वह मेरे जैसा क्यों दिखना चाहता है ?
अभी पिछले दिनों पहलू पर चंदू भाई ने अपने बेटे को लेकर अपनी कुछ उलझने छापी थीं। मेरी भी अपने बेटे को लेकर कुछ छोटी-छोटी उलझने हैं। चौबीस साल की उमर में यानी 18 मई 1994 को मेरी शादी हो गई थी । मैं पच्चीस पूरे नहीं कर पाया था कि 17 अक्टूबर 1995 को एक बेटे का बाप बन गया । मेरा वह मरियल सा बेटा आज कल ठीक-ठाक हो गया है। नाम उसका मानस है । दिखावा खूब करता है। मौका मिलने पर वह यह जताने से नहीं चूकता कि उसे बहुत कुछ आता है।
वह अकेले जाकर सामान खरीद लाता है। खरीदारी करने मैं उसे बिना सूची के भेजता हूँ और वह पूरे सामान लेकर आता है। अपनी बातें मनवाने की पूरी कोशिश करता है। उसकी माँ और मुझमें किसी मुद्दे पर तकरार होने पर अच्छे पंच की भूमिका निभाता है और हमेशा निर्गुट रहता है।
भयानक बातूनी और किस्सेबाज है। कोई बात छिपाता नहीं है। यहाँ तक कि सुनी हुई गालियाँ तक उद्धृत कर जाता है। पढ़ने से बचने की पूरी कोशिश करता है। पर मरते जीते काम पूरा करता है।
आजकल उस पर एक अलग ही धुन सवार है । वह मुझ जैसा दिखने के लिए बेताब है। मेरी ऊँचाई तक पहुँचने की पूरी कोशिश कर रहा है। कंधे के ऊपर पहुँच भी गया है। कुछ काम कर रहा होता हूँ । वह अचानक आ कर धमका जाता है कि अब मेरे कपड़े खतरे में हैं । वह कोशिश कर रहा है कि मेरे कपड़े उसे फिट हो जाएँ । सीधे सामने खड़े होकर नापने की बात तो कम ही करता है पर बगल में खड़े होकर कहाँ तक पहुँचा है इसका अंदाजा लगाता रहता है।
एक दिन आया और पंजे लड़ाने की बात करने लगा। एक दिन कोशिश करके मुझसे ज्यादा खाना खाने पर डटा रहा। हालांकि पेटू नहीं है पर मुझसे आगे निकल जाने को तैयार है।
वह यह जानने की कोशिश करता है कि मेरा बचपन कैसा था। वह जिस उमर में हैं उस उमर में मेरी गतिविधियाँ क्या थी। मेरी मेरे पिता जी से कैसी और किस तरह कि बनती थी। क्या मैं पिटता था। वह जब भी मुझे देख रहा होता है मैं उलझन में पड़ जाता हूँ । समझ नहीं पा रहा हूँ कि वह आखिर मेरी तरह क्यों बनना चाहता है जबकि वह मेरी सफलता असफलता से परिचित है। मैं उसकी निगाह में कोई बहुत काम का नहीं हूँ। मेरी उलझन यह है कि मैं उससे यह भी नहीं कह सकता कि वह क्यो मेरे जैसा दिखना या बनना चाहता है।
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15 comments:
मानस के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा । इक़बाल और भवानीबाबू की कुछ बच्चों के लिए लिखी कवितायें मैंने 'शैशव' पर दी थीं।लिंक भेजूँगा ,मानस के लिए।
अच्छा है। लगता है आपका बच्चा आपको अपना रोल माडल मानना चाहता है।
उसके पास काफी संग्रह है। लेकिन इंतजार रहेगा, उसे भी और मुझे भी।
अच्छा लगा भैय्या इसे पढ़कर!!
मेरे भतीजे कई बार मेरी शर्ट पहन कर कल्टी हो जाते हैं और मैं सोच में पड़ा रहता हूं कि कहां गई शर्ट!!
बहुत अच्छा लगा पढ़कर मै समझती थी मेरा ही बेटा एसा है... मगर एसा नही है, बढ़ती उम्र और बढ़ती जिज्ञासाये बच्चे को बहुत कुछ समझा देती हैं...
सुनीता(शानू)
अरे, ऐसा क्यों कर रहे हो, मानस? मैं हतप्रभ हूं!
मानस के मन में जितने सवाल हैं सबका जवाब आपके टेटुए में होना चाहिये,जिस दिन आप चूक गये तो समझिये उसका उत्तर कहीं ना कहीं से ढूढ तो लेगा फिर अगला कदम आपसे और आगे पहुंचने का होगा जो स्वाभाविक है..
आप भाग्यवान हैं कि मानस आप में रोल मॉडल देख रहा है. वर्ना यह पुण्य फिल्म वालों और सुपर मैन जैसे चरित्रों को मिल जाता है! Now you dare not fail as role model!
बहुत अच्छा लगा पढ़कर । मेरा बेटा भी तेरहवा बरस पार कर रहा है और यही सब चेष्टाएं रहती हैं उसकी। कभी सायास, कभी अनायास। ....इसमें बुरा कुछ नहीं है। वह बड़ा होना चाहता है अब। जकड़न से मुक्ति मिल रही है उसे । कुछ नए भेद अनायास उजागर हो रहे होंगे नित्य। आपको-हमको ख़बर भी नहीं होती होगी। ये सब स्वाभाविक है।
आप खुश रहें। सचमुच बड़ा हो रहा है वह।
अच्छा तो है भाई. परेशानी क्या है??
तेरह का पार होने के बाद मानस ऐसे ऐसे लोगों जैसा बनने की कोशिश करने लगेगा कि तुम्हें समझ नहीं आएगा कि किस का सर फोड़ूँ.. अपना कि उसका.. लेकिन तब की बहुत मत सोचो.. आज का आनन्द लो..
मानस, अब तुम एक पोस्ट लिख डालो कि पिता जी कैसे चश्मे के केस को साबुनदानी कहने जैसी गलतियां कर जाते हैं.. अब बताओ कौन सा सबुन चशेम के केस के साइज़ का होता है? और तुम इस तरह की गलतियाँ भूल कर भी नहीं करना चाहते..!!
विमल भाई, हालत खस्ता है, अभी ही कभी-कभी बगले झाकना पड़ जाता है।क्या करें।अनूप भाई और अजीत जी और ज्ञान जी मैं उसका या किसी का रोल माडल बनने लायक कहाँ हूँ । संजीत भाई डर कपडों से अधिक है, सुनीता हर बच्चा ऐसा ही क्यों होता है।
प्रमोद भाई कभी ताऊ का फर्ज अदा करके देखें और हतप्रभ होना पड़ेगा।
और अभय एक डरे बाप को डराना ठीक नहीं। वह वैसे ही मेरे अवधी मिश्रित हिंदी के उच्चारण की गलतियाँ सुधारता रहता है। स और श का लफड़ा बहुत दिन से चल रहा है।
अफलातून भाई लिंक मिल गये हैं। भी तो स्कूल गया है, पर जाते समय कहता गया था कि देखना है कैसी कविताएं आती है।
अगर मानस आपको अपना रोल माडल मानता है तो यह अच्छी बात है। उस ने जरूर आपमे कुछ ऐसा देखा होगा जिसे आप भी नही जानते होगें और वह उसे अच्छा लगता होगा।
यह तो खुशखबरी है कि आपका बेटा, आप सा बनने के चक्कर में है।
लेखक, कवि को सब फोकटी का ही समझते हैं। आप निश्चय ही बेहतरीन बाप होंगे, वरना अधिकांश लेखकों के बच्चे अपने बाप के प्रति सकारात्मक रुख नहीं रखते। और आप जैसा बन जाये, तो कोई हर्ज भी नहीं है। मतलब यह नहीं कि आप जैसा बने ही, पर बन ही जाये, तो भी हर्ज नहीं। उसकी मर्जी है।
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