Tuesday, August 10, 2010

स्त्रियों के पक्ष में है साक्षात्कार- निर्मला जैन

इस पूरे प्रकरण पर मुझे इस बात का बेहद खेद है कि अधिकांश लोग इस इंटरव्यू को बिना पढ़े विवाद का विषय बना रहे हैं और इसे नारेबाजी का एक रूप दे दिया है। इसमें आपत्तिजनक यह है कि इसमें ‘नया ज्ञानोदय’ पत्रिका के संपादकीय विभाग की लापरवाही या कहें कि संपादकीय गैर-जिम्मेदारी दिखती है।
मैंने इस इंटरव्यू को पूरा पढ़ा है। इसे पढ़ने के बाद एक बात साफ हो जाती है कि यह महिलाओं के पक्ष में है। यह मैं इसलिए कह रही हूँ कि जो लेखक और संपादक स्त्री विमर्श के नाम पर देह विमर्श को सामने ला रहे हैं, इसमें उनका विरोध किया गया है।
विभूति नाराय़ण राय ने इस इंटरव्यू में साफ कहा है कि देह की स्वतंत्रता का नारा देकर कुछ लेखक और संपादक स्त्री विमर्श को मुख्य मुद्दे से भटका रहे हैं। इस संदर्भ में उन्होंने ‘हंस’ के संपादक राजेन्द्र यादव की कटु आलोचना की है और दूधनाथ सिंह की ‘नमो अंधकारम’ कहानी को स्त्री विरोधी बताया है। उन्होंने यह भी कहा है कि देह विमर्श करने वाली स्त्रियाँ भी देह विमर्श को शरीर तक केंद्रित कर रचनात्मकता को बाधित कर रही हैं।
इस इंटरव्यू में विभूति नाराय़ण राय ने पितृसत्तात्मक समाज का भी विरोध किया है। उनका यह भी कहना है कि स्त्री विमर्श आज देह विमर्श तक सिमट कर रह गया है और इसके कारण दूसरे मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं।
अब रही बात जिस बात पर बवेला मचा है तो इसकी जाँच होनी चाहिए कि इसके लिए विभूति नारायण राय जिम्मेदार हैं या ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादकीय विभाग की लापरवाही की वजह से यह सब हो रहा है।
मेरा मानना है कि एक पंक्ति को निकाल कर जिस तरह वितंडा खड़ा किया जा रहा है उससे इस समस्या का समाधान नहीं निकलेगा। बल्कि इस गंभीर प्रश्न को सतही ढ़ंग से देखने का खतरा पैदा होगा। हमें जवाब इस बात का देना है कि क्या स्त्री विमर्श सिर्फ देह की स्वतंत्रता है।?.मेरी राय में उसका दायरा कहीं व्यापक और गंभीर है।

नोट- प्रो निर्मला जैन का यह मत दैनिक हिन्दुस्तान में छपा है, वे हिंदी की कुछ अध्येताओं में से हैं जिन्होंने अपनी प्रखर आलोचना से हिंदी को समृद्ध किया है। दिल्ली में रहती हैं।

4 comments:

राजेश उत्‍साही said...

साक्षात्‍कार मैं भी नहीं पढ़ पाया हूं। पर जितना पढ़ा है और निर्मला जी जो कह रही हैं उससे लगता है कि असली बात वास्‍तव में कहीं नेपथ्‍य में रह जा रही है। उस पर विमर्श होना ही चाहिए।

प्रदीप कांत said...

देह विमर्श के नाम पर स्त्री विमर्श आज का फैशन तो है ही ना.

Mithilesh dubey said...

जी मैं भी इस बात पर सहमत हूं कि नारी बिमर्श अब अपने मूल भुत सिद्धातों से भटक गया है । राय जी ने कुछ गलत नहीं कहा लेकिन लोग शायद समझ नहीं पा रहे हैं ।

विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन said...

मैं निर्मला जी की बात से १०१% सहमत हूं।