भिखारी ठाकुर को उनका हक दो
कल बहुत अजीब सपना देखा । मुझे सपने में विदेशिया वाले भिखारी ठाकुर मिले और अपना दुखड़ा लेकर बैठ गए । मैं उनके दुख से द्रवित हुआ और मेरी आँखे भी भर आईं। सपने में मैं दिल्ली में था और वहाँ की एक संस्था में नेरूदा की जन्म शती पर भाषण सुन रहा था। वहीं गेट के बाहर भिखारी ठाकुर से मुलाकात हुई। वे अंदर जाना चाह रहे थे पर कोई उन्हे पैठने नहीं दे रहा था। वहाँ सब थे पर भिखारी ठाकुर के लिए जगह नहीं थी। नेरुदा पर करीब दर्जन भर आलेख पढ़े गए। फिर उनकी ग्रंथावली का लोकार्पण हुआ। लोग गदगद थे। नेरूदा की कविताओं के मद में मस्त।
बाहर निकलते समय भी भिखारी ठाकुर वहीं खड़े दिखे। मैं बच कर निकल जाना चाह रहा था पर वे लपक कर पास आए और पूछा कैसा रहा। नेरूदा पर कैसा बोले लोग। मैं भिखारी की उदारता पर हतप्रभ था। आँ ऊँ...कर के निकल गया।
सपना टूटने पर मुझे याद आया कि पिछले साल भिखारी ठाकुर की जन्म शती थी और मुझे उन पर एक आलेख लिखना था । पर जीवन की लंतरानियों की आड़ में मैं लिख नहीं पाया। हालाकि तैयारी मैंने पूरी कर ली थी। बिहार राष्ट्र भाषा परिषद से भिखारी ठाकुर की ग्रंथावली भी मंगा ली थी और कथाकार संजीव का उपन्यास सूत्रधार भी। कुछ और लेखादि का संकलन भी कर लिया था पर बाद में लिखना टल गया। शायद दो लोग भिखारी पर पत्रिका निकाल रहे थे वही पीछे हट गए।
यहाँ यह बाताना रोचक रहेगा कि भिखारी ठाकुर से मेरा परिचय कथाकार शेखर जोशी जी ने कराया था। जब उन्होंने जाना कि मेरे गाँव का नाम भिखारी राम पुर है तो उन्होंने पूछा था कि यह विदेशिया वाले भिखारी ठाकुर का गाँव तो नहीं.....। उसके बाद मैंने भिखारी ठाकुर पर जगदीश चंद्र माथुर का एक बहुत संजीदा संस्मरण पढ़ा ....फिर तो भिखारी सचमुच में अपने हो गए अपने गाँव वाले.....
रात में फिर सोया तो ठाकुर को लेकर एक और डरावना सपना देखा। भिखारी को लोर्का, मायकोवस्की, लेर्मंतोब, नाजिम हिकमत, ब्रेख्त जैसे कुछ कवियों से गिड़गिड़ाकर अपने बैठने की जगह माँगते पाया। इस बार भी सपने में दिल्ली ही थी। लोग भिखारी की भाषा नहीं समझ रहे थे। वहाँ मैजूद विद्वान लोग भिखारी को सुन रहे थे पर बाद में मिलना...बाद में....ओ दादा.....ओ......बाद में चलो.....हटो....बाद में ...कल दोपहर में लंच के बाद....वो.....टल हट....कह कर लगभग दुरदुरा रहे थे।
पर भिखारी ठाकुर थे कि हिलने का नाम तक नहीं ले रहे थे। कह रहे थे कि जब अंग्रेज ससुरे चले गए तो तुम सब कब तक रहोगे....हमें बेदखल नाही कै सकत। तुम सब दल्लाल हो....संसकिरती के नाम पर हमका आड़े नाहीं कै सकत....हम इहाँ से कतऊँ न जाब....ई हमार दिल्ली हऊ....। तब तक संजीव, ऋषिकेश सुलभ और संजय उपाध्याय और , शत्रुघ्न ठाकुर, तेतरी देवी , धर्मनाथ माझी जैसे सैकड़ों लोग आ गए और भिखारी ठाकुर जिंदाबाद के नारे लगाने लगे....मैं कुछ देर सकते में खड़ा रहा फिर नारा लगानेवालों के साथ हो गया....और जोर-जोर से भिखारी ठाकुर जिंदाबाद का स्वर बुलंद करने लगा....।
सपना फिर टूट गया...पर थोड़ी राहत रही....क्यों कि इस बार भिखारी ठाकुर....वही विदेशिया वाला.....रो नहीं रहा था बल्कि लड़ने को खड़ा था और उसके लोग डटे हुए थे....और बाकी भिखारी के शब्दों में संसकीरत के दल्लाल सब सकते में थे।
सुबह हुई तो सोचा कि विदेशिया की तकलीफ भरी लड़ाई से आप सब को परिचित करा दूँ....
परिचय तो हो गया....भिखारी से विस्तार में मिलना चाहें तो पढ़े कथाकार संजीव का उपन्यास सूत्रधार.....
परिचय के बाद अब पढ़े एक अंश भिखारी विदेशिया नाटक से....
यह हिस्सा प्यारी विलाप का है.....
कल बहुत अजीब सपना देखा । मुझे सपने में विदेशिया वाले भिखारी ठाकुर मिले और अपना दुखड़ा लेकर बैठ गए । मैं उनके दुख से द्रवित हुआ और मेरी आँखे भी भर आईं। सपने में मैं दिल्ली में था और वहाँ की एक संस्था में नेरूदा की जन्म शती पर भाषण सुन रहा था। वहीं गेट के बाहर भिखारी ठाकुर से मुलाकात हुई। वे अंदर जाना चाह रहे थे पर कोई उन्हे पैठने नहीं दे रहा था। वहाँ सब थे पर भिखारी ठाकुर के लिए जगह नहीं थी। नेरुदा पर करीब दर्जन भर आलेख पढ़े गए। फिर उनकी ग्रंथावली का लोकार्पण हुआ। लोग गदगद थे। नेरूदा की कविताओं के मद में मस्त।
बाहर निकलते समय भी भिखारी ठाकुर वहीं खड़े दिखे। मैं बच कर निकल जाना चाह रहा था पर वे लपक कर पास आए और पूछा कैसा रहा। नेरूदा पर कैसा बोले लोग। मैं भिखारी की उदारता पर हतप्रभ था। आँ ऊँ...कर के निकल गया।
सपना टूटने पर मुझे याद आया कि पिछले साल भिखारी ठाकुर की जन्म शती थी और मुझे उन पर एक आलेख लिखना था । पर जीवन की लंतरानियों की आड़ में मैं लिख नहीं पाया। हालाकि तैयारी मैंने पूरी कर ली थी। बिहार राष्ट्र भाषा परिषद से भिखारी ठाकुर की ग्रंथावली भी मंगा ली थी और कथाकार संजीव का उपन्यास सूत्रधार भी। कुछ और लेखादि का संकलन भी कर लिया था पर बाद में लिखना टल गया। शायद दो लोग भिखारी पर पत्रिका निकाल रहे थे वही पीछे हट गए।
यहाँ यह बाताना रोचक रहेगा कि भिखारी ठाकुर से मेरा परिचय कथाकार शेखर जोशी जी ने कराया था। जब उन्होंने जाना कि मेरे गाँव का नाम भिखारी राम पुर है तो उन्होंने पूछा था कि यह विदेशिया वाले भिखारी ठाकुर का गाँव तो नहीं.....। उसके बाद मैंने भिखारी ठाकुर पर जगदीश चंद्र माथुर का एक बहुत संजीदा संस्मरण पढ़ा ....फिर तो भिखारी सचमुच में अपने हो गए अपने गाँव वाले.....
रात में फिर सोया तो ठाकुर को लेकर एक और डरावना सपना देखा। भिखारी को लोर्का, मायकोवस्की, लेर्मंतोब, नाजिम हिकमत, ब्रेख्त जैसे कुछ कवियों से गिड़गिड़ाकर अपने बैठने की जगह माँगते पाया। इस बार भी सपने में दिल्ली ही थी। लोग भिखारी की भाषा नहीं समझ रहे थे। वहाँ मैजूद विद्वान लोग भिखारी को सुन रहे थे पर बाद में मिलना...बाद में....ओ दादा.....ओ......बाद में चलो.....हटो....बाद में ...कल दोपहर में लंच के बाद....वो.....टल हट....कह कर लगभग दुरदुरा रहे थे।
पर भिखारी ठाकुर थे कि हिलने का नाम तक नहीं ले रहे थे। कह रहे थे कि जब अंग्रेज ससुरे चले गए तो तुम सब कब तक रहोगे....हमें बेदखल नाही कै सकत। तुम सब दल्लाल हो....संसकिरती के नाम पर हमका आड़े नाहीं कै सकत....हम इहाँ से कतऊँ न जाब....ई हमार दिल्ली हऊ....। तब तक संजीव, ऋषिकेश सुलभ और संजय उपाध्याय और , शत्रुघ्न ठाकुर, तेतरी देवी , धर्मनाथ माझी जैसे सैकड़ों लोग आ गए और भिखारी ठाकुर जिंदाबाद के नारे लगाने लगे....मैं कुछ देर सकते में खड़ा रहा फिर नारा लगानेवालों के साथ हो गया....और जोर-जोर से भिखारी ठाकुर जिंदाबाद का स्वर बुलंद करने लगा....।
सपना फिर टूट गया...पर थोड़ी राहत रही....क्यों कि इस बार भिखारी ठाकुर....वही विदेशिया वाला.....रो नहीं रहा था बल्कि लड़ने को खड़ा था और उसके लोग डटे हुए थे....और बाकी भिखारी के शब्दों में संसकीरत के दल्लाल सब सकते में थे।
सुबह हुई तो सोचा कि विदेशिया की तकलीफ भरी लड़ाई से आप सब को परिचित करा दूँ....
परिचय तो हो गया....भिखारी से विस्तार में मिलना चाहें तो पढ़े कथाकार संजीव का उपन्यास सूत्रधार.....
परिचय के बाद अब पढ़े एक अंश भिखारी विदेशिया नाटक से....
यह हिस्सा प्यारी विलाप का है.....
प्यारी (विलाप)
हाय हाय राजा कैसे कटिहे सारी रतिया
जबले गइले राजा सुधियो ना लिहले, लिखिया ना भेजे पतिया।। हाय हाय..........
हाय दिनवां बितेला सैयां बटिया जोहत तोर, तारा गिनत रतियां।। हाय हाय-----
जब सुधि आवै सैयां तोहरी सुरतिया बिहरत मोर छतिया।। हाय हाय-----
नाथ शरन पिया भइले बेदरदा मनलेना मोर बतिया।। हाय हाय-----
20 comments:
लौंऊका चौंको टास्की, येऊंजा कौंजूलु, हैटिंया स्साव्सकी नामक कवियों की कविताओं से फुरसत होगी, तब ही ना भिखारी ठाकुर से मुलाकात होगी। चेरिफूंका फूं फूं पर लेक्चर देने अभी मैं फिनलैंड जा रहा हूं। क्या भिखारी ठाकुर पर लेक्चर के लिए मुझे ग्रीनलैंड बुलाया जा सकता है क्या।
कितना सुंदर और मार्मिक चित्रण किया है आपने. बहुत सही कहा -यही हालात हो रखे है अभी. पर इन संसकीरत के दल्लालों को हटाना ही होगा तब ही भिखारी ठाकुर की आत्मा को शान्ति मिलेगी.
मैं भिखारी ठाकुर को नहीं जानता, पर स्वप्न में वे जिस प्रकार के चरित्र हैं, उनसे बहुत अंतरंग परिचय है। मेरे अपने गांव में बुद्धिमान वृद्ध जन जैसी बातें करते थे उन्हे याद कर मैं अभी भी अपने पूर्वजों पर नाज करता हूं।
ग्लैमर और ग्लिटर में उन्हें भूलते चले जा रहे हैं। यह कष्ट दायक है।
आलोक जी और ज्ञान भाई
पोस्ट काफी देर तक अधूरी थी....
मैं तो भिखारी के हत्यारों के साथ खुद को खड़ा पा रहा हूँ....
अगर आप खुद को ही हत्यारा मान रहे हैं..तो फिर यह नाटक क्यों कर रहे है....चुप रहिए ना....। नेरुदा और नाजिम हिकमत से जलन क्यों...।
माध्यम जो भी हो यथार्थ का मार्मिकता को सही उकेरा है.
मार्मिक है बन्धु!!
आप लोग जो कह रहे हैं उसके लिए आभारी हूँ.....पर इस बेनाम भाई का क्या करूँ....
किसी भी बेनामी से उसके 'बे' की बाबत मे त सोचिये सिर्फ 'अलिफ' पर सोचिये । फिर कभी आप परेशान नहीं होंगे।
मार्मिक था दृश्य। अच्छा चिंतन। भिखारी नाम की कोई ब्रांड वेल्यू भी तो नहीं बनाई जा सकती। कमबख्त इस शब्द को कुछ हेर फेर के साथ ऊपर भी उठाना चाहें तो भी नहीं। वही गलीज, भदेस ही ऊभरता है। भिखारी, बेकारी, विकारी, बिमारी,बुखार...वो ज़माना अलग था । भिखारी बाबू फिर से लौटना था तो नाम तो ढंग का तभी रख लिया होता ? अंधे सूरदास तक को याद कर लिया जाता है ।
बोधिभाई... बेनामियों को छोड़िये और ऐसे ही और लिखिये।
भिखारी ठाकुर के बहाने भारतीय संस्कृति और लोक साहित्य की उपेक्षा के साथ ही इसमें दिल्ली, दिल्ली के साहित्या और साहित्याकारों की भी अच्छी पड़ताल की है भाई. बधाई.
और हाँ बेनामों की फिक्र छोडिये.
अच्छी पोस्ट है।
आपका ब्लाग सर्वाधिक पठनीय है.भिखारी ठाकुर को बिदेशिया से भी कुछ नही मिला.
देवमणि जी
आज नहीं तो कल मिलेगा भिखारी ठाकुर को उनका हक । आप देखिएगा। टीप के लिए आभार ....
नेट की गड़बड़ सी आपका सपना आज देख पाया वह बड़ा अपना लगा
mitra mai aapke lekh ko pdha achha laga .
bahoot sahi aapne bat kahi hai ki angrej to chale gaye tum sasure kab tak raho ge .
darasal bikhari thakur trast janta ki aavaj hain .
बोधिसत्व जी,
स्वप्न के माध्यम से आपने भिखारी ठाकुर को खूब अच्छी तरह उकेरा है...सधुवाद .
बेहतरीन पोस्ट।।। सिर्फ आप ही समझ सकते हैं कि भिखारी ठाकुर का क्या महत्व है। आभार
क्या कहें साहेब, पटना सिटी कचौड़ी गली में पईस कर कह रहे हैं। भिखारी ठाकुर के चिन्हेवाला बड़ी मुश्किल से मिलता है, साहेब.....
mainay bideshiya natak mai abhinay kiya hai.gabarghichor natak dekha hai.apka post bhigo gayee.badhae.
diwakar ghosh
bhagalpur ,bihar
ares, pandora, limewire
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