Sunday, September 23, 2007

हिंदी के कवि विष्णु नागर बने बलॉगर


विष्णु नागर की दो कविताएँ

पहचान श्रृंखला में छपे विष्णु नागर आज हिंदी के अच्छे कवि हैं। उनका कहन एकदम अलग है। वे अच्छे गद्य लेखक भी हैं और उनकी ईश्वर विषयक कहानियाँ काफी चर्चा में रही हैं। वे हिंदुस्तान टाइम्स की पत्रिका कादंबिनी से जुड़े है और लगातार लिख रहे हैं। वे भी ब्लॉगर जगत के लिए खबर यह है कि विष्णु जी भी बन गए हैं ब्लॉगर । उनके ब्लॉग का नाम है कवि
मैं फिर कहता हूँ चिड़िया विष्णु नागर का पहला कविता संग्रह है। 14 जून 1950 को पैदा हुए विष्णु नागर का परिचय अगर हम अशोक वाजपेयी द्वारा संपादित पहचान में दिए परिचय से कराए तो कुछ अजीब लगेगा । पहचान के प्रकाशित होने के पहले तक विष्णु जी के जीवन का अधिकांश शाजापुर मध्य प्रदेश में बीता था। पर पहचान छपने के समय वे दिल्ली में रह कर स्वतंत्र लेखन कर रहे थे । तब विष्णु जी का पता छपता था, 3007, रणजीत नगर, नई दिल्ली-2। पहचान के साथ एक दिक्कत दिखी कि कहीं भी प्रकाशन का साल नहीं दर्ज है।

पहचान अशोक वाजपेयी द्वारा संपादित तब के युवा कवियों की एक श्रृंखला थी
जिसने उस समय के कवियों को पहचान दिलाई। इसी क्रम में विनोद कुमार शुक्ल सोमदत्त, सौमित्र मोहन, शिवकुटी लाल वर्मा जैसे आज के कई महत्वपूर्ण रचनाकार पहली बार छपे थे।

यहाँ प्रस्तुत हैं विष्णु नागर की दो कविताएँ। जिनमें से एक कविता उनके पहले संग्रह से और एक समकालीन सृजन से कवितांक से साभार है।

पहली कविता

चिड़िया
मैं फिर कहता हूँ कि चिड़िया
अपने घोंसले से बड़ी है
घोंसले से बड़ी चिड़िया का
अपना कोई मोह नहीं होता
वह दूसरों के चुगे दोनों में
अपना त्याग बीनती है।

दूसरी कविता

अखिल भारतीय लुटेरा

(१)

दिल्ली का लुटेरा था अखिल भारतीय था
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता था
लुटनेवाला चूँकि बाहर से आया था
इसलिए फर्राटेदार हिंदी भी नहीं बोलता था
लुटेरे को निर्दोष साबित होना ही था
लुटनेवाले ने उस दिन ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना की कि
भगवान मेरे बच्चों को इस दिल्ली में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाला जरूर बनाए

और ईश्वर ने उसके बच्चों को तो नहीं
मगर उसके बच्चों के बच्चों को जरूर इस योग्य बना दिया।

(२)

लूट के इतने तरीके हैं
और इतने ईजाद होते जा रहे हैं
कि लुटेरों की कई जातियाँ और संप्रदाय बन गए हैं
लेकिन इनमें इतना सौमनस्य है कि
लुटनेवाला भी चाहने लगता है कि किसी दिन वह भी लुटेरा बन कर दिखाएगा।

(३)

लूट का धंधा इतना संस्थागत हो चुका है
कि लूटनेवाले को शिकायत तभी होती है
जब लुटेरा चाकू तान कर सुनसान रस्ते पर खड़ा हो जाए
वरना वह लुट कर चला आता है
और एक कप चाय लेकर टी.वी. देखते हुए
अपनी थकान उतारता है।

(४)

जरूरी नहीं कि जो लुट रहा हो
वह लुटेरा न हो
हर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि लूट का लाइसेंस सिर्फ उसे नहीं मिला है
सबको अपने-अपने ठीये पर लूटने का हक है
इस स्थिति में लुटनेवाला अपने लुटेरे से सिर्फ यह सीखने की कोशिश करता है कि
क्या इसने लूटने का कोई तरीका ईजाद कर लिया है जिसकी नकल की जा सकती है।

(५)

आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो
फलां जगह फलां दिन फलां समय
और लुटेरों को भी लूटने चले आते हैं
ठट्ठ के ठट्ठ लोग
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।

(6)

होते-होते एक दिन इतने लुटेरे हो गए कि
फी लुटेरा एक ही लूटनेवाला बचा
और ये लुटनेवाले पहले ही इतने लुट चुके थे कि
खबरें आने लगीं कि लुटेरे आत्महत्या कर रहे हैं
इस पर इतने आँसू बहाए गए कि लुटनेवाले भी रोने लगे
जिससे इतनी गीली हो गई धरती कि हमेशा के लिए दलदली हो गई।

5 comments:

अनूप शुक्ल said...

वाह, सही है।

Yunus Khan said...

अच्‍छी खबर दी । क्‍या आपको पता है कि कवि एवं कहानीकार उदय प्रकाश भी ब्‍लॉगर बन गये हैं ।
उनके ब्‍लॉग का नाम है http://uday-prakash.blogspot.com/
अचानक नेट पर भटकते हुए हम उनके ब्‍लॉग में घुस गये ।

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया खबर!!

अखिल भारतीय लुटेरा बहुत सही है

Udan Tashtari said...

बोधि भाई

सूचना के लिये बहुत आभार.

अखिल भारतीय लुटेरा तो बहुत धुआँधार है. मजा आ गया पढ़कर.

बसंत आर्य said...

आपने एक लेख मे कहा था आपकी बिटिया को चिडिया बहुत पसन्द है. आज देख रहा हूं बाप को चिडियो वाली कविता बहुत पसन्द है. आपकी पसन्द को पसन्द कर रहा हू आजकल.