Saturday, October 2, 2010

हिंदी विश्वविद्यालय में हिंदी महारथियों का जन्मशती उत्सव प्रारंभ


जन्मशती उत्सव के उद्घाटन सत्र में विषय प्रवर्तन करते हुए कुलपति विभूतिनारायण राय ने बीसवीं सदी की चर्चा करते हुए इसे सर्वाधिक परिवर्तनों की सदी बताया। उन्होंने कहा कि यह सदी हाशिये की सदी कही जा सकती है जिसमें हाशिए पर रहने वाले लोग- जैसे दलित, आदिवासी और स्त्रियाँ- पहली बार मनुष्य की तरह जीवन जीने का अवसर पा सके।

वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय का सभागार देश भर से आये साहित्यकारों और हिंदी प्रेमी श्रोताओं से खचाखच भरा था। बहुत दिनों बाद नामवर जी को छूने, भेंटने और सुनने का अवसर मिला और पचासी की उम्र में नामवर जी की मेधा अपने उत्कर्ष पर दिखी। उनको छूकर एक ऋषि और युग को छूने का आभास हुआ और भेंट कर लगा कि अपने किसी पुरखॆ से मिले हैं।

हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित जन्मशती उत्सव के उद्घाटन वक्तव्य में नामवर जी ने बीसवीं सदी के अवदान को कई कोणों से रेखांकित किया और बताया कि इसी सदी में प्रथम, द्वितीय और तीसरी दुनिया का आविर्भाव हुआ और अवसान भी। तीनो में से अब तीसरी दुनिया ही बची है। इसी सदी में दो विश्व युद्ध हुए और समाजवाद का उदय हुआ। सदी का अंत होते-होते समाजवाद का भी प्रायः अंत हो गया। उन्होंने याद दिलाया कि भक्तिकाल में सूर, कबीर व तुलसी के साथ मीरा का काव्य स्वर निरंतर सक्रिय रहा। छायावादी कवि त्रयी- प्रसाद, पंत, निराला- के साथ महादेवी वर्मा का चौथा दृढ़ स्वर जुड़ा था, किंतु अज्ञेय, केदार, शमशेर व नागार्जुन की पीढ़ी में कोई महान कवयित्री नहीं दिखती।

उन्होंने उक्त चारो कवियों में नागार्जुन के काव्य संसार को अलग से रेखांकित किया। नामवर जी ने जोर देकर कहा कि नौ रसों में विभत्स रस अज्ञेय और शमशेर के यहाँ खोजने पर न मिलेगा। किंतु नागार्जुन ने हिंदी कविता में उस उपेक्षित दुनिया को प्रवेश दिलाया जो नागार्जुन के पहले बहुधा बहिष्कृत थी। उस उपेक्षित दुनिया और दोहे उसके लोगों को ्नागार्जुन ने अपने तरीके से स्थापित किया। उन्होंने नागार्जुन के दोहों को कालजयी बताते हुए उनका प्रसिद्ध दोहा उद्धरित किया

खड़ी हो गयी चाँपकर कंकालों की हूक।

नभ में विपुल विराट सी शासन की बंदूक॥

जली ठूठ पर बैठ कर गयी कोकिला कूक

बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक

इस उम्र में नामवर जी की स्मृति और राजनीतिक दृष्टि की दाद देनी होगी। उन्होंने चलते-चलाते अज्ञेय को एक दरेरा दे ही दिया कि असली प्रयोगवादी नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल ही हैं न कि अज्ञेय और उनके द्वारा प्रचारित कवि।

नामवर जी के बाद बोलने आयी निर्मला जैन ने अज्ञेय की राजनीतिक समझ को रेखांकित किया। उन्होंने इस बात को साफ-साफ कहा कि १९४७ की भारत के विभाजन जैसी विराट त्रासदी और विस्थापितों की समस्या पर ऊपर के चारो कवियों में अकेले अज्ञेय ने ही लिखा। निर्मला जी ने अपने वक्तव्य में अज्ञेय की शरणार्थी श्रृंखला की ग्यारह कविताओं और उनकी शरणागत कहानी को उनकी राजनैतिक समझ का सबूत बताया। उन्होंने शरणागत को ‘सिक्का बदल गया है’ और ‘अमृतसर आ गया है’ जैसी कहानियों की श्रेणी में रखा। , वहीं उन्होंने नागार्जुन की इन्दू जी-इन्दू जी, आओ रानी हम ढोएंगे पालकी, और शमशेर की राजनैतिक कविताओं को उद्धरित करते हुए उनके महत्व को समझाया। निर्मला जी ने केदार की गृहस्थ जीवन से जुड़ी कविताओं को सुख-दुख की सहचरी को सम्बोधित कविताएँ बताया।

इस कार्यक्रम में आने वाले देश के कई मूर्धन्य साहित्यकार अगले सत्रों में अपना वक्तव्य देंगे जिनमें नित्यानंद तिवारी, सुरेंद्र वर्मा, खगेन्द्र ठाकुर, उषा किरन खान, धीरेंद्र अस्थाना, अरुण कमल, अखिलेश, अजय तिवारी, रंजना अरगड़े, कविता वाचक्नवी, दिनेश कुशवाह, बसंत त्रिपाठी, नरेंद्र पुंडरीक, गोपेश्वर सिंह, प्रमुख हैं। मुझे भी केदार नाथ अग्रवाल की कविता पर एक पर्चा पढ़ना है।

नोट: आगे हम आपको जन्मशती उत्सव की अगली रिपोर्ट देंगे और साथ में अज्ञेय की शरणार्थी श्रृंखला की कुछ कविताएँ भी पढ़वाने की कोशिश करेंगे। अपना वक्तव्य तो प्रकाशित होगा ही।


4 comments:

Dr.J.P.Tiwari said...

Good news. Thanks.

शरद कोकास said...

यह रपट बहुत बढ़िया लगी । आगे के विवरण की प्रतीक्षा रहेगी

उत्‍तमराव क्षीरसागर said...

अगली रपट की प्रतीक्षा....

Kavita Vachaknavee said...

खूब!