कबीर के पाँच दोहे जिन्हें गाता जा रहा हूँ
कभी-कभी ऐसा होता है कि आप के मन पर कुछ बातें छा जाती हैं। मेरे मन पर कबीर साहब के कुछ दोहे छाए हुए हैं
मैं मन ही मन इन दोहों में भटकता रहता हूँ। मेरी आदत है मुझे शब्दों का सहारा चाहिए। मैं कभी अंदर से खाली रह नहीं
पाता। तो मैं कुछ भजता रहता हूँ। मन में मोह है माया है लेकिन मन में कबीर समाया है। तो आजकल कबीर साहेब के इन दोहों को भज रहा हूँ। गुनगुना रहा हूँ। आप भी पढ़ें और डूबे
उतराएँ या छोड़ कर पार उतर जाएँ।
हेरत-हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ।
बूंद समानी समंद मैं,सो कत हेरी जाइ।।
हेरत-हेरत हे सखी,रह्या कबीर हिराइ।
समंद समाना बूंद मैं,सो कत हेर् या जाइ।।
तूं तूं करता तू भया, मुझमें रही न हूं।
वारी तेरे नाम पर जित देखूँ तित तूं।।
सुख में सुमिरन ना किया,दुख में कीया याद।
कह कबीर ता दास की कौन सुने फरियाद।।
कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया न जाइ।
नैनूं रमइया रमि रह्या, दूजा कहां समाइ।।
मुझे कबीर के और भी दर्जनों पद कंठस्थ हैं। लेकिन इनमें क्या है कह नहीं सकता।
Friday, April 30, 2010
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