2 और 3 अक्टूबर को वर्धा में एक विराट उत्सव है
अज्ञेय, नागार्जुन, शमशेर, केदार, फैज, अश्क और नेपाली ये सभी कवि लेखक भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक मर्यादा के संरक्षक और उन्नायक रहे हैं। यह साल हिंदी उर्दू के इन बड़े महारथी लेखकों की जन्म शती का साल है। लेकिन हिंदी समाज ने अभी तक इन महानों के जन्मोत्सव पर कोई वृहद् सांस्कृतिक संयोजन किया हो ऐसी सूचना नहीं आई है। कुछ आरम्भिक सुगबुगाहटों और दो एक पत्रिकाओं के विशेषांकों के अतिरिक्त एक विकट सन्नाटा समूचे देश में पसरा है। जिस तरह इस साल को एक जन्मशती वर्ष घोषित कर देने की सम्भावना दिख रही थी अभी तक वैसा कुछ बड़ा नहीं हुआ है। जानकारों के मुताबिक एक साथ इतने महान साहित्यकारों का जन्म शती वर्ष पहले सुनने में नहीं आया था। जन्म शती वर्ष के सुअवसर को हम हिंदी वाले शायद एक संस्कृति वर्ष बनाने में चूक रहे हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने इस सन्नाटे को तोड़ा है और उसने इस वर्ष को उत्सव वर्ष को रूप में मनाने का निर्णय लिया है। अपने घोषित कार्यक्रम में हिंदी विश्वविद्यालय इन में से पहले पांच कवियों यानी अज्ञेय, नागार्जुन, शमशेर, केदार, और फैज के दाय को सम्मान देने तथा उनके लेखन का गंभीर आकलन-मूल्यांकन करने जा रहा है। विश्वविद्यालय ने इस सांस्कृतिक संयोजन को “बीसवीं सदी का अर्थ और जन्मशती संदर्भ ” शीर्षक केंद्रीय अंतर्वस्तु के रूप में समझने का उपक्रम किया है।
इन कार्यक्रमों का आरम्भ विश्वविद्यालय के मुख्यालय वर्धा से गांधी जयंती के शुभ दिन पर हो रहा है। 2 और 3 अक्टूबर को संयोजित यह सांस्कृतिक उत्सव आगे के दिनों में देश के विभिन्न शहरों में होना तय है। इस प्रस्थानिक संगोष्ठी के बाद रामगढ़(नैनीताल) इलाहाबाद, पटना, बांदा, कोलकाता, दिल्ली में जन्मशती वर्ष के समापन तक कार्यक्रम होते रहेंगे। इन आयोजनों से शायद हिंदी समाज में व्याप्त विकट सन्नाटा टूटे। शायद एक नई सांस्कृतिक सुबह का समारम्भ हो।
मैंने कथाकार हरि भटनागर के सम्पादन में निकले वाली पत्रिका रचना समय के शमशेर अंक का अतिथि सम्पादन इसी जन्म शती वर्ष के संदर्भ में किया था। दैनिक भास्कर और नया पथ में मैने नागार्जुन बाबा पर समीक्षात्मक और संस्मरणात्मक लेख लिखे हैं और आलोचक मदन सोनी के संपादन में शमशेर जी पर प्रकाश्य पुस्तक में मेरा एक लेख प्रकाशित होने जा रहा है। यहाँ मुंबई की अस्तव्यस्त जिंदगी के बीच कुछ लिख कर अपने पूर्वजों से उनका स्नेह पाना चाहता हूँ। इसीलिए हिंदी विश्वविद्यालय के इस आयोजन की सूचना से मन में एक उत्साह जागा और मैंने तय किया कि केदार नाथ अग्रवाल की कविता पर अपना वक्तव्य दूँ। हम सब के लिए यह संतोष की बात है कि महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्याल भारतीय उपमहाद्वीप के इन महान संस्कृति सपूतों के महत्व को गंभीरता से रेखांकित कर रहा है। जो कि उसका कर्तव्य भी है।
2 और 3 अक्टूबर को वर्धा में एक विराट उत्सव है। देश भर से हिंदी के मान्य लेखक और आलोचक वर्धा पहुँच रहे हैं। अगले चरण में हिंदी विश्वविद्यालय उपेन्द्र नाथ अश्क और गोपाल सिंह नेपाली के जन्मशती पर भी बड़े कार्यक्रम संयोजित कर रहा है।
देश भर से और तमाम संगठनों संस्थाओं और व्यक्तियों ने इस मौके पर बहुत कुछ करने की घोषणा कर रखी है, अब देखना यह है कि उन योजनाओं में से कितनी पूरी होती है और कितनी रह जाती हैं। मैं तो सिर्फ इतना ही सोचता हूँ कहीं भी हो किसी भी स्तर पर हो हिंदी उर्दू के इस महान साधकों के लेखन पर मनन-मंथन हो।
नोट-
जन्म शती के अवसर पर देशबंधु समूह की पत्रिका अक्षरपर्व ने सर्वमित्रा सुरजन के संपादन में कवि अज्ञेय और नागार्जुन पर केंद्रित एक खास अंक निकाले हैं।
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4 comments:
हिन्दी पर आधारित उत्सवों की बधाईयाँ।
इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग दीजिएगा भईया, सर्वमित्रा जी के अक्षर पर्व पर प्रकाशित खास अंकों के साथ ही आपके पोस्ट का इंतजार है।
आपका भी ब्लॉग प्रिंट मीडिया पर : एक अखबार की अपील
यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि वर्धा स्थित विश्वविद्यालय ने हिंदी के इन महत्वपूर्ण कवियों की जन्मशती के बहाने एक बड़ा कार्यक्रम करने का फैसला किया है. आधुनिक रचनाशीलता के केंद्र में ये पांचो ही कवि हैं और इस जन्मशती के बहाने से न केवल उनकी रचनाधर्मिता का यह प्रासंगिक सम्मान होगा बल्कि हिंदी कविता के विकास, उसके परिवर्तनों, रूपाकार सम्बन्धी बहसों और डायनिमिक्स की भी एक मुकम्मल पड़ताल हो सकेगी. उम्मीद की जा सकती है कि यह कार्यक्रम हिंदी कविता के मूल्यांकन-सम्बन्धी सन्दर्भों का एक नया प्रस्थान-बिंदु निर्मित करेगा.
आप२-३ को वर्धा आ रहें हैं तो मुलाकात होगी।
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