मोरे अवगुन चोरी करो
श्री कृष्ण को चोर वे ही कहते हैं जो उन्हें बेहद प्यार करते हैं। तभी तो राजस्थानी के एक कवि ने उन्हें बड़े गौरव के साथ चोर कह कर पुकारा है कि आओ और मेरे अवगुन चुराओ।
आजकल एक राजस्थानी किताब पढ़ रहा हूँ वीर विनोद। स्वामी गणेशपुरी(पद्मसिंह) ने इसकी रचना की है। स्वामी जी का जन्म 1826 और मृत्यु 1946 में हुआ था। ग्रंथारम्भ में उन्होंने श्री कृष्ण के साथ ही उनके पूरे कुटुंब की स्तुति की है। उस स्तुति में गणेशपुरी ने कृष्ण को खानदानी चोर कहा है। मैं यहाँ पर राजस्थानी में की गई वंदना और बाद में उसका श्री चंद्र प्रकाश देवल जी द्वारा किया गया गद्यानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सकुटुंब नंदनंदन स्तुति
।। मनोहर छंद।।
पाहन ससुर चोरे सत्यभामा चोरे तरु,
चोरी वंसी राधिका नैं कह्यो फेर डरको।।
चोरी कहौं रावरो तौ जीभ नाहीं लंबी चोरी,
चोरयो दधि दूध जामैं हिस्सा हलधर को।।
चोरन के चोर बसुदेव नंदराय चोर,
चोरन को जने परे मात चोर पर को।।
जांनों हरि ग्रंथ के अमंगल हू चोरे जेहैं,
जैहैं कित चोरी को स्वभाव सब घर को।।
" हे कृष्ण आपके ससुर ने मणि चुराई और आपकी पत्नी सत्यभाम ने इंद्र के सुनन्दन बाग से कल्पवृक्ष चुराया। आपकी प्रेयसी राधा ने स्वयं आपकी बांसुरी चुराई और कहा कि इस (चोरी) में डरना क्या । आपकी स्वयं की की हुई सारी चोरियाँ गिनवाऊँ इतनी तो मेरी जिह्वा की औकात नहीं पर कुछ छोटी चोरियाँ ते बता ही देता हूँ। आप जो दूध दही और मक्खन चुराते रहे उसमें हलधर बलराम का भी हिस्सा होता था इसलिए आपके भाई का शुमार भी चोरों में होगा।
इसी तरह आपको चोरों की तरह जन्म देने के सबब वसुदेव और माता देवकी भी चोर ठहरे और वहाँ से चोरी पूर्वक आपको ले जाकर पाल ने वाले नन्द बाबा और यशोदा मैया भी चोर हुए।
हे कृष्ण मुझे विश्वास है कि आप मेरे इस ग्रंथ के त्रुटि रूपी अमंगल को भी चुरा लेंगे क्योंकि आपकी सपरिवार चोरी की आदत है। और प्रसिद्ध खानदानी चोर से उसकी आदत इतनी आसानी से छूटती नहीं है यही सोच कर ग्रंथ के आरम्भ में आपकी स्तुति कर रहा हूँ।"
स्वामी जी ने श्री कृष्ण की अनेक चोरियों को एक ही पंक्ति में निपटा दिया। वे याद नहीं कर पाए कि कैसे बचपन में गोपियों के कपड़े चुराने वाले ने अपनी प्रेयसी रुक्मिणी को चुराया और उसी पैटर्न पर अपनी बहन सुभद्रा और अर्जुन को चोर बनाया। कैसे चोरी से यानी छिप कर द्रौपदी की लाज बचाई। क्या आप गिना सकते हैं ऐसे अनोखे खानदानी चोर श्री कृष्ण और उनके खानदान की कुछ चोरियाँ।
Sunday, October 4, 2009
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15 comments:
वाह ! कॉपीराइट में न मानने वाले मेरे जैसों को इन पंक्तियों तथा भावार्थ का ’विजेट’ अपने ब्लॉग पर लगा लेना चाहिए ।
गीता में जो श्लोक लिखे वो भी यहाँ-वहाँ से चुराये..
चोर-शिरोमणि श्रीकृष्ण की जय हो !
chavanni ke sansmaran kab milenge?yah saarvjanik tagada hai.
देखिये न कितनी सहजता है इसमे...ऐसा लगता है कि नायक इश्वर नही आम कोई नायक है. यह सहजता मुझ जैसे नास्तिक को भी पढ़ने और रसास्वादन का भरपूर अवसर देती है.
आज धर्म के नए ठेकेदारों ने जो माहौल बना दिया है उसमे यह चुहल मुमकिन है क्या? तो इस आजादी की चोरी का जिम्मेदार कौन होगा ?
बेहतरीन प्रस्तुति ... आभार
इसी चोर से बेहद प्यार है ..बेहतरीन पोस्ट
ए पंडितजी,
हम मुसलमान हैं तो क्या है, पर आप हमारे प्रिय कन्हैयालाल जी को चोर न कहें।
हमसे सुना न जाएगा।
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैयालाल की। भगवद्गीता एक धरोहर है। चोरी नहीं। हमारे मालिक की कोई खिल्ली न उड़ाए भाई। कोई नहीं।
कौन है हमारे कृष्ण जी से बड़ा कर्मयोगी ? है कोई ?
वाह बहुत बढ़िया खूब बखान किया है इस खानदानी चोर का, ये किताब तो हमको भी पढ़ना पड़ेगी, कहाँ मिलेगी कृपया बतायें।
इस कविता में जो प्रेम रस है, वह कहाँ पाइएगा?
इसे कहते हैं भक्तिरस और हिन्दू धर्म की विशालता, जहाँ ईश्वर को सिर्फ देवस्थान देकर दूर नहीं कर दिया जाता बल्कि सखा भाव से, प्रेम भाव से, यहाँ तक की उलाहना ही नहीं आरोपित करके भी दुलारा और पूजा जाता है....वाह !!
गजब की टिप्पणियां पाई हैं आपने ।
चोरी करने की आजादी अभी खत्म हो गई क्या ?
विवेक भाई
बताना भूल गया कि किताब साहित्य अकादमी नई दिल्ली से प्रकाशित है
वाह बोधि भाई , मुझे तो कृष्ण की अनेक चोरियाँ याद आ रही हैं जैसे बचपन मे पूतना का दूध चुराना ,अर्थात इतना की खून निकल आना ,शकटासुर की गाड़ी का माल चुराना और उसे नष्ट कर डालना ,त्रिवर्त जब पक्षी बन कर आया तो उसके पर चुराकर उसे मार डालना ,जिस खरल से उन्हे बान्धा गया वह खरल चुराना गोवधन को ज़मीन से चुराना ,इन्द्र के नन्दंवन से पारिजात का पेड़ चुराकर द्वारका मे लगाना ,और आठो पत्नियाँ किस तरह चुराई वह भी कथा है , । उनसे बड़ा चोर शिरोमणि और कौन हो सकता है ?। जय श्रीकृष्ण !!!
शरद भाई
आपने कृष्ण की चोरी में उनकी डकैतियों को भी मिला दिया। मैं चोर कृष्ण की बात कर रहा था।
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