Wednesday, September 12, 2007

गठजोड़ गजल और प्रपंच पुराण

वादे के मुताबिक मुझे शादी के बाद की प्रेम कविताएँ छापनी थीं सो फिर कभी । आज आप लोक मे व्याप्त इन महान रचनाओं को पढ़ें । ये माहान रचनाएँ सुनी हैं सुनाई हैं रची हैं रचाई है। पहले आप पढ़े गठजोड़ गजल फिर पढ़े प्रपंच पुराण । इनके यहाँ होने के प्रेरणा श्रोत हैं गड़बडिया ज्ञान भाई। कुछ दुहरा गया हो तो दुबार पढ़ लें। पढ़ने से ज्ञान ही बढ़ेगा। कठिन शब्दों के लिए अभय तिवारी या अजीत जी को धरें। श्रद्धा को ठेस लगे तो ठोस पत्थर से मुझ पर प्रहार करें पर कोर्ट जाने का कुविचार त्याग दें।

गठजोड़ गजल


आप गर हालात से संतुष्ट हैं
हम कहेंगे आप पक्के दुष्ट हैं।

हंस कर मिलेगे आप हमसे तो
सब कहेंगे आप हमसे रुष्ट हैं।

हसरतें कसरत से पूरी होयगीं अब
बात सोलह आने खरी औ पुष्ट है।

चट्टानों की चादर ताने सोया मजनूँ
थकीं लैला सो रही है सुस्त है।

वन में भटकते राम से सीता कहे
हम साथ हैं तो सब कुछ दुरुस्त है।

प्रपंच पुराण

थर-थर कापैं पुरनर नारी
उस पर बैठे कृष्न मुरारी।

कान्य कुब्ज औ सरयू पारी
सबके देव हैं कृष्न मुरारी।

आगे गये भागि रघुराई
पीछे लछिमन गये लुकाई

हरि अन्तइ हरिनिउ गइ अन्ता
भुर्ता नहिं सोहें बिनु भंटा।

रामइ हरता, भरता रामइ करतार
तब क्या बाकी देवता हैं बेकार।

9 comments:

अभय तिवारी said...

ऐसा गड़बड़झाला मत करो भाई.. आप तुलसी और मानस के बड़े विद्वान हो.. ये सब प्रपंच औरों के लिए छोड़ो.. आप पेवर माल छानो.. वही सही है..

बोधिसत्व said...

धीर गंभीर होने से बड़ी ऊब होती है भाई सो थोड़ी लंतरानी कर ली। मन को कुछ ऊर्जा इन सब से मिल जाती है।

Shiv said...

यूं पछताये बोधिसत्व जी होके धीर-गम्भीर
अगड़म-बगडम लिख गए गए इतने हुए अधीर
इतने हुए अधीर लिखी गजलें कुछ ऎसी
चला कलम कर दी गजलों की ऐसी-तैसी
लेकिन पढ़ ऐसी गजलें खुश होते ब्लॉगर
इसको कहते हैं भइया गागर में सागर

बहुत आनंद आया आपकी 'गंठजोड गजल' और प्रपंच पुराण पढकर. कभी-कभी ऐसा भी लिखा करिए. हम जैसों की खुशी के लिए.:)

रवि रतलामी said...

और कभी व्यंजल वाणी भी बिखेरिए. :)

यकीन मानिए, उससे भी मन को बड़ी ऊर्जा मिलती है.

Sanjeet Tripathi said...

मस्त!!

भैय्या! ये जो लंतरानी है ये रिफ़्रेश सा कर देता है कई बार!!

जारी रखिए बीच-बीच में!!

Gyan Dutt Pandey said...

ये अभय की बताई बभनई करो. मठ्ठा हम जैसे शूद्रों के लिये रहने दो! :)

Udan Tashtari said...

ज्ञान जी की तो ग्राहक चिन्ता वाजिब है, वो तो अपने लिये हमें भी हो रही है मगर अभय भाई ऐसा क्यूँ कह रहे हैं?? :)

-यह तो बड़ा उर्जादायक रिफ्रेशिंग मेटेरियल है. हम बधाई रख जाते हैं.

बोधिसत्व said...

ज्ञान भाई हमें तो मलाई भी चाहिए और मट्ठा भी। बहुत गरुह होकर हरुआ होने का आनन्द ही कुछ और है। अभय के सुझाव पर पेवर माल पर अमल होगा पर इस गड़बड़झाले के साथ ही होगा। कैसा रहेगा मज्झिम निकाय ।

अजित वडनेरकर said...

bahut sundar bodhibhaaii.. bahut sundar..
ye post aaj hii paRh paayaa hoon islie itniider lagii tip men.
mazaa aayaa
saabhaar, ajit