Thursday, September 20, 2007

आप भी व्यसनी हैं क्या

दिन में सोना व्यसन है

हम सब में कोई ना कोई लत होती है। लत ही कुछ समय बाद लगभग आदत की तरह हो जाती है ।आदत की मेरी व्याख्या है आ +दत= आदत यानी जो आ के दत जाए । दत जाना माने सट जाना । मैं आदत को व्यसन के बराबर मानता हूँ। आप मुझसे असहमत हो सकते हैं। पर मैं मजबूर हूँ । अपनी आदतों से। कुछ लोग दिन में सोते हैं कुछ बिना उद्देश्य के इधर की बात उधर करते हैं माफ कीजिए यह सब व्यसन है। जी हाँ चुगली भी एक व्यसन हैं।

मैं व्यसन की बात काव्य शास्त्र के हवाले से करूँ तो आप सब नाराज मत हो जाइएगा। जब रीति कालीन ढ़ंग से कविताएँ लिखी जाती थीं। तब कवियों को बहुत कुछ याद रखना पड़ता था । यह भी याद रखना पड़ता था कि श्रृंगार ही नहीं संस्कार भी सोलह होते हैं । साथ ही यह भी ध्यान रखना पड़ता था कि चंद्रमा की कला भी सोलह ही होती है। यह सब उसकाल में किसी भी कवि को याद रखना या सीख लेना जरूरी होता था। उसे यह भी याद रखना पड़ता था कि पुराण, उप पुराण, स्मृति और वर्ण ही नहीं व्यसन भी अठारह होते हैं।

व्यसनों की काव्य शास्त्रों में बताई सूची बड़ी रोचक है। आप खुद को व्यसनों से कितना भी दूर पा रहे हों पर यह व्यसन तालिका आप को हैरान कर देगी। बात को बहुत आगे न बढ़ाते हुए काव्य शास्त्रों में वर्णित व्यसनों की सूची हाजिर है।

अठारह व्यसन –
मृगया, द्यूत, दिवा शयन, छिद्रान्वेषण, स्त्री-आसक्ति, मद्य-पान, वादन, नर्तन, गायन, व्यर्थ अटन, पिशुनता, चुगली, द्रोह, ईर्ष्या, असूया, दूसरे की वस्तु हरण, कटुवाक् , कठोर ताड़ना।

कठोर शब्दों के सरलार्थ-

मृगया=शिकार, पिशुनता=वह चुगली जिसमें गवाह भी साथ हों अर्थात तगड़ी चुगली, असूया=किसी के गुण को भी अवगुण समझना, अटन=घूमना,
मुझे उम्मीद है कि द्यूत, स्त्री-आशक्ति चुगली जैसे शब्दों के अर्थ सबको पता होंगे। चुगली का मोटा अर्थ है कि किसी की बात को इधर-ङधर पहुँचाना, स्त्रियाँ सहूलियत के लिए स्त्री आसक्ति की जगह पुरुष आसक्ति पढ़े। कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

8 comments:

Rajeev (राजीव) said...

भाई बोधिसत्व जी,

आपकी यह सूची और व्याख्या तो बहुत सही है।

आपने लेख के शीर्षक में तो कदाचित् प्रश्न पूछा था। हम तो डर ही गये थे कि अब तो बताना होगा कि क्या-क्या व्यसन हैं हममें। परन्तु लेख में, अंत तक प्रश्न तो नहीँ आया। शायद आपने छोड़ दिया पाठक पर ही? चलो हम भी असत्य नहीँ पर गोल-मोल सा उत्तर दे देते हैं कि हममें इनमें से कदाचित 2-3 व्यसन तो होंगे - आंशिक रूप से कुल मिला कर ;)

बोधिसत्व said...

इसमें से दो तीन व्यसन तो हर एक में होंगे। दिक्कत पाँच की संख्या पार करने पर है। देखते हैं कि कौन कितना व्यसनी है।

काकेश said...

मुझे खुशी है कि मैं व्यसनी नहीं. आपने कहा 2-3 तो सभी में होंगे तो अपन भी उसी श्रेणी में हैं.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

चलिए, हम भी व्यसनी हो लिए.

बोधिसत्व said...

असली व्यसनी तो वह है जो पने व्यसनी होने को स्वीकार न करे।

Priyankar said...

इस आपाधापी और तोताचश्मी के समय में व्यसनी आदमी सबसे निष्ठावान प्रजाति का जीव है . उसकी व्यसन के प्रति एकनिष्ठता,उसका पक्का इरादा -- सच्चा 'डिवोशन' -- काबिल-ए-रश्क है .

Udan Tashtari said...

बहुत शर्म सी आ रही है. लगभग बार्डर का केस है. ३+ टाईप. किसी से कहियेगा मत. प्लीज!! :)

बोधिसत्व said...

छुपाना ही था तो ब्लॉग पर क्यों डाला।