भिखारी रामपुर के किस्से
पहला बयान
बात पुरानी है पर, तब की जब मैं कोई 6 या 7 साल का था यानि 1975-76 की, तब मैं हर चीज से डरता था, रात से रास्तों के सन्नाटे से, ऊँचे पेड़ों से,यहाँ तक कि अंधेरे और घने बगीचे तक डराते थे मुझे । कोई नहीं था जो इन तमाम डरों से मुझे बचाता.....मैं एक डरा हुआ बच्चा था....तभी मुझे मेरा हनुमान मिल गया, मेरे तमाम डरों को खाक में मिलाते हुए मेरे जीवन में आए बबलू भैया...। वे मेरे पहले हीरो थे...मेरे पहले मसीहा....उन्होने मुझे रात के अंधेरे में दूर तक देखना सिखाया, रास्तों के सन्नाटे को अपनी चीख पुकार से भरने की जुगत बताई, ऊँचे पेडों पर चढ़ने और उतरने का गूढ़ ज्ञान दिया, अंधेरे और घने बगीचों को छुपने और घरवालों की पिटाई से बचने के लिए एक दुर्ग में बदलने का मंतर दिया,
बबलू भैया की तमाम सीख आज भी दुनिया के अंधेरे में निडर घूमने की ताकत देते हैं । सो आदि गुरु बबलू भैया की जय हो....
बबलू भैया मुझसे 18 महीने बड़े थे, लेकिन वे मुझसे एक ही दर्जा आगे थे, स्कूल में उनका नाम था सत्य प्रकाश मिश्र और और स्कूल के पहले और बाद में सिर्फ एक ही एजेंडा होता था उनका, किसी एक टीचर को पीटना । इस पिटाई को वे एक खेल की तरह लेते थे, और खुश रहते थे ।
यह बात शायद पहलीबार जगजाहिर हो रही है बबलू भैया इस रहस्य को खोलने की जो भी सजा देंगे मंजूर करूंगा......
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