Friday, February 27, 2009

कुछ भी खोने का साहस नहीं बचा है मन में

उगना रे मोर कितै गेला

परसों घर से किताब लेकर निकला। हालाकि किताब और कलम लेकर निकलना मेरी आदतों में शामिल हो गया है। जब से होश सम्हाला है मुझे याद नहीं कि कभी घर से बिना किताब या कलमे के निकला होऊँ। मुझे याद नहीं कि कभी किसी से कलम माँग कर कुछ लिखा हो। जेब में चवन्नी न हो लेकिन एक कलम चमकती रहेगी। बगल में छुरी न हो लेकिन एक पोथी दबी रहेगी। जब घर से निकलता था तो पिता जी कहते थे देखो लैस होकर निकला है। वे मेरी इस किताबी आदत को बहुत बढ़ावा नहीं देते थे। कहते थे कि कभी-कभी बिना किताब के भी निकला करो। किताब के बाहर की दुनिया बहुत बड़ी है। लेकिन मैं बिना किताब के अपने को निहत्था पाता था।


लेकिन मेरी किताब के साथ जीने की आदत गई नहीं। हालात तो यहाँ तक है कि अगर तकिए के नीचे किताब ना हो तो मैं सो नहीं सकता। नीद गुम जाती है। वह किताब कैसी भी हो ......उपन्यास हो, कहानी हो कविता हो या जीवन चरित, लेकिन होनी चाहिए एक किताब।

सो परसों भी अपनी एक प्रिय पोथी लेकर या पिता जी के शब्दों में कहें लैस होकर निकला। लेकिन वह किताब कहीं राह में छूट गई। किसी प्रोडक्शन हाउस, किसी चाय की दुकान या कहीं। मैं याद नहीं कर पा रहा हूँ कि आखिर वह विद्या पति पदावली रह कहाँ गई। नागार्जुन सम्पादित वह पदावली तो खैर मिल जाएगी लेकिन उस पोथी के साथ जो गया वह कहाँ मिलेगा। बस उसे खोकर थका सा पा रहा हूँ। क्योकि मन कुछ भी खोकर पस्त हो जाता है। लगता है भीतर कुछ खोने का सहस ही नहीं बचा है।

लेकिन अभी क्या कर सकता हूँ। सिवाय जिसे खो दिया उसे याद करने के । आप कह सकते हैं कि ऐसा क्या खो गया। खोई हुई उस किताब में मेरे बेटे मानस के हाथ की छाप और उसकी एक फोटो चिपकी थी । घर में ऐसी कई किताबें हैं जिनमें बिटिया भानी या बेटे के हाथ का छाप है। मानस की वह फोटो और हाथ का छाप तब का था जब वह दो साल का भी नहीं था।
जब से खोया तब से मैं लगातार रह रह कर गा रहा हूँ विद्यापति का एक पद उगना रे मोर कितै गेला। मुझे नहीं लगता कि वह पोथी अब मिलने वाली है। हर उस जगह फोन किया जहाँ गया था, उन दो तीन दुकानों के चक्कर लगाए लेकिन नहीं मिली । अब मिलने की संभावना भी नहीं है। बस गाते या बिसूरते रहने के। हालाकि उस किताब मे मेरे पते का स्टीकर चिपका है। हो सकता है कोई फोन आए....

16 comments:

ravishndtv said...

काश ये किताब मुझे मिल जाती। मैं सहेज कर रख लेता. एक दिन बंबई आकर लौटा देने के लिए। दिल्ली में कोई किताब भी नहीं

222222222222 said...

इंतजार करें और भरोसा रखें किताब मिल जाएगी।

रंजना said...

Sachmuch aapki to bahumulya nidhi kho gayi....

संगीता पुरी said...

किसी भ्‍ज्ञले को मिला होता , तो अभी तक फोन आ ही गया होता .. फिर भी धैर्य रखें , कहीं वह व्‍यस्‍त हो ...एक दो दिन में फोन करे।

बोधिसत्व said...

रवीश .....दिल्ली में कोई किताब नहीं खोता....या क्या...अधूरे वाक्य से क्या कहना चाहते हो भाई
संगीता और अंशुमाली जी मुझे नहीं लगता कि अब वह किताब मिलेगी....फिर भी आप कह रेह हैं तो इंतजार करता हूँ...

Ashish Maharishi said...

किताब मिल जाए तो तो जरूर इतला किजीएगा

umesh chaturvedi said...

किसी किताब से जब जुड़ते हैं तो कई बार ऐसा लगता है कि किसी जिंदगी से जुड़ गए। और वही किताब खो जाती है तो लगता है जैसे जिंदगी ही खो गई..कई दिनों तक मन उदास-उदास सा रहता है। मैं भी कई बार ऐसी मानसिकता से गुजर चुका हूं।

ALOK PURANIK said...

मिलेगी, जरुर मिलेगी किताब मिलेगी।

अफ़लातून said...

हमेशा लैस रहिए , मेरे भाई ।

अनूप शुक्ल said...

लैस रहने वाली बात मजे की है। किताब मिलेगी कि नहीं हम का कहें लेकिन ई बात अच्छी लगी कि इसी बहाने एक ठो लेख लिख दिये।

Puja Upadhyay said...

उगना पर भरोसा रखिये...मिल जायेगी किताब. पेन हमेशा साथ रखने की मेरी भी आदत है. ऑफिस में लोग हमेशा मुझसे पेन मांगने आते थे की मेरे पास तो होगा ही...इस चक्कर में कई पेन लेकर चलती थी हमेशा.

Bahadur Patel said...

kitaab nahin milegi.
ab kya kar sakate hain bhuktbhogi jo hain.
holi mubarak.

दर्पण साह said...

main bhi jab se hosh sambhala hai pen leke to chalta hi hoon...//
haan par aapki tarah itna pakka nahi hoon//ab pichle kuch varshon se i pod ki aadat lag gai hai....//ye dono cheeze na ho to kai baar aadhe kam chor ke bhi ghar vapas jata hoon...

Ashok Kumar pandey said...

गुरु जी एक अनुभव की बात बताऊँ तो खोई हुई क़िताब और cछूट गयी दारू की बोतल कभी वापस नही मिलती।
अगली बार सावधान रहें

प्रदीप कांत said...

अगर किताब मुझे मिल जाएगी तो वादा करता हूँ कि मैं जरूर लौटा दूंगा.

बोधिसत्व said...

अगर आप को मिल जाए तो मेरी तरफ से आपको भेंट समझ कर रख लीजिएगा प्रदीप जी।