Saturday, August 25, 2007

लूटो और बदनाम करो






धर्मपाल जी का समग्र

मित्रों कुछ भी उपहार के रूप में पाना हर एक को आनन्द देता है। पिछले दिनों विचारक चिंतक धर्मपाल जी की समग्र रचनाएँ मेरे शुभचिंतक और मित्र श्री चंदन परमार ने मुझे भेंट की। वह भी कुल चार सेट। जिसमें से तीन जो मैंने अपने मित्रों को देकर पुस्तक दान का आनन्द पाया और एक सेट अपने पास रख लिया।

गाँधीवादी विचारक धर्मपाल जी की रचनाएँ समग्र रूप से प्रकाशित हो गई हैं। इसके पहले वाणी प्रकाशन से अंग्रेजी राज में गोहत्या नाम से एक किताब छपी थी जिसका अनुवाद कवि पंकज पराशर ने किया था। ऐसा मुझे याद आ रहा है। धर्मपाल जी मूल रूप से अंग्रेजी में लिखते थे। उनके लेखन का क्षेत्र भारत के गौरव और सभ्यता संस्कृति से खास कर सत्रहवीं और अठारहवी सदी के भारत और उसकी उथल-पुथल से जुड़ा है।

गाँधी के विचारों को समझने के लिए तो धर्मपाल जी का यह लेखन काफी काम का हो ही सकता है। यहाँ धर्मपाल जी ने अपने खास नजरिये से अंग्रेजों की भारत पर लूट और संस्कृति पर किये हमलों को भी उजागर किया है। अगर अंग्रेजों की लूट का कच्चा चिट्टा देखना हो तो इस समग्र का सातवाँ खंड पढ़ना होगा। अपने लेखन से मान्य लेखक ने यह बताने की कोशिश की है कि अंग्रेजों के पहले और उनके राज में भारतीय शिक्षा और विज्ञान की क्या स्थिति थी। इस ग्रंथ में भारत में लोहा से लेकर गारा बनाने का इतिहास दर्ज है तो बनारस की वेधशाला और ब्राह्मणों के खगोलशास्त्र का भी पूरा ब्योरा है।

धर्मपाल जी का जन्म (1922-2006) का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में हुआ था जो आज उत्तराखंड में पड़ता है . धर्मपाल जी के अध्ययन का क्षेत्र काफी फैला है। उन्होंने अंग्रेजों के पहले के भारत को समझने में अपना काफी समय दिया जिसका परिणाम हैं ये पोथियाँ। धर्मपाल के लेखन से भारत की दो छवि बनती है वह हमारे मन पर अंकित तस्वीर के सर्वथा अलग है. धर्मपाल जी का विवाह एक अंग्रेज महिला फिलिप से 1949 में हुआ था।

हिंदी के पहले धर्मपाल जी की सब रचनाएँ गुजराती में छप चुकी हैं। धर्मपाल जी के समग्र लेखन में किस जिल्द में क्या है आज यह बता रहा हूँ, आगे धर्मपाल जी के लेखन का कुछ हिस्सा चिपकाने की कोशिश करूँगा। किस खंड में क्या है-

खंड एक- भारतीय चित्त, मानस एवं काल
खंड दो- अठारहवीं शताब्दी में भारत में विज्ञान एवं तंत्रज्ञान
खंड तीन- भारतीय परंपरा में असहयोग
खंड चार- रमणीय वृक्ष- अठारहवी शताब्दी में भारतीय शिक्षा
खंड पाँच- पंचायत राज एवं भारतीय राजनीति तंत्र
खंड छ- भारत में गो हत्या का अंग्रेजी मूल
खंड सात- भारत की लूट और बदनामी
खंड आठ- गाँधी को समझें
खंड नौ- भारत की परम्परा
खंड दस- भारत का पुनर्बोध।

मैंने अभी तक कोई भी खंड पूरा नहीं पढ़ा है लेकिन इन पोथियों के विषय-अनुक्रम पर गौर करने से यह बात साफ-साफ दिखती है कि इन्हें पढ़ कर हम एक और भारत को देख पाएँगे। जो शायद धर्मपाल का भारत होगा । इस समग्र के प्रकाशक हैं-

पुनरुत्थान ट्रस्ट
4, वसुंधरा सोसायटी, आनन्द पार्क, कांकरिया, अहमदाबाद-380028
फोन नं. 079- 25322655

4 comments:

अफ़लातून said...

१८वीं शताब्दी के भारत के बारे में अँग्रेज विलायत में जो रपट देते थे उनका महारानी के अभिलेखागार में बरसों धर्मपाल ने अध्ययन किया। फिर भाजपा की कार्यकारिणी में निमन्त्रित रहे।हताशा में दवाइयाँ भी ज्यादा ले ली थीं।

बोधिसत्व said...

मुझे इस पहलू के बारे में नहीं मालूम था । और दवाइयों का क्या चक्कर है। किस बात की दवाइयाँ लीं।

shashi said...

bodhi ji

ek bhool sudhar kar le. vo yah ki mujaffarnagar uttarakhand me nahi UP me hai.
shashi bhooshan dwivedi

अभय तिवारी said...

ये सूचना यहाँ डाल कर दूसरा भला काम हुआ.. पहला भला काम आप पहले ही कर चुके हैं- मुझे किताबों का सेट दान देकर.. :)