Saturday, May 24, 2008

प्रमोद और प्रत्यक्षा उर्फ साधु वचन का मर्म

वो एक बात बहुत नागवार गुजरी है.....जिसका फसाने में कोई जिक्र नहीं था....मेरी कुछ बातों के जरिए प्रमोद जी और प्रतयक्षा जी को अपनी हीनता उजागर करने का मौका मिला है और दोनो बुद्धिजीवी मित्र निकाल भी रहे है....साहित्यकारों की ब्लॉग में दुर्दशा पर उठाये गए मेरे सवाल इन दो साहित्यकारों को रास नहीं आए और बात मेरे चरित्रांकन पर आ गई........प्रमोद जी और प्रत्यक्षा जी ने मिल कर उखाड़-पछाड़ शुरू कर दी मैं भी ....उन दोनों ब्लॉगर लेखकों की तमाम जुगलबंदी पढ़ने पर बहुत सारी बातें मुझे निकलती दिख रही हैं.....जैसे-

1-मुँहफट होने और खरी-खरी कहने का पैदाइशी हक सिर्फ प्रमोद जी को है, अगर और कोई ऐसा करता है तो गलत करता है ......प्रमोद जी की मुँह फटई उनका गुन है...उनकी खरी, खरी है...बाकी की खरी, में खोट है....
2-मैंने किसी प्रत्यक्षा को कभी फोन नहीं किया है और अगर मेरे फोन से उन्हें फोन गया होगा तो उस संदर्भ को वे मुझसे बेहतर समझ सकती हैं....
3-मैंने किसी सलेक्ट सर्किल में कभी प्रत्यक्षा का नाम लिया हो ऐसा मुझे याद नहीं...यह उनका भ्रम है कि लोग उनके बारे में बात करके दिन बिताते हैं...
4- हो सकता है जब प्रत्यक्षा ब्लॉगगिंग का बी कर रहीं थी मैं गाँव में बथुआ बो रहा होऊँ....तो क्या मुझे अभी ब्लॉगर बनने का हक या कुछ कहने का अधिकार नहीं रह जाता.....क्या ब्लॉग वेद हैं....जिस पर केवल प्रत्यक्षा का ही हक है....किसी बोधिसत्व का नहीं...
5-लोगों को फोन करने और बात करने का हक भी सिर्फ प्रमोद और प्रत्यक्षा को है....बाकी कोई करे तो गलत है...हालाकि मैंने किसी को फोन नहीं किया है....साहित्यकारों की दुर्दशा वाली पोस्ट को छोड़ कर

6-किसी बूढ़े प्रकाशक को खुश करने की बात मैंने सामान्य संदर्भ में कही थी...जिस पर बिदक कर ये दोनों साहित्यकर्मी अपनी दाढ़ी के तिनके नोच रहे हैं...और उस नोच-खसोट का प्रदर्शन कर रहे हैं....
7-मैं परिपक्व इंसान नहीं हूँ.... यह तो मैं भी जानता हूँ... .कोई नहीं होता ...बस दो ही लोग परिपक्व है.... प्रत्यक्षा जी और प्रमोद जी...आप दोनों परिपक्व होने की बधाई स्वीकार करें....
8-मित्रता वही है जो प्रमोद और प्रत्यक्षा की है...बाकी दुनियादारी है....स्वार्थ का गठबंधन है...अगर अभय तिवारी मेरे बारे में कुछ लिखते हैं या मुझे खलनायक नहीं मानते तो यह भी उनका अपराध है..
9-कोई यदि बोधिसत्व का समर्थन करेगा तो वह अकेला पड़ जाएगा.....यह धमकी देकर प्रत्यक्षा जी क्या कहना चाहती है.....क्या किसी ब्लॉगर को अकेला करने की सोचना कुंठित और तानाशाही चरित्र की निशानी नहीं है....
.
10-किसी की बात को छिछला कहने का डीग्रेड आदि शब्दों से नवाजने का हक सिर्फ प्रत्यक्षा को है.....क्योंकि वे ही ऐसा कर सकती है....
10- मेरी पत्नी आभा की किताब अगर किसी को साध के छपानी होती जैसा की आप संकेत कर रही है....तो भी अभी नहीं छपती क्यों कि उसे ढ़लती उमर ( यह शब्द मेरे नहीं आदरणीय प्रमोद जी के हैं) का अपराधबोध नही है...जैसा कि प्रमोद जी के मुताबिक आपको है...
11- अगर आभा लेखन में दम नहीं होगा और छपास बलवती होगी तो हो सकता है कि आभा को भी किसी को साधना ही पड़े...
...
12-लीद, लड़ियाना, लथर-पथर...होना सब प्रमोद जी की बपौती है....वह उन्हीं के पास रहे....
14- प्रत्यक्षा काम-काजी महिला हैं.....लोगों को हैंडिल करना जानती हैं.... खास कर कर्मचारी या मजदूर वर्ग को....मैं उनसे आग्रह करूँगा कि किसी को बदले की भावना और संदेह के आधार पर हैंडिल न करें......
15- प्रमोद जी से उम्मीद करूँगा कि उनके मन में मेरे प्रति जो भी घृणा या हिकारत होगी मेरी इस पोस्ट पर ही निकाल लेंगे.....क्योंकि मैं हो सकता हैं आगे खुद पर थूकने का कोई भी मौका उन्हें न दूँगा..
16- मेरी पत्नी को निशाना बनाने के बाद अब मेरे परिवार में केवल भानी और मानस यानी मेरी बेटी और बेटा ही खल पात्र बनने से रह गए हैं....प्रत्यक्षा और प्रमोद जी मौका मत चूकिए । प्रमोद जी आप तो परसों-चौथा दिन मुझे देखने और बच्चों से मिलने घर भी आए थे....कोई न कोई धारणा तो बनाई होगी....उनके बारे में भी उसे भी लिख दीजिए...दबाकर दस बरस बाद निकालने से बेहतर होगा कि आज और अभी निकालें...हम सपरिवार आपकी राय का स्वागत करेंगे......

15 comments:

Neeraj Rohilla said...

हमे तो आपके स्वभाव के बारे में पहले से ही अनुमान था, और हमे किसी की सनद की आवश्यकता नहीं है चाहे तो अजदक हो या प्रत्यक्षा |
आप लिखते रहें, हम सब पढ़ते रहेंगे | ब्लॉग कौन सी विधा है, कौन सी नहीं; साहित्यकार ब्लॉग लिखे न लिखे हमे कोई परवाह नहीं |

साभार,
नीरज रोहिल्ला

डा. अमर कुमार said...

दिल ए नादाँ , इन्हें हुआ क्या है
कोई बताये इस ख़ब्त की दवा क्या है ?

Unknown said...

कविवर, काजल की कोठरी में घुसोगे तो क्या सांवकूल निकल आओगे?

Nandini said...

हो क्‍या गया है आपको? ...Are you Okay, man?

बोधिसत्व said...

नंदिनी मैडम जी
जितना अच्छा और सुंदर आपका इंदौर है मैं उतना ही सकुशल और सानन्द हूँ....आप की दुआ से .....आपसे बात करने का मन है....नंबर देगीं क्या....न हो तो आप ही फोन करें....मेरा नंबर है....9820212573....
जी एक 0 लगा लीजिएगा।

Gyan Dutt Pandey said...

कल मैं ब्लॉग जगत का कुछ नजारा ले आया। अब तो ढ़ेरों लोग लिख रहे हैं और ईर्ष्या दिलाने की सीमा तक अच्छा लिख रहे हैं। नये नये लोग।
महंतई तो और मार्जिनलाइज होती जायेगी।
वैसे साधु और खल में ज्यादा फर्क नहीं होता। एक नौजवान ब्लॉग लेखिका की यह पोस्टबहुत सटीक है!

azdak said...

तुम्‍हारे बच्‍चे बड़े प्‍यारे हैं (हालांकि अपनी हरकतों के बचाव में बार-बार जो तुम इनको और उनको के साथ-साथ भले, भोले बच्‍चों को घसीटे लाते हो, पता नहीं निज दुख कातर की वह कैसी पहुंची हुई स्थिति में वह तुमसे ऐसे उच्‍च कर्म करवाती है), जितना चार मुलाकातों में जाना है, आभा भी प्‍यारी है; तुम क्‍या हो उसके बारे में एक पोस्‍ट में मैंने लिखा, और जैसाकि कल तुमसे कहा भी, बहुत सुखी नहीं हुआ. मगर देख रहा हूं तुम अभी भी दिखा रहे हो तुम्‍हें सोलह तक की गिनती आती है.. मैं दुखदाता हूं, प्रतिशोधी सखा हूं, और तुम सत्‍यशोधक समाज के अग्रिम पांत के सिपाही हो? धन्‍य तो हो ही?

बालकिशन said...

खुदा करे जोर ऐ कलम ओर ज्यादा.
अब तो हम भी कुछ कहेंगे, कुछ लिखेंगे.
इंतजार कीजिये कल तक.

तीखी बात said...

mahan sahitaykaro aor gyani logo kab tak late rahonge yun hi?hamne man liya aap log mahan hai......ab jara kuch rachnaatmak kam ho jaye.........

thanedar said...

ब्लॉग के जंगल में बच्चों का क्या काम? यहाँ नाना प्रकार के हिंस्र पशु विचरण करते हैं. जरूरी हो तो उनके भी ब्लॉग खुलवा दें और वहाँ से अपने बालमन के झरोखे खोला करें.

गौरव सोलंकी said...

प्रणाम बोधिसत्व जी,
हालांकि आपके सामने बालक हूं, मगर एक निवेदन करना चाहता हूं कि आवश्यक नहीं कि सब विवाद हार या जीत के साथ ख़त्म किए जाएं। क्यों नहीं इस मुद्दे को हम लोग यहीं ख़त्म कर देते हैं?
आपकी कविता पढ़े बहुत दिन हो गए हैं। जैसे ही टिप्पणी पढ़ें, इस बालक की विशेष माँग पर एक नई प्यारी सी कविता पोस्ट करें। नहीं तो नंदिनी की जगह मुझे फ़ोन करके कविता सुननी पड़ेगी।

Nandini said...

हे एकता कपूर की 'के' सीरीज वाले क...क...क... कविराज...
आपने ये तो टीपा ही नहीं कि 0 (जीरो) शुरु में लगाना है या लाश्‍ट में... तो कैसे फोन करूं...

हे दुर..दुर...दुर... दुरवासा... शांत हो जाइये पहले तो... घबरा गये हैं हम आपकी भासा से... नंबर देंगी क्‍या वाले तेवर से... पगलुद्दीन हैं क्‍या हम... जो इस दौर में आपको फोन करें... क्‍या इन सबका क्रोध... इन सबकी भडास... आप हम पर नहीं निकाल देंगे...
हमारे कमेंटों से नाराज मत होइये... आप ही की तरह फट फट बोलती हूं... खरी बात करती हूं... क्रोधित हो गई तो कंटरोल फुर्र...

दिमाग शांत कर लीजिए... गुस्‍सा हटा दीजिए... हमारे और अपने बचपने को थोड़ा समय हो जाने दीजिए... तब बात करूंगी आपसे... ऐसा सुझाव आपके इलाहाबाद वाले एक दोस्‍त ने ही दिया है हमें... वरना हममें कहां इतनी मिच्‍योरिटी... हम तो धायं फोन लगा रहे थे कि जीरो अड़ गया... वही जिसकी पोजीसन आप नहीं लिखे...

और हां... ये सोच के फनफनाए हैं कि सच में ये नंदिनी है कि नहीं... कि कौनौ दुस्‍मन ई नाम से टारगेट कर रहा है... चलो फोन करने ललकारता हूं... खुलासा हो जायेगा... तो दो चार दिन में सावधान... कभी भी बज सकता है फोन आपका...

:-))))

चलिए...आप बड़े हैं... और समझदार हैं... हमको क्षमा कीजिए हमारी अभद्रता के लिये... शेष लोग आपको क्षमा करें आपकी अभद्रता के लिये...

Nandini said...

हां जी... एक बात और... गौरव जी की अर्ज पर ध्‍यान दें कृपया... एक सुंदर सी कविता पोस्‍ट करें... जिस पर कुछ प्‍यारा सा टीप सकें हम...

हम सुझा भी सकते हैं... कविता है 'दो आंखें'... दुखतंत्र के पृष्‍ठ 81 पर है... अभी भी हमारे सामने ही है...

नहीं तो हम अपने ही ब्‍लाग पर छाप देंगे इसे... साभार कहते हुए...

Unknown said...

बोधिसत्व! थम तो लड़ाई-टंटा छोड्डो अर कबिता लिखो . थारी कबिता मन्नै घणी भावै .

घटोत्कच जी और नन्दिनी महरानी तो म्हारे कूं एक महत्वाकांक्षी युवा कवि-पत्रकार-ब्लॉगर के आत्मरूप दीखैं . दोन्यू छायायुद्ध करैं सै . दोन्यूं थमनै नम्बर ना देंगे जी . इनके पीच्छे सीबीआई लगाणी पड़ैगी जी .

Kath Pingal said...
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