Wednesday, April 25, 2007

माफ करो भाई........

साधो जग बौराना
मैं बहुत हिम्मत करके विनय पत्रिका में कुछ कहने की कोशिश कर रहा हूँ......
मैं बात से नहीं बतंगड़ से हिचकता हूँ.....लेकिन मैं ब्लॉग के दुनिया को मुक्त गद्य का गुलाम बनाए रखने के पक्ष में नहीं हूँ, मित्रों मेरा निवेदन है कि ब्लॉग को तात्कालिकता और मांग के दबाव से जितना मुक्त रखें अच्छा रहेगा.....बात राम किशुन यादव उर्फ बाबा रामदेव की हो या बच्चन के महा विवाह की हमें इन सब की दुकानदारी से दो-चार तो होना ही पड़ेगा, दुल्हन ऐश के घूंघट का रंग दिखाने को बेताब पत्रकारों और उनके चैनलों को यह समझना होगा कि और भी दुख हैं जमाने में ...... आरक्षण की आग हो या संप्रदाय गत विवाद, निठारी के बच्चे हों या पाकिस्तानी टीम के कोच बूल्मर, मुलायम की फिर से काबिज होने की छटपटाहट हो या मायावती की अपने जन्मजात शत्रुओं मनुवादियों के जोर पर ताल ठोंकती मुद्रा हर एक के पीछे के जुगाड़ू रहस्य को बेपर्दा करने की जरूरत शायद नहीं रही, तो फिर हर वक्त सच दिखाने की कोशिश, हर हाल में खबर-पाने दिखाने की मुहिम, जनता को आगे रखने की सबसे तेज जंग का नतीजा आखिर क्या है, क्या लिख देने दिखा देने भर से फैसले हो जाते हैं, क्या हुआ उन तमाम सांसदों का जो घूस लेकर संसद में सवाल करते थे, वे नहीं तो उनकी पत्नियाँ या परिजन संसद पहुँचने के जुगाड़ में होंगे , इसलिए आज यह तय करने का वक्त है कि क्या ब्लॉग की दुनिया इधर उधर की माने तो मुक्त गद्य की दुनिया है, भाई अगर ब्लॉग का उपयोग इतना ही है तो मैं गपोड़ियों से कहूंगा कि इस मुल्क को बोल-बचन के यानि गप्प के कैंसर से बचाने की ज्यादा जरूरत है। रही बात सौहार्द्र की तो यह निरपेक्षता की तरह ही मरा हुआ और बेमानी शब्द है । शांति और अमन चैन की बात सरकारी कागजों में ठीक है भाई यहां तो कबीर के शब्दों में जग बौराया हुआ है और -

ऐसा कोई ना मिला, जासो रहिए लागि,
सब जग जलता देखिया, अपनी-अपनी आगि।

ऐसे में यह कहना कि सम्प्रदायिक मुद्दों को उठाने को कैंसर बताना शायद एक अलग तरह का कैंसर है । आज इतना ही ....बाकी कल...या फिर कभी

8 comments:

अभय तिवारी said...

मित्र अब आप लगातार लिखें ऐसी कामना है..

Yunus Khan said...

बोधि भाई
आपकी कविताएं नहीं पढ़ीं । आज लंच में दफ्तर से घर आया तो सूचना मिली कि आप भी चिट्ठाकारी की दुनिया में आ गये हैं । एक दूसरे से कुछ कि0मी0 की दूरी पर रहते हुए तो हम ज्‍यादा मिल ना सके लेकिन इस तकनीक से मुलाकात भी होगी और कविताएं भी । अब आप आ गये हैं तो महफिल खूब जमेगी । हमारी ओर से स्‍वागत ।

रवि रतलामी said...

चिट्ठाकारी की दुनिया में आपका स्वागत है. रहा सवाल केंसर का, तो हर एक के अपने अपने दर्द हैं, और हर कोई का दर्द दूसरे से ज्यादा बड़ा ज्यादा गंभीर है.

फिर भी, कम से कम अपन अपने आप के भीतर के केंसर से लड़ने का माद्दा तो पा ही लेंगे ... इन्हीं चर्चाओं के बहाने :)

SHASHI SINGH said...

बतकही तो बाद में खुब होगी... फिलहाल तो आपका स्वागत किया जाये। बोधिसत्वजी, आपका और आपकी विनय पत्रिका का स्वागत है। अब मुम्बई वालों की संख्या बढ़ रही है यह मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर हर्ष का विषय है। अभय भाई का धन्यवाद जो आपको इन गलियों में खींच लाये।

मसिजीवी said...

वोधिसत्‍व सवागत है आपका।
शांति, सद्भाव और निरपेक्षता भ चंद शब्‍द ही हैं जैसे कि मुक्‍त एक शब्‍द है।

आप लिखते रहें चिट्ठे पर भी, कविता की इच्‍छा हो तो कविता नहीं तो गद्य (मुक्‍त या बंद जैसा चाहें)

सुभाष मौर्य said...

नमस्‍कार बोधिभाई। मैं सुभाष चंद्र मौर्य। आप को चिट्ठाकारी की दुनिया में देख कर अच्‍छा लगा। दिल्‍ली में ज्ञानपीठ से जब सात कवियों के साथ आपकी कविता संग्रह का लोकार्पण हुआ था तो आपको देखा था। वैसे इलाहाबाद में रविकांत से पहले पहले आपके बारे में सुना था। उन्‍होंने आपकी कविता भी पढ़ायी थी। जेएनयू में आने पर जीतेंद्र श्रीवास्‍तव के साथ बैठकर आपकी कविता पागलदास का पाठ किया गया। बोधिभाई इस चिटृठेकारी की दुनिया में कोई कुछ भी कहने को स्‍वतंत्र है। कब तक उल जुलूल बातों का जवाब देते फिरियेगा।

Neelima said...

वैसे तो आप खूब छपते रहते हैं और इस लिहाज से प्रिंट के पाठक आपसे भली भांति परिचित हैं पर फिर भी चिट्ठाकारों की कविताई के प्रतिनिधित्‍व के रूप में आपकी भी एक कविता के लिए प्रकाशन अनुमति चाहिए। मेरे पास आपका ईमेल आई डी नहीं है कृपया neelimasayshi at gmail dot com पर संपर्क करें या कम से कम अपना आई डी भेज दें।
बाद में इस कमेंट को मिटा सकते हैं।

ePandit said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है। नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर अवश्य जाएं।