कुछ भी भूलता क्यों नहीं
बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि ले। लेकिन न जाने कितनी बातें, कितनी घटनाएँ हैं हैं जो चाह कर भी नहीं भुला पाया हूँ अब तक। पढ़ी हुई सैकड़ों कहानियाँ, कविताएँ, देखे हुए हजारों चेहरे मिटते नहीं दिमाग से।
गाँव का पुराना मकान । उसके घर । उसमें बिताई 17-18 साल की रातें और दिन और दोपहरें जस की तस बसी हैं जेहन में । घर के पास एक गोशाला थी । उसमें कई गाय और भैंसें होती थी। वह गोशाला नहीं है लेकिन उसकी एक एक छवि है मन में। उस गोशाले के साथ उसमें भँधे पशुओं के लाम और ऱूप तक याद हैं। एक भैंस थी जो दूध नहीं छोड़ती थी। हम सब ने उसका नाम मन चोट्टिन रखा था। कल एक वैसे ही भैंस दिखी यहाँ। मुझे लगा कि यह उसके ही कुल गोत्र की होगी। वह मेरे घर चंड़ी गठ से आई थी। पता किया तो यह भैंस भी चंड़ी गठ से आई थी। उसके मालिक ने बताया कि यह दूध ही नहीं छोड़ती। इलाज चल रहा है। मैंने मन ही मन कहा कि यह और मेरी मन चोट्टिन सच में एक ही वंश के होंगे।
क्या कोई उपाय है कि सब कुछ या जितना कुछ उड़ाना चाहो एक साथ एक झटके में उड़ा दो। बाकी काम का बचा लो। क्यों कि दिमग में उमड़-घुमड़ मची रहती है। अब तक जो कुछ भरा है उसे कैसे भूलें। कोई उपाय हो तो बताएँ।
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7 comments:
कुछ सूझे तो हमें भी बताईयेगा बीती बातें कैसे भूलते हैं..
कैसी कहानी में पढ़ा था कि नेपोलीयन जब जो चीज चाहता था उसे वो याद रहता था और जो चीज चाहता था भूल जाता था.. और इसने उसकी सफलता में बहुत योगदान दिया..
घर की याद सता रही है।
बहुत सही बात पूछी आपने, कहां कुछ भुला पाते हैं हम।
सब मन के कोने में बसता सा चला जाता है, किसी मौके पर ठीक संदूक के खुलते ही सब जगर-मगर होने की तरह बाहर निकल आता है और हम खो जाते हैं उन्हें याद करने में।
खबरदार , जो कुछ भी भूलने की कोशिश की...
sir, aapne thick hi likha hai!
पण्डितजी, आप अपनी लिख रहे हैं या मेरी। ऐसे ही विचार मेरे मन में चलते हैं।
dear, 'bhulna' do chijen hain. ek hai,kriya . dusra prakriya. jab hum bhulne ki koshish karte hain to yah 'kriya 'hoti hai. jab saprayas kuchh nahin karte, to vah hoti hai 'prakriya'. kriya na karen ,bhulte jayenge. han hum jarur yaad ayenge.
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