Saturday, February 24, 2007

साल भर में क्या उखाड़ा...पता नहीं...

ब्लॉगमारी के एक साल

(सब दोस्तों को सलाम, कल से मैं अपनी विनय-पत्रिका शुरू कर रहा हूँ.......पढ़ो और बताओ...... इसे शुरू करवाने के पीछे हैं अविनाश, अभय तिवारी, चैताली केलकर,अनिल रघुराज....और मैं खुद...नामकरण आभा ने किया है.......)

2 टिप्पणियाँ:
अभय तिवारी said...
स्वागत है...अंदर की छपास की आग को फ़टाफ़ट ठंडा करते हुये ब्लॉग की दुनिया मे आग लगाते रहो।
February 24, 2007 2:48 AM
Sanjeet Tripathi said...
ब्लॉग-जगत में आपको देखकर खुशी । शुभकामनाएँ


यह मेरी पहले दिन की पहली पोस्ट थी...और उसपर मिली थी अभय भाई और संजीत जी की टिप्पणियाँ...आज एक साल पूरा हो गया....है विनय पत्रिका शुरू किए...। ऐसे दिन मैं अपनी पहले दिन प्रकाशित कुछ चिंदियों को फिर से छाप रहा हूँ...आपने उन्हें फिर से पढ़ें...।

कुछ दोहे

( ये दोहे कभी किसी ने मुझे भेंजे थे, नाम उसका शायद नवल किशोर था । आप भी इन्हें पढ़ें और .....)

उठते हुए गुबार में, काले - दुबले हाथ,
बुला-बुला कर कह रहे, चलो हमारे साथ ।

घुलते- घुलते घुल गई, कैसे उसकी याद,
कौन सुने किससे करें, सुनने की फरियाद ।

दिन डूबा गिरने लगी, आसमान से रात,
एक और भी दिन गया, बाकी की क्या बात ।

सूरज के आरी-बगल, धरती घूमें रोज,
अपने कांधे पर लिए मेरा-तेरा बोझ ।

पसंद के कुछ शेर

भगवान तो बस चौदह बरस घर से रहे दूर
अपने लिए बनबास की मीआद बहुत थी । ज़फ़र गोरखपुरी

मुहब्बत, अदावत, वफ़ा, बेरुख़ी
किराए के घर थे, बदलते रहे । बशीर बद्र

विनय पत्रिका का मूल्यांकन आज नहीं कभी फिर....हाँ आप कर सकते हैं...कि मैंने क्या किया क्या करूँ...

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