आज की हिंदी के शिखर कवि त्रिलोचन का जन्म 20 अगस्त 1917 को चिरानीपट्टी, कटघरापट्टी, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। अंग्रेजी में एम.ए.पूर्वार्ध तक की पढ़ाई बीएचयू से । इनकी दर्जनों कृतियाँ प्रकाशित हैं जिनमें धरती(1945), गुलाब और बुलबुल(1956), दिगंत(1957), ताप के ताए हुए दिन(1980), शव्द(1980), उस जनपद का कवि हूँ (1981) अरधान (1984), तुम्हें सौंपता हूँ( 1985) काफी महत्व रखती हैं।
इनका अमोला नाम का एक और महत्वपूर्ण संग्रह है। त्रिलोचन की प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह राजकमल प्रकाशन से छप चुका है। वरिष्ठ कवि केदार नाथ सिंह के शव्दों में “उनका जितना प्रकाशित है उतना या कदाचित उससे अधिक ही अप्रकाशित है”।हिंदी में सॉनेट जैसे काव्य विधा को स्थापित करने का श्रेय मात्र त्रिलोचन को ही जाता है। आप त्रिलोचन को आत्मपरकता का कवि भी मान सकते हैं। भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा कल जैसी आत्मपरक पंक्तियाँ त्रिलोचन ही लिख सकते हैं। परंतु ऐसा नहीं है कि त्रिलोचन का काव्य संसार केवल आत्म परकता तक ही सीमित है। शब्दों का सजग प्रयोग त्रिलोचन की भाषा का प्राण है । चंदू भाई अभी ऐसा ही कर पाया हूँ । हमें कोशिश कर के पिछली पीढी की कविताएं ब्लॉग पर छापनी होगी। त्रिलोचन जी शतायु हों और उनका आशीष हम सब पर बना रहे इसी कामना के साथ प्रतुत हैं त्रिलोचन की दो कविताएँ।
इनका अमोला नाम का एक और महत्वपूर्ण संग्रह है। त्रिलोचन की प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह राजकमल प्रकाशन से छप चुका है। वरिष्ठ कवि केदार नाथ सिंह के शव्दों में “उनका जितना प्रकाशित है उतना या कदाचित उससे अधिक ही अप्रकाशित है”।हिंदी में सॉनेट जैसे काव्य विधा को स्थापित करने का श्रेय मात्र त्रिलोचन को ही जाता है। आप त्रिलोचन को आत्मपरकता का कवि भी मान सकते हैं। भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा कल जैसी आत्मपरक पंक्तियाँ त्रिलोचन ही लिख सकते हैं। परंतु ऐसा नहीं है कि त्रिलोचन का काव्य संसार केवल आत्म परकता तक ही सीमित है। शब्दों का सजग प्रयोग त्रिलोचन की भाषा का प्राण है । चंदू भाई अभी ऐसा ही कर पाया हूँ । हमें कोशिश कर के पिछली पीढी की कविताएं ब्लॉग पर छापनी होगी। त्रिलोचन जी शतायु हों और उनका आशीष हम सब पर बना रहे इसी कामना के साथ प्रतुत हैं त्रिलोचन की दो कविताएँ।
पहली कविता
उनका हो जाता हूँ
चोट जभी लगती है
तभी हँस देता हूँ
देखनेवालों की आँखें
उस हालत में
देखा ही करती हैं
आँसू नहीं लाती हैं
और
जब पीड़ा बढ़ जाती है
बेहिसाब
तब
जाने-अनजाने लोगों में
जाता हूँ
उनका हो जाता हूँ
हँसता हँसाता हूँ।
दूसरी कविता
आज मैं अकेला हूँ
(1)
आज मैं अकेला हूँ
अकेले रहा नहीं जाता।
(2)
जीवन मिला है यह
रतन मिला है यह
धूल में
कि
फूल में
मिला है
तो
मिला है यह
मोल-तोल इसका
अकेले कहा नहीं जाता
(3)
सुख आये दुख आये
दिन आये रात आये
फूल में
कि
धूल में
आये
जैसे
जब आये
सुख दुख एक भी
अकेले सहा नहीं जाता
(4)
चरण हैं चलता हूँ
चलता हूँ चलता हूँ
फूल में
कि
धूल में
चलता
मन
चलता हूँ
ओखी धार दिन की
अकेले बहा नहीं जाता।
16 comments:
यह हैं त्रिलोचन!
बढि़या है।
अनूप जी
हमें कोशिश करनी चाहिए की कुछ और कवियों को ब्लॉग पर पहुँचाएँ। पिछले दिनों अभय भाई ने केदार नाथ अग्रवाल और नागार्जुन की कविताएं डाली थीं।
'आज मैं अकेला हूँ' अच्छी लगी
बोधिसत्व जी,त्रिलोचन जी की रचनाए प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद। त्रिलोचन जी की दोनों रचनाएं बहुत ही गहरे एह्सास को दर्शाती हैं। सहज शब्दों में अपनी बात कहने का ढंग,सच मे बहुत गहरे में मन को छू जाता है।
लगा यूं कि
जैसे
धूप मे सूखा गला
तर हो गया,
माथे का पसीना
सूख के
बादल बन
बरसने लगा
आंखों से.
फिर से इन कविताओं को पढ़ना सुखद रहा.
बहुत बढिया. त्रिलोचन जैसा बेलाग और बेलौन्स व्यक्तित्व हिंदी कविता में इन दिनों दूसरा नहीं दिखता. क्या मैं यह उम्मीद करूं कि आप आने वाले दिनों में शास्त्रीजी की कुछ गज़लें और सॉनेट भी पोस्ट करेंगे?
बहुत बढिया है, जनाब. आभार पढ़वाने के लिये.
धन्यवाद
सागर वि.वि. में त्रिलोचन जी से मिलना हुआ था, उस समय वो वहां किसी ‘पीठ’ पर नियुक्त थे । उस दिन त्रिलोचन जी पर शब्दों और उनकी उत्पत्ति के बारे में बताने की तरंग थी । डेढ़ दो घंटे दरी पर जमी महफिल में उन्होंने हंसाया भी और गंभीर भी बनाया, कुछ सॉनेट भी सुनाए, हज़ारों किस्से भी आये । कविताएं पढ़कर वो दिन याद आ गया । उस दिन उन्होंने चुटकी ली थी । भई मैं तो खद्दर पहनता हूं, खुद्दार हूं । चद्दर पे सोता हूं, चद्दार हूं । आप गद्दे पर सोते हैं और गद्दार हैं ।
बहुत प्यारी कविताऎं.. पहली नहीं पढ़ी थीं ये दोनों..
acchee kavitaen sulabh karaen. dhanya vaad. trilochan ka 'Amola'hamne padheen then wakaee hindi men achhe sonets likhe hain uskke kuchh ansh padhenge to anand jaroor aega.dhanyavaad
बहुत दिन बाद त्रिलोचन जी कविताएं पढ़ीं। मुझे 1994 में त्रिलोचन के साथ कुछ दिन रहने का मौका मिला था। जन संस्कृति मंच का अधिवेशन भी उस दौरान हुआ था और बाबा त्रिलोचन उसके अध्यक्ष बनाए गए थे। हम एक अच्छे होटल में थे। एक शाम जब हम बैठे थे और बात चल रही थी, हम ड्रिंक्स भी ले रहे थे। दो पैग हो चुके थे, तीसरे का नंबर आने पर बाबा ने कहा कि भाईसाहब आप तो अशोक वाजपेयी वाला पैग बनाते हैं। कुछ तो दमदार पैग बनाइए।
i had read "Amola" by Sri.Trilochan during my stay in kanpur in 2002. Since then I am looking for a copy of it. I shall be very thankful if I get one anyhow.
Sudhanshu Rajvanshi
i had read "Amola" by Sri.Trilochan during my stay in kanpur in 2002. Since then I am looking for a copy of it. I shall be very thankful if I get one anyhow.
Sudhanshu Rajvanshi
I had read Amola by Trilochanji in 2002 during my stay in kanpur. Since then I am trying to get a copy. I shall be very thankful if I get one anyhow.
sudhanshu rajvanshi
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