
मुझे 1999 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिला था। करीब 11 साल हो गए तब से अब तक मैंने भारत जी पर न कुछ लिखा न कहीं कवि रूप में उनकी चर्चा ही की। बस घर में उनके नाम पर मिले सम्मान को सजा कर खुश हूँ।
इसी बीच में फरवरी में विभूति नारायण राय से मेरी मुलाकात हुई। बातों के सिलसिले में उन्होंने लगभग ताना सा मारते हुए कहा कि जिन कवियों-आलोचकों के नाम पर सम्मान दिए जाते हैं उन पर लोग क्यों नहीं लिखते। मैंने तभी उनसे कहा था कि मैं भारत भूषण अग्रवाल जी और गिरिजा कुमार माथुर जी पर कुछ कर सकता हूँ। उन्होंने तभी हामी भर दी और कहा कि विश्वविद्यालय के लिए मैं भारत भूषण अग्रवाल जी की एक संचयिता संपादित कर दूँ। मैंने भी इसे एक सुअवसर की तरह माना और संपादित करने की स्वीकृति दे दी।
कई महीनों की सुस्ती के बाद इसी हप्ते मैंने भारत जी की पुत्री श्रीमती (प्रो.) अन्विता अब्बी जी से मेल और चैट पर बात करके इस संचयिता की योजना की जानकारी दी। मैंने इस संदर्भ में उनसे विभूति जी की योजना को विस्तार से बताया और मेल से ही पत्र भी भेंज दिया। मुझे अच्छा लगा कि अन्विता जी ने खुशी-खुशी इस संचयिता को हिंदी विश्वविद्यालय से प्रकाशित करने की स्वीकृति दे दी है।
इसी सिलसिले में हो रहे चैट में अन्विता जी ने कहा कि विभूति नारायण राय जी ने महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय को गर्द में जाने से बचाया है। मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि विभूति जी ने मेरे लिये भी एक अवसर उपलब्ध कराया कि मैं भारत जी पर कुछ कर पाऊँ। मेरी पूरी कोशिश होगी कि यह संचयिता पीछे की सारी संचयिताओं से बेहतर भले न हो कमतर तो नहीं हो। और विश्वविद्यालय के मानको पर खरा उतर सके मेरा संपादन।
मैं कोई महान काम नहीं कर रहा बल्कि भारत जी के नाम से जो एक सम्मान लेकर बैठा हूँ उससे उऋण होने की कोशिश भर कर रहा हूँ। मेरी दृढ़ मान्यता है कि जिन 30 कवियों को यह सम्मान मिला है यदि वे सभी एक-एक लेख भी भारत जी पर लिख दें तो शायद उनका एक समग्र मूल्यांकन हो जाए। लेकिन हर वो बात कहा होती है जो हम चाहते हैं। आज भारत जी पर मिल रहा सम्मान हिंदी कविता की शान है लेकिन भारत जी पर उनके सकालीन और परवर्ती कवि-लेखक-आलोचक बाबाओं की तरह मौन हैं। पिछले कई सालों से पुरस्कार सम्मान की वार्षिक घोषण के अलावाँ मैंने कुछ नहीं पढ़ा भारत जी पर। शायद यह मेरी काहिली हो। इस पर क्या कह सकता हूँ।
प्रस्तुत है भारत जी की चार देखन में छोटन लगे घाव करें गंभीर कविताएँ।
तुक की व्यर्थता
दर्द दिया तुमने बिन माँगे, अब क्या माँगू और ?
मन के मीत ! गीत की लय, लो, टूट गई इस ठौर
गान अधूरा रहे भटकता परिणति को बेचैन
केवल तुक लेकर क्या होगा : गौर, बौर, लाहौर ?
न लेना नाम
न लेना नाम भी अब तुम इलम का
लिखो बस हुक्के का चिलम का
अभी खुल जाएगा रस्ता फिलम का।
तुक्तक और मुक्तक
( आत्मकथा की झाँकी)
मैं जिसका पट्ठा हूँ
उस उल्लू को खोज रहा हूँ
डूब मरूँगा जिसमें
उस चुल्लू को खोज रहा हूँ।।
समाधि-लेख
रस तो अनन्त था. अंचुरी भर ही पिया
जी में बसन्त था, एक फूल ही दिया
मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है :
कैसे बड़े युग में कैसा छोटा जीवन जिया !
नोट- गूगल में हिंदी में भारत भूषण अग्रवाल टाइप करके इमेज खोजने पर भारत जी की जगह तीस बत्तीस कवियों की छवियाँ सामने आती हैं लेकिन भारत जी कहीं नहीं दिखते। यहाँ प्रकाशित भारत जी की फोटो श्री अशोक वाजपेयी जी द्वारा संपादित, राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उनकी प्रतिनिधि कविताएँ से साभार लिया गया है।