कबीर के पाँच दोहे जिन्हें गाता जा रहा हूँ
कभी-कभी ऐसा होता है कि आप के मन पर कुछ बातें छा जाती हैं। मेरे मन पर कबीर साहब के कुछ दोहे छाए हुए हैं
मैं मन ही मन इन दोहों में भटकता रहता हूँ। मेरी आदत है मुझे शब्दों का सहारा चाहिए। मैं कभी अंदर से खाली रह नहीं
पाता। तो मैं कुछ भजता रहता हूँ। मन में मोह है माया है लेकिन मन में कबीर समाया है। तो आजकल कबीर साहेब के इन दोहों को भज रहा हूँ। गुनगुना रहा हूँ। आप भी पढ़ें और डूबे
उतराएँ या छोड़ कर पार उतर जाएँ।
हेरत-हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ।
बूंद समानी समंद मैं,सो कत हेरी जाइ।।
हेरत-हेरत हे सखी,रह्या कबीर हिराइ।
समंद समाना बूंद मैं,सो कत हेर् या जाइ।।
तूं तूं करता तू भया, मुझमें रही न हूं।
वारी तेरे नाम पर जित देखूँ तित तूं।।
सुख में सुमिरन ना किया,दुख में कीया याद।
कह कबीर ता दास की कौन सुने फरियाद।।
कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया न जाइ।
नैनूं रमइया रमि रह्या, दूजा कहां समाइ।।
मुझे कबीर के और भी दर्जनों पद कंठस्थ हैं। लेकिन इनमें क्या है कह नहीं सकता।
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11 comments:
सार छुपा है इनमें ।
बहुत कुछ अकथ होता है बोधि भाई…गूंगे के स्वाद से भी अधिक अकथ!
आप कुछ भी नहीं लिखते है। बहुत अच्छा लिखते हैं.. जिसने आपको न पढ़ा हो वह ऐसी बात कहता है लेकिन जलजला ऐसी बात नहीं कहता।
क्या कई कविताएं मैंने पढ़ी है। क्या सचमुच आप जैसे लोग भी ब्लागजगत में हैं। वरना यहां तो कूड़ा करकट देखकर मेरी हवा खराब हो गई थी।
बहुत समाने लायक बात समाई है..डूबे रहिये, डुबाते रहिये.
क्या दर्जन, क्या सैकड़ों
कबीर का एक ही अनंत है।
बढ़िया।
अजित भाई आप सही कह रहे हैं....कबीर का एक ही अनन्त है।
कबीर तो मुझे भी बहुत पसन्द हैं और अनेक दोहे कंठस्थ भी हैं. जीवन का सार इन दोहों में छुपा है.कभी-कभी लगता है कि किस ज़माने में कबीर इतनी गम्भीर बातें कह गये, जो आज भी सामयिक हैं.
सच कबीर का एक ही अनन्त है।
क्या कहने साहब
जबाब नहीं
प्रसंशनीय प्रस्तुति
satguru-satykikhoj.blogspot.com
बोधि भाई,
जीवन का बहुत सा कुछ बहुत कुछ कबीर से ही शुरु होता है और कबीर से ही अंत हो जाता है। चाहे कुछ भी पढ लें। सचमुच कबीर का एक ही अनंत हैं ... वैसे ही जैसे हरि अनंत हरि कथा अनंता...
आपने मुझे भी कबीर की याद दिला दी.....
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