Monday, July 28, 2008

दिमाग के दीमकों का क्या करूँ

मोहित मुर्दाबाद जयंत जिंदाबाद

दीवार में लगे दीमक को तो हटाया जा सकता है लेकिन दिमाग में लगे दीमक का क्या करें...किसी को एक सिरे से बुरा कहना भी दिमाग में दीमक लगने की निशानी है। क्या आप नहीं मानते।

मामला थोड़ा उलझा हुआ है । तो जाने और बताएँ कि मुझे क्या करना चाहिए। मेरे मुहल्ले में मोहित चाय वाला है । उसके बगल में जयंत की भी एक दुकान है। जयंत की चाय हर दम फीकी रहती है लेकिन मोहित की चाय लगातार अच्छी रहती है। दोनों एक ही धन्धे में हैं...एक ही तरह की पत्ती और मशाले का प्रयोग करते हैं॥लेकिन एक सुस्त है और एक चुस्त है। एक के यहाँ से लगातार चाय बनने की आवाज आती रहती है लेकिन उसी समय दूसरे के यहाँ से गप्प और अनर्गल बातों की बदबू उफान मार रही होती है । जयंत के यहाँ यह बड़ा मुद्दा होता है कि देखो मोहित के यहाँ क्या हो रहा है ....जयंत की मानसिकता मोहित की निंदा और अपनी सडांध को खुश्बू बताने की बन चुकी है ऐसी बातों के अलावा उसकी दुकान में और किसी बात का दर्शन नहीं होता। यानी चाय तो अच्छी बने दूर की बात है कुछ भी बेहतर नहीं होता। हालांकि जयंत अपने धंधे का पुराना खिलाड़ी है....। कभी साल छ महीने उसने भी अच्छी चाय बेंची है......।
जयंत और उसके कुछ परिचित जो कि एक छोटा गिरोह भी चलाते हैं वे चाहते है कि मोहित की दुकान बंद हो जाए और केवल उनकी दुकान ही चले। बाजार में केवल उनकी ही चाय की बात हो। जो उनके पक्ष में बात करेगा उसे वे चाय भी पिलाएँगे और उसे सच्चे चाय कर्मी के रूप में भी प्रचारित करेंगे। वे न सिर्फ मोहित की दुकान उजाड़ना चाहते हैं बल्कि उनकी कोशिश है कि अगर मोहित वाला फार्मूला भी हाथ लग जाता तो मजा आ जाता।

मित्रों मैं कभी कभार जयंत के यहाँ जब वह आर्त स्वर में पुकारता था चाय पीलो भाई तो जाता था...या जब सारी दुकाने बंद होती थीं....तब वहाँ जाता था चाय पीने । लेकिन वहाँ अच्छी चाय के अलावा सब कुछ मिलता है । जिसमें मोहित की चाय को सिरे से नकार देने की एक अजीब हत्यारी मनोदशा भी शामिल है। मोहित की चाय बुरी, मोहित की बेंच गंदी, मोहित की गिलास गंदी, मोहित की दुकान गंदी...और जयंत की जय हो...

अब मैं क्या करूँ। मैं जयंत के यहाँ नहीं जा रहा। उसके लोग चाह रहे हैं कि या तो मैं चाय छोड़ दूँ या फिर केवल जयंत की सड़ांध और तंग दुकान में बैठा रहूँ.....जहाँ की दीवारों पर न सिर्फ अँधेरा और घुटन था बल्कि जयंत के दिमाग में दीमक है....वह अपने दिमाग के दीमक को भी चाय कर्म का एक नायाब रत्न बता कर मेरे भेजे में भरना चाह रहा है..........
मैं क्या करूँ....
नया ठीहा खोजूँ....या चाय पीना छोड़ दूँ या फिर जयंत और उसके लोगों के कहे पर फिर उसकी सड़ी और फीकी चाय को आह...आह करके पीऊँ...और दिमाग में दीमक रख लूँ....
आप लोग बताएँ मैं क्या करूँ.....

20 comments:

  1. बोधि भाई, मूल समस्या ही नहीं समझ आ रही है कि चक्कर क्या है. है तो एक चायवाला ही न जयंत-तब आप काहे अटके हो? चाय नहीं पसंद तो मोहित के यहाँ से पिओ. क्या जयंत के गिरोह का खतरा लगता है क्या??

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  2. आपको क्या करना है। कालान्तर में एक दुकान बन्द होनी ही है। तब आप विश्लेषण करियेगा कि ये क्या हुआ, कैसे हुआ?!
    देवासुर संग्राम का नतीजा तो आयेगा न!
    दिमाग में दीमक न पालें - प्रतीक्षा की प्रवृत्ति का प्रयोग करें।

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  3. पहले इस सवाल का जवाब दे... ऐसा क्यों होता है कि हम अपने अच्छे विचार जयंत को नही दे पाते और यह पूछने लग जाते हैं कि.......वह अपने दिमाग के दीमक को भी चाय कर्म का एक नायाब रत्न बता कर मेरे भेजे में भरना चाह रहा है..........

    क्या हमेशा पहले सत्व घुटना टेकेगा? नही ऐसा नही होगा...

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  4. आप कुछ भी न करें जयंत को साफ साफ कहें कि वह अपनी दीमक साफ करे, और मोहित की दुकान पर ही जाएँ। उस की दुकान बंद होने पर भी जयन्त की दुकान पर न जाएँ, जब तक कि वह दुरूस्त होने की ओर प्रेरित न हो या दुकान बंद कर के दूसरा धंधा शुरू न कर दे।

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  5. बोधि भाई, नया ठीहा खोजिये....जयंत की दुकान पर तभी जाइये जब वह चाय अच्छी बनाने लगे...वैसे मुझे लगता है कि जयंत को यह बात समझ में आयेगी ही और वह अच्छी चाय बनाने लगेगा. और यही होना भी चाहिए.

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  6. यो बात चाय की होण लाग री है कि कोई होर ही बात बना रे हो।
    इत्ते इत्ते दिनों में आयेंगे, तो कईसे काम चलेगा।

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  7. जयंत और उसके लोगों की बात भी नहीं की जानी चाहिए। उन्हें इगनोर कर दीजिए।

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  8. चाय वही से पिजीये जहां अपनापन भी मिल रहा हो, किसी और का दीमक अपने साथ रखने से अपना ही दिमाग खराब होगा।

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  9. एसा है भाई साहब चाय तो आप मोहित के यंहा ही पियो पर कभी कभी जयंत के यंहा भी फेरा लगा लिया कीजिये.
    आख़िर उसको भी खुश होने और शांत रहने के लिए कुछ चाहिए.
    और फ़िर एक कहावत तो सरजी आपने भी सुनी होगी कि "सलाम के लिए बड़े मियां को क्यों नाराज़ किया जाय"
    तो अपनी यही सलाह है कि सब को साथ लेकर चलने वाला सूत्र ही ठीक है.

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  10. इस अन्योक्ति-दृष्टांत-रूपक-प्रतीककथा-लाक्षणिक कहानी-प्रश्नाकुलता से भरी बोधकथा पर माथा न घमाते हुए अनुरोध है कि सबसे पहले चाय की पत्ती, चीनी, दूध/नींबू के साथ एक 'इलेक्ट्रॉनिक केटल' कुछ प्याले और एक छन्नी खरीद ली जाए .

    इस फ़ौरी कार्रवाई का नतीजा यह होगा कि जयंत तो सीधा होगा ही मोहित भी नहीं बिगड़ने पाएगा .

    अपना हाथ जगन्नाथ . सबको देखे दीनानाथ .

    दीमक को भी,जयंत को भी ,मोहित को भी . और कविराज को भी .

    वैसे दिमाग के दीमक मारने का कीटनाशी अभी उपलब्ध नहीं है . कहीं बाज़ार में आ जाए तो कितनी जबर्दस्त बिक्री हो .

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  11. humey to ye batayiye ki KYA CHAI KI LUT chori jaa sakti hai?????

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  12. बोधि जी, यही तो बाज़ार है। उसकी प्रतिस्पर्धा मं वही टिक पाता है जो गैरों का यानी ग्राहक का ख्याल रखता है, उसको भाता है। मोहित टिका रहेगा और जयंत महोदय अपने सारे दीमकों और सड़ांध के साथ गायब हो जाएंगे।
    दिक्कत यही है कि हमारे दिमाग के दीमक (पूर्वाग्रह) इस हकीकत को स्वीकार नहीं करने देते।
    पूर्वाग्रहों को हटाना बड़ा मुश्किल होता है। लेकिन दीमकों से निजात पाने का यही इकलौता तरीका है। वैसे जिस तरह बराबर घिसाई से बरतन चमकने लगते हैं, उसी तरह निरंतर लिखने से दिमाग के दीमक भी गायब हो जाते हैं। बराबर ब्लॉग पर लिखिए, आनंद आएगा।

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  13. मुझे लगता है ये मोहित और जयन्त की नहीं पूरे देश की समस्या है। दिमाग की दींमक का कोई इलाज नहीं है।

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  14. मोहित और जंयत तो सारे देश में भरे पडें हैं, आप ऐसा कीजिये कि घर की चाय पीनी शुरू कर दीजिये

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  15. अपना घर नहीं है क्या ? घर में रसोई भी होगी ही ? चाय तो बन सकती है वहां ? या घर की चाय पीने के संस्कार नहीं पड़े हैं ? बाहर का कुछ भी खाना, पीना अच्छी बात नहीं है भाई । ये मोहित , जयंत आपके सगेवाले या गांव के हैं क्या जो दोनों में से किसी एक का साथ देना ज़रूरी है। ये तो कोई समस्या हुई नही भाई....
    दूसरा विकल्प है कि चाय पीना ही छोड़ दें...

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  16. .

    सर, जब जयंत के यहाँ चाय पीने की नौबत आये, तो..

    दिमाग के दीमकों को फ़्राई करके , उन कुरकुरे दीमकों के साथ
    चाय का मज़ा लें । संतुष्टि की गारंटी मेरी...ही ही ही

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  17. समस्या गम्भीर है.
    दीमकी बैठक के जो निर्णय होगा सुना दिया जयेगा. तब तक आप चाय का स्वाद लीजिए:)

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  18. mohit ka moh na chhoote...isi moh-maya se chai swadisht lagti hai.baki sab nazarye ka farq hai.donon chai hi bech rahe hain na.amrit ki khoj karen.

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  19. मेरे विचार से आप मोहित, जयंत व चाय को छोड़कर ब्लॉग लिखिए। यहाँ आपकी अधिक जरूरत है।
    घुघूती बासूती

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