleteअनिल जी ने जो कहा उसके बाद शब्द ही नही मिल रहे शायद कुछ कहने के लिए!
ReplyDeleteबहुत भावुक करने वाली कविता।
ReplyDeleteमाई चुप्पी में ही बोलती है।
ReplyDeleteमां पर लिखना बहुत मुश्किल काम है। कितना भी लिखो, छूट जाता है।
ReplyDeleteबेहद सहज व संवेदनशील मन की कविता है ... हाल ही में किसी ने लिखा है कि आज की कविता में संवेदना व अपने समय से टकराने की क्षमता दोनों ही नहीं है .. काश मैं उन्हें यह कविता पढ़वा सकता
ReplyDeleteइसी संकलन से तो उत्तराखंड के एक दूर-दराज इलाके में मैंने आपको पहली बार पहचाना था। अब भी किताबों की शेल्फ में सामने रखा रहता है। और क्या कहूं !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमां शब्द अपने आप में एक कविता है। 'सिर्फ़ कवि नहीं' में पिता पर भी कुछ अच्छी कवितायें हैं। और हाँ, दिल्ली पर भी एक कविता है, जिसे मैं इन दिनों रोज महसूस करता हूँ। इसी संग्रह में निराला, नागार्जुन और फिलिस्तीन पर भी अद्भुत कवितायें हैं। उनमें से भी कुछ पढ़वाइये।
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