अब तो नाम लोगे आलोचक
सिर्फ हिंदी के लिए देह धारण करनेवाले आज कितने होंगे। जी हाँ, मात्र हिंदी को समर्पित एक कवि महान कवि, कहानीकार, समीक्षक, संपादक, प्रवक्ता त्तर प्रदेश में हैं किंतु बेहद दुखी और परेशान हैं। अपनी उपेक्षा से तंग आकर उन्होंने अपना नाम बदलने का मन बना लिया है। उनका कहना है कि ऐसा नाम रखेंगे कि लोग देखते रह जाएँगे। और नाम बदलते ही उनका काम हो जाएगा। उनके नाम का महिमा मंडन किए बिना या उनका नाम लिए बिना कोई आलोचक अपना लेख वह किसी भी विधा का हो पूरा नहीं कर पाएगा। अभी यह तय नहीं हुआ है कि नाम क्या रखें। किंतु सूची बन गई है।
हो सके तो आप उनकी मदद कर दें। नाम बस ऐसा हो कि आलोचक, समीक्षक बिना उनको याद किए रह न पाएँ। हिंदी की सेवा का कुछ तो मेवा मिले।
नाम इस प्रकार हैं- और तिरछे अक्षरों में हैं।
आदि, इत्यादि, तथा, जैसे, अन्य, और, गण, असंख्य, अथवा, तमाम, कवि, लेखक, चिंतक, विचारक, नाटक, एकांकी, संपादक, प्रवक्ता, हिंदी, भाँति, तरह, प्रकार, समान, व, सरीखे, कोटि।
कौन सा नाम बेहतर तरीके से उनकी मदद कर पाएगा इसका ध्यान रखिएगा। वे हिंदी में आए क्यों हैं। नाम कमाने ही तो। और ये आलोचक नाम ही नहीं लेते। तो नाम बदलने का काम एक दो दिन में ही सम्पन्न हो जाए तो अच्छा रहेगा। नहीं तो हिंदी के दो चार कवि आलोचक, समीक्षकों की बलि चढ़ा देंगे अपने हिंदी के ये उपेक्षित समर्पित कवि। यह ठीक न होगा। केवल नाम के लिए हत्या करनी पड़े। मैंने सोचा है कि यदि वे इत्यादि जी, आदि जी, कोटि जी जैसा नाम रख लें तो कैसा रहेगा।
Wednesday, April 22, 2009
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12 comments:
मेरे नाम में भी तो मदद करो..किताब तो आ गई है..
ये कौन हैं? क्या इन्हें पहचाना जा सकता है?
ये कितने दिन जीवित रहेंगे? क्या इनके बिना जग सूना हो जाएगा? इन्हें आज भी याद किया जाता है अथवा नहीं? पिछली बार ये कब प्रसन्न नज़र आए थे? इनसे मिलकर मनुष्य, कवि, साहूकार, फिल्म निर्देशक, अध्यापक, पड़ोसी, सहकर्मी, डॉक्टर और पशु-पक्षी कैसा अनुभव करते है? क्या इन्हें पाला जा सकता है? हिन्दी इनके तन पर अधिक है या मन पर? हिन्दी इनके सम्मुख है या विमुख? इन्हें कुछ साहित्यकारों के नाम पता हैं? ये उनमें से कितनों के प्रशंसक है? अखबार के अलावा ये और क्या पढ़ सकते हैं? इन्हें क्रोध आता है? क्या धरती से कुछ इंच ऊपर होने का आभास देते हैं? चलते वक्त पृष्ठ भाग कितने कोण पर झुका रहता है? तन कर चलने का अंतिम प्रयास कब किया था?
ये वो सवाल हैं जिनका जवाब मिले बिना कोई भी नाम नहीं सुझाया जा सकता।
आलोचक जी का अभी का नाम तो बताया जाये।
फिर तो सबसे बढिया नाम हिन्दी है. आलोचक भले पढे अंग्रेजी में पर हिन्दी का नाम ज़रूर लेते हैं.
इन नामों के साथ जो भी लिखता दिखे समझ लीजिए कि वही हैं ये सज्जन। वैसे ये इन दिनों अपनी उपेक्षा से बहुत मर्माहत हैं और जो मन में आ रहा है लीप रहे हैं।
उलझन मे डाल दिया।हरेक लिखने वाला समझेगा कि शायद उसी की बात हो रही है:))
नाम में क्या रखा है, रचना उम्दा होनी चाहिये।
आपने भी उनका नाम जाहिर न करके आखिरकार उनके साथ अन्याय कर ही डाला. अब देखिये वह अनादि, आदि, इत्यादि महाशय आपके साथ कैसा सलूक करते हैं!
vaise sabse achchaa naam hoga PURASHKRUT...
aajkal YUVA ka bhi fashion hai.
gorakhpur vale baba ki kirpa chahiye to jo bhi nam hai uske antim akshhar me ii ki matra laga len.
vaise is hath le us hath de ke tahat kisi any kavi-alochak se samjhouta kar len to sabse badhiya.
अशोक भाई
26 तारीख की आपकी टीप आज छाप पाया हूँ
माफ करिएगा।
देर और दुरुस्त का मामला तो ठीक है भाई साहब पर ये बताये कि उन महान आत्माओ तक ये सदविचार पहुँचे की नही?
पहुँच तो गया है लेकिन नतीजा कोई नहीं निकलने वाला....
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