आम लोगों के रूह की आवाज सुनो
शायर कवि संगीतज्ञ सूफी संत अमीर खुसरो ने अपने जीवन के अंतकाल में अपने बेटे गयासुद्दीन अहमद को कुछ नसीहतें दी थीं...हो सकता है खुसरो की नसीहतें आपके भी काम आए...
पहली नसीहत यह है गयास बेटे मैंने हिंद की खाक को अपनी आँखों का सुरमा बना लिया है, इसलिए तू भी हिंद को ही अपना सब कुछ समझना ।
दूसरी नसीहत यह है क्योंकि तू भी शायरी करने लगा है, इस लिए मैं चाहूँगा कि हिंदवी जुबान में ही शायरी करना।
तीसरी नसीहत यह है कि गयास अपनी शायरी का कोई भी हिस्सा शाहों की खुशामद में बर्बाद मत करना , जैसा कि मैंने किया है...। मैं चाहता हूँ कि तू हिंद के आम लोगों में घुल मिल कर उनकी रूहों की आवाज सुन और फिर उस रूह की आवाज को ही अपनी शायरी की रूह बना लेना।
अब गयास ने अपने प्यारे अब्बा की किस नसीहत पर कितना अमल किया मैं कह नहीं सकता ना ही यह बता सकता हूँ कि आज वह कौन शायर कवि है जो आम लोगों के रूह की आवाज सुन रहा है और उस आवाज को अपनी शायरी की रूह बना रहा है...मुझे तो कोई नहीं दिख रहा है...आप को दिखे तो बताएँ...
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9 comments:
बहुत उम्दा नसीहतें हैं..अब खोजता हूँ मैं भी. खोज और होम दोनो घर से चालू करना चाहिये..खुसरो टाईप बुजुर्ग यह भी नसीहत दे गये हैं...तो आज तो खुद से ही खोज शुरु करता हूँ..अपना स्नेह बनाये रखिये..तो शायद खुद को खोजना सरल हो जाये. :)
आप सही कहते हैं। लेकिन बहुतों की भीड़ में कुछ लोग हैं जो आम लोगों की जुबान में आम लोगों की शायरी करते हैं। बस भीड़ में गुम हैं। आप पहचानिये तो सही।
घणे दिनो बाद चमकेजी। ब्लागर्स एसोसियेशन इत्ते दिनों तक गायब रहने के लिए आप पर फाइन करने वाली है।
क्या अनुकरणीय नसीहतें !
हमे दिख रहे हैं - बोधि भाई ।
एक लम्बे अंतराल पर आपने कोई पोस्ट लगाई ! मैं आश्वस्त हुआ !
कहीं व्यस्त रहे होंगे ?
बाक़ी आलोक जी ने कह दिया है !
इस पोस्ट से अमीर खुसरो के प्रति भी वैसे ही आदर भाव आते हैं, जैसे बाबा तुलसी के प्रति हैं।
बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट देख बहुत अच्छा लगा। नियमित रहियेगा।
क्या खूब नसीहतें दीं थी पिता ने ...
हुत अच्छी पोस्ट...
रूहानी आवाजें सभी लोग नही सुन सकते. किसी अच्छे ओझा या तांत्रिक को पकडिये!
( बहुत अच्छी और मार्मिक बात आपने कही है!!)
शायर बेटे ने तो नसीहत सुनी लेकिन हिंदी के ताकतवर तो इस बेटे को हिंदवी मानने को ही तैयार नहीं. असद जैदी पर ही ताजा हमला किया।
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