Thursday, July 19, 2007

आज कोई नहीं है महाकवि !



कैसे-कैसे कवि !

कल की बात है, किसी का फोन आया कि बता सकते हो कवि कितने तरह के होते हैं । पहले तो मैंने सोचा कि यह कपि यानी बंदरों की बात कर रहा है पर उसने फिर कवियों के बारे में पूछा । मुझे ठीक-ठीक पता तो था नहीं सो यूँ ही बता दिया कि तीन तरह के होते हैं । एक पाठ्यक्रम और पुरस्कार वाले, दूसरे छप-छप कर मर जाने वाले और तीसरे सिर्फ लिख कर मर जाने वाले । उन्हे कहीं भाषण देना था उनका काम बन गया। वे मस्त रहे पर मैं उलझ गया कि आखिर कवि कितने तरह के होते हैं । एक दूसरे मित्र ने कहा यह भी कोई उलझन की बात हुई । हुआ करें तुम्हारा क्या । कौन पढता है कविता- फबिता। कौन पूछता है हिंदी कवियों को । अभी तो हर कोई तुक्कड़ है, तुकें भिड़ा कर कई महाकवि हो गये हैं । एक ने कहा कि अपने को कविता से चिढ़ है, अपना अंग प्रत्यंग सुलग उठता है कवि और कविता के नाम पर । फिर जिसके नाम से आग लगती हो उसे जानने का क्या फायदा। मैने कहा पर जान ही लेने में क्या बुरा है। हो सकता है कभी काम ही आ जाए। ज्ञान बढ़ा लेने से क्या दिक्कत।
सो हम जुटे कवियों का प्रकार जानने में । संस्कृत और हिंदी की पोथियों में विद्वानों ने कवियों को तीन समुदायों में विभाजित किया है। पहले समुदाय में है शास्त्र कवि, दूसरे खेमे में हैं काव्य कवि और तीसरे गुट में गाल फुला कर बैठे हैं उभय कवि। इनमें क्रमानुसार एक दूसरे से बड़ा है।

यह विभाजन अपनी बही में लिख तो लिया पर कुछ समझ में आया नहीं । तो संस्कृत के परम विद्वान राज शेखर से पूछा । आज कल वो मेरे पड़ोस में रहते हैं। उन्होने बता कर मेरी उलझन सुलझा दी । आप भी जाने और अपने परिचित कवियों को उस कोटि में रख कर कविता का आनन्द लें। कोटि के अनुसार कवि का हवाला देने का रिस्क मैं नहीं ले रहा । कवि के श्रद्धान्ध भक्त मुकदमा कर दें तो।

(1) काव्य-विद्यास्नातक- जो व्यक्ति कवित्व के संगीन इरादे से काव्य विद्याओं यानी व्याकरण, छंद, अलंकार तथा उपविद्याओं अर्थात चौंसठ कलाओं को सीखने के लिए गुरुकुल यानी विद्यालय में दाखिला लेता है, वही काव्य-विद्यास्नातक की उपाधि पा जाता है।

(2) हृदय-कवि- यह बड़ी खतरनाक कैटेगरी है। जो भी कविता बनाता है परंतु संकोचवश छिपा कर रखता है । बेचारा ना तो किसी को पढ़ कर सुनाता है न पत्रृपत्रिकाओं में छपाता है। कुल मिलाकर उसकी महान कविता का प्रचार-प्रसार उसके दिल की डायरी में दफ्न हो कर रह जाती है।

(3) अन्यापदेशी- यह थोड़ा चतुर होता है। यह कविता तो धड़ाधड़ लिखता है पर लोग कमजोर रचना कह कर खिल्ली ना उड़ाई जाए इसलिए दुसरे की रचना कह कर सुनाता है। अनेक कवि शुरू में यही उपाय करते हैं। लोगों ने तारीफ की तो मेरी नहीं तो दूसरे की ।

(4) सेविता- ऐसे कवियों की जमात बड़ी तगड़ी है। ये प्राचीन कवियों की छाया लेकर कविता करते हैं । नकल नहीं केवल छाया। आप इनके सामने वही रचना सुनाएं जो प्रकाशित हो गई हो। अन्यथा आप के पलटते ही छाया लेकर रच लेगा यह नई कविता और आप के पहले कहीं छपा भी लेगा । फिर आप हो जाएंगे सेविता । इलाहाबाद में कुछ ऐसे सेविता कवि आज भी हैं । आप के शहर में भी होंगे। बचिएगा।

(5) घटमान- वह कवि जो फुटकर कविता तो अच्छी कर लेता है पर कोई प्रबंध काव्य नहीं रच पाता। इस आधार पर आज के सारे कवि इसी घटमान की कोटि में आते हैं। लेकिन कहलाना चाहते हैं सब महा कवि। है ना कलयुग का जोर।

(6) महाकवि- वह कवि जो प्रबंध काव्य की रचना में समर्थ हो । इस हिसाब से न आज कोई तुलसी है न सूरदास। न कोई रामचरितमानस है ना सूर सागर । प्रश्न- हिंदी का आखिरी प्रबंध काव्य कौन (अ) कामायनी (ब) प्रिय प्रवास (स) राम की शक्ति पूजा (य) अन्य।

(7) कविराज- यह कवियों का सरताज है। कविराज वही होगा जो सब प्रकार की शैलियों और भाषा में कविता लिख सके। आप की निगाह में है कोई कवि।

(8) आवेशिक-मंत्र तथा तंत्र आदि की उपासना से काव्य रचना में सिद्धि पानेवाला व्यक्ति आवेशिक कवि कहलाता है। लेख पढ़ने के बाद उपासना में मत लग जाइयेगा। कुछ होना नहीं है। पर आप कहाँ मानने वाले।

(9) अविच्छेदी- जो जब जी चाहता है तभी बिना किसी दिक्कत के कविता कर सके वही अविच्छेदी कवि कहलाएगा। आजकल यही आशुकवि है। इनकी हर युग में डिमांड रही है।

(10) संक्रामयिता- ऐसे कवि जो दूसरों में कविता का वायरस डाल देते हैं। यानी सरस्वती का संक्रमण करते फिरते हैं। इलाहाबाद में एक वक्त पर ऐसे कई अखाडे और मठ थे जिनमें ऐसे समर्थ कई कवि धूनी रमाते थे। जिस शिष्य के सिर पर हाथ रख देते उसी के रोम-रोम से काव्य की निर्झरिणी फूट पड़ती थी । आज कल सुनते हैं वहाँ सूनेपन का राज है । कहावत हैं ना ज्यादा जोगी मठ उजाड़।


तो भाइयों और बहनों आज हमारी हिंदी में ना कविराज है ना महाकवि बस घटमान कवियों का साम्राज्य है। हमने चौर्य-कवि और कूड़ा कवि को नहीं गिना है । बेचारे चोर कवि तो अक्सर पकड़ ही लिये जाते हैं और कूड़ा कवि तो कूड़ा ही करेगा । यहाँ उनका ही हवाला है जिनमें रचने की कैसी भी क्षमता हो। अब अगर आप किसी और तरह के कवि को जानते हों जो यहाँ दर्ज होने से रह गये हों तो टिप्पणी करके मुझे बता दें । आखिर ज्ञान कभी तो काम आएगा ही । यह विभाजन शास्त्रानुसार है, गप्प नहीं। आप इससे संस्कृत आलोचना की शक्ति का अंदाजा लगा सकते हैं।

अगली कड़ी में कैसे कैसे आलोचक

13 comments:

अभय तिवारी said...

भाई बोधि आप ने आखिरी दो जो श्रेणियों बताई हैं आज के समय में तो वही दो तो मुख्य हैं.. खैर आप ने मेहनत कर के हमें दिखाया कि हम शास्त्र के रास्तों से कितना भटक गए हैं.. कि अब के कविगण दस में भी नहीं अटते और उनके लिए दो अलग से वर्ग बनाने पड़े.. आशा है लोग आप की बात के मर्म को समझेंगे..

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बोधि भाई
बड़ा भयानक काम आपने कर डाला है. ये दस तरह के कवि और इनके बाद दो और तरह के कवि, इन्हें गिनना और गोथना तो केवल यूनिवर्सिटी के मास्टरों के बस बात है. वही जिनके बस का कोई और काम नहीं है, सिवा भाषा और साहित्य का ख़ून चूसने के. मैं तो केवल तीन तरह के कवियों को जानता हूँ. नंबर एक सिद्ध कवि. इस कोटि में वे कवि आते हैं जो अभी विश्व हिंदी सम्मेलन में भागने अमेरिका गए थे. पाठ्यक्रमों में लगते हैं, पुरस्कार पाते हैं, समितियों में नामित किए जाते हैं और मौका मिल गया तो राज्यसभा के सदस्य भी हो जाते हैं. कवि होने के नाम पर जितने तरह की उपलब्धियाँ हो सकती हैं वह सब इनकी हैं. कहने के लिए ये दक्षिणपंथी-वामपंथी कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन असलियत ये है कि ये शुद्ध दरबारी होते हैं. दूसरे होते हैं बिद्ध कवि. यह वह कोटि है जिसकी कविता में तो दम है, लेकिन सेटिंग शास्त्र की पढाई में जो फेल हो गए. उन्हें अगर कोई छोटा-मोटा पुरस्कार मिलता भी है तो इतनी देर से कि उसे अस्वीकारने में ही उन्हें अपनी इज़्ज़त का भला दिखाई देता है. सम्मेलन-समितियां तो उनके लिए होती ही नहीं. बस बेचारे लिखते-लिखते मर जाते हैं. जीवन भर पत्नी गाली देती है और बाद में बच्चे गरियाते हैं. तीसरे हैं गिद्ध कवि. ये वो कोटि है जो आजकल बड़ी तेजी से बढ रही है, एड्स की तरह. अब एड्स एक अवस्था है, जिसमें बीमारी जैसा कुछ भी नहीं होता. बस बीमारियों से लड़ने की कूवत छिन जाती है. वैसे ही गिद्ध कवियों का कविता से कोई संबंध नहीं होता, लेकिन किसी बेचारे सम्पादक के बूते की बात नहीं है कि इनसे कन्नी काट ले. क्योंकि ये तमाम अकादमियों, समितियों आदि में मौजूद होते हैं. यह दाद की बीमारी जैसे हैं. जहाँ जाइएगा, इन्हें पाइएगा, वाला गाना मुझे तो लगता है कि इनके ही लिए है. अगर ऎसी कुछ असली जानकारी आपके हाथ लगे तो संकोचाइएगा मत, उसे जरूर शेयर करियेगा.

रवि रतलामी said...

लेख की प्रथम पंक्ति -

... बता सकते हो कवि कितने तरह के होते हैं । पहले तो मैंने सोचा कि यह कपि यानी बंदरों की बात कर रहा है ...

पढ़ कर दौड़ा चला आया कि यह कोई व्यंग्य रचना होगी, परंतु यह बड़ी ही गंभीर रचना निकली.

परंतु रुकिए, धीर गंभीर सोचें तो है तो यह आजकल के कवियों पर अच्छा खासा व्यंग्य ही!

मेरे भीतर के व्यंजलकार को मार सकता है यह रचना. परंतु मैं कान नहीं दूंगा :)

काकेश said...

बड़ी गहरी बातें.अब कवियों को विभाजित कर पाना आसान होगा.आपकी मेहनत को सलाम.

बोधिसत्व said...

अभय भाई
आप ने सही कहा कि कवियों को सही ढ़ंग से विभाजित करने के लिए 10-12 का खाना कम है। पर आज चोर और कूड़ा कवि ही नहीं सक्रिय हैं । जोर भले ही चोरों का हो। रहते वे सदा डर कर ही हैं। युग कोई भी हो। चोर सीनाजोर बहुत देर तक नहीं रह पाता।
रतलामी साहब व्यंग का तो चरम बिंदु तक परसाई जी पहुँचा गये हैं । अब हम क्या उखाड़ सकते हैं । सांकृत्यायन जी और काकेश भाई कवियों को चिह्नित करके आनन्द लीजिए

अनिल रघुराज said...

कवि का कवि-ज्ञान सराहनीय है। वैसे, जैसा मैंने पहले एक बार आपसे कहा था कि गणितीय कवियों की भी एक श्रेणी है जो 500-600 शब्दों के परमुटेशन-कॉम्बिनेशन से थोक के भाव जनवादी कविताएं लिख सकती है।

बोधिसत्व said...

आप की टिप्णी मेरे लिए सम्मान की तरह है अनिल जी। लगता है सारी कोटियों को जुटा कर फिर एक अंतिम सूची बनानी पड़ेगी ।

Sanjeet Tripathi said...

गज़ब, सलाम आपकी मेहनत को!!

क्या वर्गीकरण किया है, साधुवाद!!

अनूप शुक्ल said...

अच्छा लिखा है।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया वर्गीकरण किआ है कवियों का ।बधाई।

विमलेश त्रिपाठी said...

उम्दा.........।।

विमलेश त्रिपाठी said...

बहुत बढ़िया लेख लिखा है आपने दादा। कटु किंतु यथार्थ...।

Rajasthan Study said...

अत्यंत ज्ञानवर्धक आलेख है भाई।