Saturday, August 15, 2009

भारतीय साहित्य में क्या खाक रखा है ?

पराए पत्तल का भात अच्छा लगता है भाई

मैं अपने साथ के किसी भी लेखक कवि आलोचक से कत्तई नाराज नहीं हूँ। मेरा नाराज होने का कोई हक भी नहीं बनता। यदि भारतीय कविता या साहित्य में कुछ है ही नहीं तो वे क्या करें। बेचारे। विपन्न जो ठहरे। वे लोग यदि बात बात पर अपने लेखों में यदि विदेशी कविता के स्वर नहीं छापेंगे तो क्या देशी कविता छाप कर देशज होने का लांछन अपने सिर लेंगे। वे यदि विदेशी भाषा के आलोचकों के विचारों से ऊर्जा नहीं ग्रहण करेंगे तो क्या देशी घुग्घू पंडितो के अछूत विचारों से प्रभावित होकर अपनी तौहीन कराएँगे। वैसे भी पराए पत्तल का भात अच्छा लगता है। ब्लॉग से लेकर साहित्य तक जिसे देखिए विदेशी कविता की माला फेर कर गदगद है। हर कोई छापे उच्चारे पड़ा है। मैं भी उन सब कवियों कविताओं आलोचक और आलोचनाओं का हार्दिक स्वागत करता हूँ। किंतु वे सभी मेरे लिए न तो आदर्श हैं नही कंठहार बनाने का कोई मन है। मैं तो देशी कविता से ही नहीं उबर पा रहा हूँ। हाँ जब देशी को पढ़ कर तृप्त हो जाऊँगा तो देखूँगा बाहर के महान काव्य स्वरों को। यह मेरा हठ है। क्या करूँ।

अभी राहुल सांकृत्यायन का संस्कृत काव्य धारा पढ़ कर मस्त मगन था कि साहित्य अकादमी दिल्ली से प्रकाशित एक दुर्लभ ग्रंथ सदुक्ति कर्णामृत हाथ लग गया। श्री धर दास न इसे 1205 -6 में संकलित सम्पादित किया था। ऐसे प्राचीन ग्रंथ को सुव्यस्थित ढंग से अनूदित और सम्पादित किया है संस्कृत हिंदी के प्रकाण्ड विद्वान राधा वल्लभ त्रिपाठी ने। हर कंटेंट पर पाँच कविताएँ हैं। कुल चार सौ छिहत्तर विषयों पर इस ग्रथ में दो हजार तीन सौ साठ कविताएँ संस्कृत मूल के साथ संकलित है। मैं दावे से कह सकता हूँ कि हर कविता अनमोल है और देशी विदेशी किसी भी कवि या कविता से अपने कथन में कहीं बहुत सुचिंतित और सुगठित है। राधा वल्लभ जी ने हिंदी और संसकृत के बीच एक सुदृढ़ सेतु के रूप में अपनी भूमिका दर्ज कराई है। उनके काम का सत्कार किया जाना चाहिए। आज उनके सदुक्ति कर्णामृत से दो कविताएँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। आगे इसी क्रम में मंगलदेव शास्त्री, राहुल सांकृत्यायन, बशीर अहमद मयूख, नर्मदेश्वर चतुर्वेदी, गोविंद चंद्र पाण्डे, रघुनाथ सिह, प्रभुदयाल अग्निहोत्री, आचार्य राम मूर्ति, कमलेश दत्त त्रिपाठी, मुकुन्द लाठ, जगन्नाथ पाठक, कपिलदेव दिवेदी इत्यादि विद्वानों द्वारा किए गए अनुवादों को इस कामना के साथ छापूँगा कि मित्रों कभी कभार इधर भी देख लो अपने घर में अपने दरिद्र कोठार में । इसी कोठार से मैं मयूख जी की एक कविता पहले भी यहाँ छाप चुका हूँ।
आज आप पढ़े दरिद्र की ग्रृहणी विषय में संकलित पाँच में से दो कविताएँ।

दरिद्र की घरवाली

पूरी तरह बैरागन बन गई है अब वह
गल रहा है उसका तन
तन पर के कपड़े
हो रहे हैं चिथड़े-चिथड़े
भूख से कुम्हलाई आँखों और पिचके पेट वाले
उसके बच्चे
उससे करते हैं निहोरा
कुछ खाने के लिए
दीन बन गई है वह
लगातार बहते आँसुओं से धुला है उसका चेहरा
दरिद्र की घरवाली
एक पसेरी चावल से
काट लेना चाहती है सौ दिन। ( कवि वीर)

गरीब की जोरू

वह भीग चुके सत्तू का शोक मना रही है
वह चिल्ल पों मचाते बच्चों को चुप करा रही है
वह चिथड़े से पानी के चहबच्चे सुखा रही है
बचा रही है बिस्तर पुआल का
इस टूटे टपकते पुराने घर में
टूटे सूप के टुकडे से ढंकते हुए सिर
क्या-क्या नहीं कर रही है गरीब की घरवाली
जबकि देव बहुत जोर से बरस रहे हैं लगातार। ( कवि लंगदत्त)

सदुक्तिकर्णामृत, मूल्य-५०० रूपए, पृष्ठ-८००, संपादक राधा वल्लभ त्रिपाठी, साहित्य अकादमी, रवीन्द्र भवन, 35 फिरोजशाह मार्ग, नई दिल्ली-110001

20 comments:

  1. बहुत अच्छी कवितायें। इनको पढ़वाने का शुक्रिया।

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  2. एकदम वाजिब और सही बात - मेरी समझ में आई--------हालाँकि किसी हद तक ये भी जानता हूँ कि आपने कितना विदेशी साहित्य पढ़ रखा है ! उसे औरों की तरह पग पग पर टपकाया नहीं, संजोए रखा!

    भारतीय साहित्य में भी पारंपरिक उर्दू कविता पर आप से बहस कर सकने वाले कम ही होंगे!

    वो नीलाभ और लोकभारती के छापामार अभियान याद हैं मुझे !

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  3. ऐसा क्‍यों लग रहा है कि ये अभी इसी वर्ष इसी महीने और पिछले हफ्ते की कविताएं हैं ।

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  4. यूनुस भाई यह पूरा संग्रह इसी तरह की कविताओं से भरा है, और कोई भी कविता पुरानी नहीं लगती। अनूप जी आगे कुछ और कविताएँ पढ़वाऊँगा। शिरीष आभारी हूँ।

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  5. पतरी पर क भोजन बहुत स्वादिष्ट बा!

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  6. संस््कृत में ऐसी कविता लिखी गई थी! अच््छी खबरी ली है आपने।

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  7. Yah granth mere paas bhee hai - halanki in kavitaon mein mera dusht man itna nahin ram pata par kaam bahut mahatvapoorna hai,prerak bhee.
    aur ek vyapak karobar bar aapki raay bhee achchee lagi.

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  8. ज्ञान भाई आपकी टीप पाकर आनन्द आया, बेद भाई आपने पढ़ा अच्छा लगा, गिरिराज प्यारे आपके दुष्ट मन की रचनात्मकता का बहुत सम्मान करता हूँ,

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  9. अच्छी कवितायें..पढ़वाने का शुक्रिया.

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  10. हम तो बस पढ़ते जा रहे हैं, जो-जो मिलता जा रहा है। देखें तृप्ति कब तक मिलती है।

    अनुपम कविताओं का शुक्रिया।

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  11. जरूरी काम है भाई...वरना..ब्लाग जगत में अब आनंद बक्षी को राष्ट्रकवि न मानने और हुस्न की मलिका जीनत अमान पर न लिखने पर लानतें बरस रही हैं। भूतों ने भी डेरा जमा लिया है।
    इस आभासी दुनिया को सार्थक बनाने के लिए ऐसे हस्तक्षेप जरूरी हैं वरना शून्य तो कहीं रहता नहीं।
    सबसे पहली फुर्सत में किताब खरीदनें साहित्य अकादमी के दफ्तर जाऊंगा। ...डटे रहिए..

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  12. जबर्दस्त खज़ाना। मयूख जी के हवाले से कुछ सुस्वादु पकवान चखे थे पहले....
    अब आपने जो परोसा है ये सब तो तृप्त तो नहीं हुआ बल्कि क्षुधा बढ़ गई है...अद्बुत ....

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  13. अजित भाई आपका आशीष पाकर अच्छा लगा, प्यारे पंकज हम पीछले बीस- बाईस सालों से एक साथ डटे हैं, डटे रहेंगे....बस साथ बना रहे।

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  14. अच्छी कवितायें पढ़वाने का शुक्रिया।

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  15. का भाई काहे देसी के पीछे पडे हैं
    अरे ओलिश-पोलिश-अर्मन-जर्मन लाईये ना ढूंढ कर
    मकडोनाल्ड के जमाने मे सब मल्टीनेसनल नू चाहिये।
    हमहू को अब सत्तू नही जमता…

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  16. bhai wah! achchhi kavitayen padhawai apane.

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  17. आप लोग ये क्या करते रहते है जनाब. अपनी मन की खुशी के लिये कुछ भी न लिखा करे...लोग बोल रहे है ..ड्टे रहो..क्या किसी युध में लगे है....या घर के कमरो में आराम फरमाते हुए देश दुनिया को बदलने का ख्वाब देख रहे है..चन्द्रपाल
    aakhar.org

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  18. नेक्स्ट जेनेरेशन जी
    एक लेखक को क्या करना चाहिए बता दें वही करेंगे। घर में बैठ कर न लिखेंगे। न डटे रहेंगे। अपने सुख के लिए न लिखेंगे। उत्साह में कुछ लोग डटे रहो बोल गए उनकी तरफ से हम माफी माँगते हैं। लेकिन लिखूँ कि नहीं यह तो बता ही दीजिएगा।
    आपका
    बोधिसत्व

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  19. भाई सडक पर जुलूस, अभियान सब ख़ूब किया है … करते हैं पर ससुरा चौराहे पर बैठ कर लिखा कैसे जाये कभी समझ नहीं पाये।
    हां इस जुनून में श्मशान पर बैठ के शान्ति से लिखा है जम के।

    इ अगले पीढी के भाई बतायें कि लेखक लिखने के मैदान में न डटे तो कहां डटे?

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  20. असली जनवादी कविताएं तो ये हैं . पुराना भारतीय साहित्य क्या है यह तो तब पता लगेगा जब गहरे पैठेंगे . आखिर निकाल कर लाए कि नहीं ये दुर्लभ कविताएं .

    रही बात ’नेम ड्रॉपिंग’ की तो इसके कई रोगी क्लिक भर की दूरी पर झिलायमान हैं . नागार्जुन ने मंत्र कविता क्या इन्हीं के सम्मान में लिखी थी ?

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