जूर गगन की छाँव में
मैंने पिछले किसी चिट्ठे में अपने बेटे मानस की गतिविधियों के बारे में लिखा था। आज मैं अपनी बेटी भाविनी या भानी के बारे में लिख रहा हूँ। वह 22 सितंबर को तीन साल की होगी। महीने भर पहले तक वह लड़का थी। लेकिन जब से खेल-कूल जाने लगी है तबसे वह खुद को लड़की कहने लगी है।
उसे फोन रिसीव करना अच्छा लगता है। पिछले कई महीने से शायद ही मैंने कोई फोन रिसीव किया हो। अगर किसी और ने फोन रिसीव कर लिया तो मुश्किल है। कई बार तो फोन कट करके सामने वाले से फिर फोन करने को कहना पड़ता है। वह फोन पर आवाजों को पहचानने लगी है। अपने अभय अंकल की आवाज बहुत ठीक से पहचानती है। अभय कहते हैं कि मैं भानी बोल रहा हूँ और वह डटी रहती है कि नहीं मैं भानी हूँ।
कुछ दिन पहले मेरा बेटा गूगल पर चिड़ियों के चित्र खोज रहा था स्कूल के किसी काम से।
अचानक बीच में भाविनी कूद पड़ी। फिर मानस का प्रोजेक्ट पीछे और उसका अपना काम शुरू। उसने गूगल से ही कुछ चिड़ियों में खुद और अपने भाई और मम्मी-पापा के रूप में नामकरण किया । मैं चिड़ियों की पहचान कम ही रखता हूँ। यहाँ हारिल या नीलकंठ जैसा पंछी उसका भाई मानस है। कैरोलीना उडडक उसकी मां और यह सोन चिड़िया जैसी दिख रही bugun liocichla खुद भाविनी है। यह रेयर चिड़िया है और केवल भारत में ही पाई जाती है । अभी तक ज्ञात संख्या सिर्फ 14 है।
अचानक बीच में भाविनी कूद पड़ी। फिर मानस का प्रोजेक्ट पीछे और उसका अपना काम शुरू। उसने गूगल से ही कुछ चिड़ियों में खुद और अपने भाई और मम्मी-पापा के रूप में नामकरण किया । मैं चिड़ियों की पहचान कम ही रखता हूँ। यहाँ हारिल या नीलकंठ जैसा पंछी उसका भाई मानस है। कैरोलीना उडडक उसकी मां और यह सोन चिड़िया जैसी दिख रही bugun liocichla खुद भाविनी है। यह रेयर चिड़िया है और केवल भारत में ही पाई जाती है । अभी तक ज्ञात संख्या सिर्फ 14 है।
उसने मुझे भी खोजा । यहाँ ऊपर उड़ रहा पंछी मैं हूँ। यानी पापा चिड़िया। इन चिड़ियों में उसके अभय अंकल भी है यहाँ ऊपर श्याम-नील रंग में अकेले में हैं निर्मल आनन्द प्राप्त करते ।
भानी दिन में कई बार इन चिड़ियों को देखती है । उसके पास भाविनी या भानी चिड़िया के कई किस्से हैं जिनमें वह लंबी उड़ानों पर जाती है। कभी मुश्किल में पड़ती है तो मानस मम्मी या पापा चिड़िया उसकी मदद में आ जाते हैं।कहानी में रोज-रोज नया कुछ जुड़ता रहता है जैसे कल से उसे बुखार है। और अब कहानी में बुखार जुड़ गया है । वह बहुत ऊपर उड़ गई थी। पानी में भीग गई थी। इसलिये भानी चिड़िया को बुकार है। यहाँ लिखा शीर्षक भानी के एक गाने का अपना ही रूप है। वह गाती है-
जूर गगन की छाँव में
उड़ गई भानी गाँव में ।
सबसे ऊपर भाई मानस चिड़िया की गोद में भानी चिड़िया।
21 comments:
वाकई, हम सब क्या हैं - यह बोध कराने के लिये बोधिसत्व की नहीं, बच्चे की जरूरत होती है!
भानी की एक प्यारी सी छवि बन गयी है। भानी चिड़िया (बिटिया)का असली फोटो भी तो लगाइये।
आप सही कह रहे हैं ज्ञान भाई अक्सर बच्चे जिन सच्चाइयों को देख लेते हैं हम उन्हे नहीं देख पाते। ममता जी आप के कहने से
भानी चिड़िया की फोटो डाल दी है।
मैं आसानी से किसी से प्रभावित नहीं होता आजकल.. मगर भानी के बोलने के अंदाज़ से प्रभावित हूँ..अब बोधि के घर जाने का अर्थ भानी के घर जाना है.. बोधि और आभा से दो चार बाते होतीं है.. मुख्य वार्ता तो भानी के साथ ही होती है..मैं भानी के संसार में कुछ महत्व रखता हूँ.. ये मेरे लिए बड़े गर्व की बात है..
मेरे एक और मित्र हैं परेश और गज़ाला.. उनकी बेटी तराना ने भी मुझे ऐसे गर्व का मौका दिया और फिर एक रोज़ किसी रूठे क्षण में गज़ाला को डाँट ही दिया.. तुम मेरे दोस्त के घर नहीं जाओगी.. मैं उम्मीद करता हूँ कि भानी बोधि पर कभी ऐसे कड़े प्रतिबन्ध नहीं लगाएगी.. और अपने संसार को बढ़ाती जाएगी.. उसे मेरा ढेर सा प्यार और आशीर्वाद ..
भानी और चिडिया दोनों प्यारे हैं ।
भानी पाखी को प्यार ।
अभय भाई मेरे दोनों बच्चे तुम्हारे जादुई गिरफ्त में हैं। अफलातून जी काश भानी समझ पाती कि उसे आप सब का कितना स्नेह और आशीष मिल रहा है।
एक फोटो अगर बिटिया की भी लगा देते तो अच्छा रहता. फोटो तो आपके पास होगी ही
जुग-जुग जियो, भानी बबुनी..
भानी ने एकदम सही पहचाना है . हम सब तरह-तरह के पाखी हैं . और हमारी सोनचम्पा-सी भानी है नन्हीं-सी सोनपेंडुकी . उसकी उड़ान हमेशा सुखद और निर्बाध हो यही आशीष है .
हम सभी में किसिम-किसिम के पंछी और जनावर जिंदा हैं और वह भी साथ-साथ। बस इसके अहसास के लिए भानी जैसी निर्मलता की जरूरत है। (जैसे दिवंगत नेता चंद्रशेखर के चेहरे में मुझे हमेशा एक भेड़िया और मनमोहन सिंह के चेहरे में उल्लू नज़र आता रहा है) बोधि जी इतनी सुंदर अनूभूति से परिचय कराने के लिए शुक्रिया...
वाह बोधिजी वाह
मेरी छोटी बिटिया भी चार साल की है।
उसकी सी हरकतें हैं।
अभी उसकी पेरेंट्स टीचर मीटिंग में गया, तो टीचर ने अलग से बुलाकर पूछा-ये आपकी बेटी है। मैने कहा जी बिलकुल। उसने बताया कि ये बात बहुत करती है। और एकदम उलटी-पुलटी। स्नैक की कहानी बताती है, फिर एकदम से भूत में कूद जाती है।
मैंने कहा मैडम सही लक्षण हैं, सही जा रही है। बड़ी होकर टीवी रिपोर्टर बनेगी।
मैडम की समझ में नहीं आया।
सरजी मैंने आपकी ई-मेल पर एक मैसेज भेजा है। उसे देख लें।
प्रमोद भाई आप का शीष दे दिया है भानी को। बसंत भाई फोटो लगी तो है।
अनिल भाई दुनिया को कभी -कभी बच्चों की निगाह से देखने का एक अलग ही आनन्द है।
प्रियंकर भाई आपका स्नेह भानी तक पहुँच गया है।
पर वो सो रही है।
उसके लिए यह दुनिया बच्चे का यानी उसका खेल है। हम उसके लिए हैं । हमारी हैसियत उसके दम पे है।
पुराणिक भाई आप की बेटी की खेल पुराण से परिचित कराएं। अच्छा लगेगा।
प्रमोद भाई जल्दी में आशीष की जगह पर भानी के आपका शीष दे दिया। भानी ने उसे स्वीकार नहीं किया । बोली शीष लेकर क्या करूँगी। सो आशीष दे दिया है।
बहुत प्य्रारी पोस्ट ! बिटिया को हमारा भी प्यार और आशीष!
कई कविता संग्रहों पर भारी है यह एक पोस्ट. भानी को बहुत सारा प्यार, एक दिन उड़ जाएगी....दुलरा लीजिए जितना हो सके...
मैं सच कहूँ अनामदास जी खूब प्यार करते हैं हम तीनों को । माँ और भाई तो इसके भक्त हैं। बचा-खुचा समय मुझे भी मिलता है। कभी-कभी डर जाता हूँ, बेटी है उड़ तो जाएगी ही। पता नहीं कैसे लोगों के बीच इसका आगे का जीवन बीतेगा।
इसके आने के बाद मैंने खुद में कई बदलाव पाए हैं। इसने मुझे काफी संस्कारित किया है। थोड़ी उदंडता बेटी का बाप बनने से दूर हुई है।
अनूप भाई आप का स्नेहाशीष दे दिया है।
आप को धन्यवाद नहीं दूँगा। भानी आप सबकी भी तो बेटी है।
बच्चे ! संसार के सबसे सुन्दर निश्छल प्राणी ! हर बच्चे में मैं अपने बच्चे देखती हूँ । भानी ने चिड़िया की बात बहुत सही कही है । एक बार मैंने अपनी बिटिया को एक ई कार्ड भेजा था जिसमें माँ चिड़िया अपने बच्चे को उड़ने देती है किन्तु लौट कर आने पर उसे अपने पंखों की बाँहों में छिपा लेती है । मेरी बेटी बोली कि माँ यह कार्ड आज तक भेजे सब कार्ड्स में से सबसे सही है । आप भी अपनी भानी चिड़िया को लम्बी उड़ाने भरने देना किन्तु जब वह थके तो उसे अपने पंखों में छिपा लेना ।
शुभकामनाओं सहित,
घुघूती बासूती
भाई अपने आस पड़ोस की दुनियां से भी तो परिचय कराना हमारा आपका फ़र्ज़ हैं,तो भाई भानी को मेरी तरफ से प्यार कहियेगा,चलिये इसी बहाने भानी को भी जान गये.मेरी शुभकामनाएं...
विमल सर
हालत कुछ ऐसी है कि मुंबई में रह कर भी लगता है कि मुंबई में नहीं हूँ। प्रोड्यूसरों की दारू पार्टियाँ अटेंड नहीं करता तो उनके लिए भी बहुत अपना नहीं रह जाता। आप सब से भी बहुत कहाँ मिल पाता हूँ। मैं सच कहूँ तो मैं मुंबई में रह ही नहीं रहा हूँ।
अब पत्नी का परिचय ही बाकी रह गया है मेरे कुनबे में सो किसी दिन वह भी हो जाएगा।
बेटी भाविनी / भानी रानी को मेरा भी आशिष व ढेरोँ प्यार दीजियेगा :)
कितनी प्यारी बात कह दी बिटिया ने !
- लावण्या
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