Tuesday, February 5, 2008

लड़ कर मरना बेहतर होगा

मैं मुंबई क्यों छोड़ूँ ?

भाई चाहे राज कहें या उनके ताऊजी मैं तो मुंबई से हटने के मूड में एकदम नहीं हूँ..... मैं ही नहीं मेरे कुनबे के चारों सदस्य ऐसा ही सोचते हैं...लेकिन हम सब और खास कर मैं किसी राज ठाकरे या उसके गुंड़ों से मार ही खाने के लिए तैयार हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरे पास कोई फौज नहीं है न ही कोई समर्थकों का गिरोह ही। मैं तो अभी तक यहाँ का मतदाता भी नहीं हुआ हूँ...बस रह रहा हूँ और आगे भी ऐसे ही रहने का मन है.....

जो लोग मुंबई को अपना कहने का दंभ दिखा रहे हों...वो सुन लें...
कभी भी अगर बीमार न रहा होऊँ तो १५ से १७ घंटे तक काम करता हूँ...इतनी ही मेहनत हर उत्तर भारतीय यहाँ करता है...वे या मैं किसी भी राज या नाराज ठाकरे या उनके मनसे के किसी सिपाही से कम महाराष्ट्र या मुंबई को नहीं चाहते हैं... अगर उनके पास कोई राज्य भक्ति को मापने का पैमाना हो तो वे नाप लें अगर उनसे कम राज्य भक्त निकला तो खुशी से चला मुंबई से बाहर चला जाऊँगा....

लेकिन अगर मेरे मन में कोई खोट नहीं है और मैं एक अच्छे शहरी की तरह मुंबई को अपना मानता हूँ तो मैं अपनी हिफाजत के लिए गोलबंद होने की आजादी रखता हूँ....अगर हमें खतरा लगा तो बाकी भी खतरे में ही रहेंगे...

क्योंकि
तोड़- फोड़ के लिए बहुत कम हिम्मत की जरूरत होती है....लूट और आगजनी से बड़ी कायरता कुछ नहीं हो सकती....रास्ते में जा रहे या किसी चौराहे पर किसी टैक्सी वाले को उतार कर पीटना और उसके रोजीके साधन को तोड़ देना तो और भी आसान है....

मैं यह सब कायरता भरा कृत्य करने के लिए गोलबंद नहीं होना चाहूँगा बल्कि मैं ऐसे लोग का मुँह तोड़ने के लिए उठने की बात करूँगा जो हमें यहाँ से हटाने की सोच रहे हैं....

मेरा दृढ़ मत है कि उत्तर बारत के ऐसे लोगों को आज नहीं तो कल एक साथ आना होगा .....उत्तर भारतीयों को एक उत्तर भारतीयों को सुरक्षा देने वाली मनसे के गुंड़ो को मुहतोड़ उत्तर देने वाली उत्तर सेना बनाने के वारे में सोचना ही पड़ेगा....


जो लोग आज भी मुंबई में अपनी जातियों का संघ बना कर जी रहे हैं....मैं उन तमाम जातियों को अलग-अलग नहीं गिनाना चाहूँगा....उत्तर भारत से बहुत दूर आ कर भी आज भी बड़े संकीर्ण तरीके से अपने में ही सिमटे हुए लोगों से मैं कहना चाहूँगा कि
...
आज जरूरत है सारे उत्तर भारतीयों को एक साथ आने की जिन्हें यहाँ भैया कह कर खदेड़ा जा रहा है....
उनमें अमिताभ बच्चन भी हैं जो कि अभिनय करते हैं...और शत्रुघन सिन्हा भी
उनमें हसन कमाल भी हैं...जो कि लिखते हैं...और निरहू यादव भी जो कि सब कुछ करते हैं.........
उनमें राम जतन पाल भी हैं जो किताब बेंचते हैं और सुंदर लाल भी जो कि कारपेंटर हैं...
जिनका दावा है कि हम काम न करें तो मुंबई के आधे घर बिना फर्नीचर के रह जाएँ......

तो आज नही तो कल होगा.....
संसाधनों के लिए दंगल होगा....

और इसके लिए तैयार रहने को मैं कायरता नहीं मानता। ऐसा मैं अकेला ही नहीं सोच रहा ऐसे लाखों लोग हैं जो अपनी मुंबई को छोड़ने के बदले लड़ कर मरना बेहतर समझेंगे।

11 comments:

राजीव जैन said...

इस लडाई में आपके साथ
राज ठाकरे की गुंडई ज्‍यादा दिन नहीं चल सकती।

Gyan Dutt Pandey said...

सही बात। ठाकरे जी की अतिवादिता को स्पष्ट और संयमित प्रतुत्तर की जरूरत है - जैसा आप दे रहे हैं।

दिनेशराय द्विवेदी said...

जरुरत सारे उत्तर भारतीयों को एक साथ लाने की नहीं बल्कि सारे भारतीयों को एक साथ लाने की है। राज ने इसी पर तो हमला किया है।

अभय तिवारी said...

मुम्बई आप की है यहाँ तक तो सही है.. पर उत्तर सेना बनाने की सोच नफ़रत की राजनीति में एक तरफ़ बन कर उसको हवा देना है.. भाई, वो तो चाहते ही हैं कि लोग जवाबी हमला करें.. पलटवार करें.. ताकि हो जाय शुरु बेकार का खून-खराबा बेकसूर लोगों के बीच.. ये मुद्दा है ही नहीं, ये तो फ़ासीवादी धूल है जो हमारी आँखों में झोंकी जा रही है..

बोधिसत्व said...

अभय भाई
हम शांति पूर्वक न रह पाने के बाद की बात कर रहे हैं...क्या आत्म रक्षा के लिए संगठित होना गुनाह है...और मैं आम मराठियों को उत्तर देने की बात भी नहीं कर रहा....मैं तो उनको उत्तर देने की बात कर रहा हूँ जो हमें ठोक रहे हैं..

बोधिसत्व said...

दिनेश जी मैं तो तैय्यार हूँ आप राज ठाकरे को यह बात समझा देते तो बढ़ियाँ होता....मैं तो सिर्फ उस वक्त की बात कर रहा हूँ जब मामला सड़क से हट कर घरों तक आ जाए और पुलिस ऐसे ही देखती रहे और राज ठाकरे किसी पुलिस वाले की बेटी की शादी में लड्डू भी खाता मिले....

azdak said...

विजय पंडित नवनिर्माण सेना का कोई चिरकुट शाखा प्रमुख नहनहीं, सिटीबैंक वर्ल्‍डवाइड का वर्तमान अध्‍यक्ष है, नस्‍ली ठुल्‍ले उसके न्‍यूऑर्क के उसके राजशाही बिल्डिंग से बाहर लाकर ठोंकना शुरू कर दें, राज की ठकुरैती उसमें लड़ि‍यायेगी कि आं-बां बकना शुरू करेगी? और बनारस के घाटों पर के महाराष्ट्रियन पंडितों की धुनाई से? राजकुंवर जी का मन-मयूर नाचेगा कि नहीं?

Ashish Maharishi said...

मुझे तो बस ऐसे माहौल में गांधी बाबा की याद आ रही है, हम सब को मिलकर राज ठाकरे एंड पार्टी को लाल गुलाब देकर कहना चाहिए गेट वेल सून राज भईया

Sanjeet Tripathi said...

आपका यह स्टैंड अच्छा लगा लेकिन यह समझ में नही आया कि क्या जवाब में उत्तर भारतीयों की सेना तैयार करने के अलावा और कोई विकल्प नही?

बोधिसत्व said...

भाई संजीत
यह तो आखिरी विकल्प है....और हम सभी मानते है कि बीच का रास्ता कभी-कभी काम नहीं आता....अगर पुलिस लोगों को पिचती देखती रहेगी...
अगर सरकार सुध नहीं लेगी तो शायद आपको भी वहाँ से आना पड़ेगा...यहाँ लड़ने के लिए या हमारे शव ले जाने के लिए...

Priyankar said...

संगठित तो होना ही होगा . बाकी देखा जाएगा .